Tuesday 3 October 2017

**मैं और मेरे पापा**

माँ का प्यार कैसा होता है ।
पापा के सीने से लगकर ही यह जाना है ।

माँ की सूरत तो नहीं देखी है । हर वक्त पापा को ही अपने करीब पाया है ।

महसूस न होने दी कमी माँ की आज तक ।
पापा ने मुझे बड़े नाज़ों से पाला है ।

पापा ही हैं जिन्होंने मुझे उँगली पकड़कर चलना सिखाया है । पापा ही है वो जिन्होंने जिम्मेदारी और संस्कारों का पाठ पढ़ाया है ।

क्या हुआ ?नहीं हैं अगर
माँ आज हमारे साथ,
माँ और पिता का प्यार दोनों मैंने उन्ही से ही पाया है ।

डर लगता था जब मुझे रात को, सीने से पापा ने ही मुझे लगाया है ।
भूख लगती थी मुझे तो पापा ही हैं वो जिन्होंने अपना निवाला भी मुझे खिलाया है ।

चोट लगती थी मुझे कभी
तो दर्द पापा को होता था ।
मुँह से तो कुछ न कहते पर दर्द आँखों से बयाँ होता था ।

उँगली पकड़कर पापा की
चलना मुझे अच्छा लगता है ।
पापा का प्यार मुझे ईश्वर का अनमोल तोहफा लगता है ।

पापा के साये में मुझे
माँ का भी साया छुपा लगता है ।
माँ तो नहीं है जीवन के इस सफ़र में हमारे साथ,
पर पापा का साथ पाकर कुछ भी अधूरा सा नहीं लगता है ।

पापा ! संघर्ष आपका
व्यर्थ न मैं होने दूँगा ।
बड़ा हो जाऊँ जल्दी से बस,
पलकों पर अपनी बिठाकर बुढ़ापे का सहारा मैं ही बनूँगा ।

नहीं महसूस होने दूँगा उस दिन
माँ की कमी आपको ।
बेटे का फर्ज़ अदा करके
बुढ़ापे में कभी अकेला महसूस न होने दूँगा ।

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