Thursday 1 July 2021

21वीं सदी में नारी की दशा और दिशा (आलेख)

"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता" की वर्तमान वास्तविकता : 21वीं सदी में नारी की दशा और दिशा

नारी है कमजोर नहीं तू 
शक्ति की संवाहक है 
मातृभूमि को पावन करती 
नारी तू दुखहारक है ।।

यह माना जाता है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता का वास होता है मगर देखा जाए तो आज नारी को पूजनीय नहीं प्रयोग की वस्तु समझा जाता है और उसके चारों तरफ यमराज विद्यमान रहते हैं । पता नहीं कब उसके लिए मौत लेे आएं । चाहें परिस्थितियां कैसी भी हो जाएं … नारी पूजनीय है और रहेगी क्योंकि एक समाज , घर , देश और इन सबसे ऊपर इस धरा की ' रीड़ की हड्डी ' हैं; जिसके ना होने से यह संसार अपाहिज हो जाएगा । 

नारी जिसका स्थान प्राचीन काल से ही नमन और वंदनीय है वह नारी आज भी इस भू-लोक पर वंदनीय है । नारी स्वयं शक्ति है फिर क्यों उसके सशक्तिकरण की बात करना आवश्यक हो गया है । नारी को सृष्टि की रचना का मूल आधार माना गया है । नारी देवलोक में नहीं जीवलोक में भी पूजनीय है । नारी शक्तिशाली है और फिर उसके सशक्तिकरण की बात करना क्यों आवश्यक हो गया है ? भारतीय समाज में आज भी महिलाओं को लेकर दोहरे मापदंड है । एक तरफ तो मानव उसे पूजनीय कहता है और दूसरी तरफ उसी का शोषण करता है । घर हो या बाहर दोनों तरफ महिलाएँ प्रताड़ित होती हैं । आज अगर स्थिति देखें तो नारी को स्वयं अपने क्षेत्र में सशक्त होने की आवश्यकता है । आज नारी गर नारी को सम्मान देगी तभी हम परिवारों में हो रही हिंसा को मिटा पाएँगे । स्त्रियों के साथ बाहर या फिर घर परिवार में हो रही हिंसा को मिटाएँ बिना समाज में महिला सशक्तिकरण का स्वप्न पूरा नहीं हो सकता ।

नारी सशक्तिकरण का अर्थ- महिलाओं में सम्मान आत्मनिर्भरता आत्मविश्वास और आत्म-जागरूकता के साथ-साथ आत्मशक्ति जागृत करना ही वर्तमान समय में एक महत्वपूर्ण कार्य है । नारी को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होने की आवश्यकता है अगर वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग और आत्मनिर्भर है तो उसका सम्मान नीलगगन तक ऊँचा उठ जाता है और वह देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है । अरस्तु के कथनानुसार "किसी भी राष्ट्र की स्त्रियों की उन्नति या अवनति पर ही उस राष्ट्र की उन्नति व अवनति निर्धारित होती है ।" आज आधुनिक युग की नारी का कार्यक्षेत्र परिवार तक ही सीमित नहीं है वह कामकाजी नारी के रूप में उभरकर सामने आई है आज आधुनिक युग की नारी पुरुषों के पीछे नहीं है बल्कि आगे निकल गई है । वह परिवार पालती है, घर चलाती है और घर के बाहर काम पर भी जाती है इन सब कार्यों के चलते अपने बच्चों पर भी पूरा ध्यान रखती है और उन्हें संस्कारों से पोषित करती है । आज की नारी घर की चारदीवारी के भीतर और बाहर दोनों जगह रहकर अपनी अहम भूमिका निभाती है फिर भी नारी सशक्तिकरण की बात क्यों कही जाती है…इसलिए, क्योंकि आरंभ से ही समाज का स्वरूप पुरूष प्रधान रहा है; जिसमें पुरुष को ही परिवार का मुखिया और सर्वोपरि माना जाता था और स्त्री को घर चलाने वाली दया , करुणा , ममता की मूरत समझा जाता था । समय बदल रहा है अब वह परिस्थितियां नहीं रही । नारी साईकिल से लेकर हवाई जहाज तक उड़ाती हैं । आज वह घर के आंगन से लेकर जंग के मैदान में भी अपना जौहर दिखाती हैं। आधुनिक भारत, आधुनिक युग की नारी किसी से डरती नहीं । आज की नारी को मर्दों के समान काम करने और शिक्षा  प्राप्त करने का अधिकार है परंतु फिर भी अभी भी उसे पूरा न्याय और अधिकार नहीं मिल पा रहा है शायद इसलिए कि आज भी समाज पुरुष प्रधान ही है और शायद वह स्वयं स्त्री को आगे निकलने देना नहीं चाहता जहाँ तक मेरे विचारों का सवाल है जब तक नारी को उचित आदर- सम्मान प्राप्त नहीं होगा विकास संभव नहीं है । आज भी बहुत से ऐसे समाज हैं जहाँ उन्हें घर से बाहर जाने की मनाही है , पति के मर्णोपरांत उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता उनको आधारभूत साधनों से भी वंचित कर दिया जाता है । अभी भी जाति-पाती के बंधनों के रहते बहुत से समाजो में बेमेल विवाह और गैरजाति विवाह प्रतिबंधित हैं । आज भी कई समाजों में लड़कियों के गैर जाति के साथ प्रेमसंबंध रखने और विवाह करने मनाही है और जो लड़कियाँ परिवार के खिलाफ जाकर ऐसा कदम उठाती हैं  उन्हें जिंदा भी जला दिया जाता है…वह भी सरेआम और लोग तमाशबीन बने खड़े रहते हैं । शिक्षा महिला सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभा सकती हैं । शिक्षा महिलाओं के लिए मील के पत्थर के समान है । आज के संदर्भ में देखा जाए तो जहाँ हम महिलाओं और बच्चियों की बात करते हैं तो वह आज भी सुरक्षित नहीं है आज पुरूषों की कामोवेश की भावना छोटी-छोटी बच्चियों को भी अपने गलत इरादों का शिकार बना रही है ।

नारी है गंगा, नारी है यमुना ,
नारी धरा और आधार है ।
नारी से बल-बुद्धि मिलती ,
नारी शक्ति का भंडार है ।

आज नारी की दशा देखकर कुछ सवाल मन में आते हैं … 
*नारी स्वयं शक्ति है तो क्या उसे सशक्त होने की आवश्यकता है ? 
*क्या आज सही मायनों में नारी को मान-सम्मान प्राप्त हो रहा है ?
*क्यों आज भी नारी अपने को अकेली पाती है ?
बहुत से ऐसे प्रश्न है जिसके उत्तर हमें पता हैं पर फिर भी हम अंधे और बहरे बने रहते हैं ।
*मृदुला सिन्हा जी की 'उऋण' कहानी में एक ऐसे ही नारी का चित्रण किया गया है जो नौकरी पेशा है और भागदौड़ भरी जिंदगी में जिस तरह से अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है कहीं-कहीं पर कमजोर निर्णय लेते हुए भी बताया गया है ।
*मृदुला गर्ग के उपन्यास 'कठगुलाब' की नारी पर हुए बहुत से अत्याचारों को बयान किया गया है । उनका उपन्यास नारी वेदना के साथ-साथ नर-नारी के संबंधों को भी उजागर करता है । कठगुलाब का प्रतीकात्मक अर्थ है …नारी की जिजीविषा मृदुला जी ने माना है कि नारी गुलाब नहीं है वह कठगुलाब है जिसे देखभाल के साथ खिलना ही पड़ता है । कठगुलाब पुरुष प्रधान समाज में नारी के शोषण और उसकी मुक्ति की कथा है । 
*सुभद्रा कुमारी चौहान ने स्त्री स्वतंत्रता की बातें 'दृष्टिकोण' कहानी के माध्यम से दर्शाई हैं " जितना इस घर में आपका अधिकार है उतना ही मेरा भी है यदि आप अपने किसी चरित्रहीन पुरुष मित्र को आदर और सम्मान के साथ ठहरा सकते हैं तो मैं भी किसी असहाय अबला को कम से कम आश्रय तो ही सकती हूँ । 'दृष्टिकोण' की निर्मला में सुभद्रा जी का व्यक्तित्व मिलता है जो पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बगैर किसी लिंग भेदभाव के चलती हैं । इन सभी बातों से हम यह तो कह सकते हैं कि नारी न पहले शक्तिहीन थी और न ही आज है पर पुरुष प्रधान समाज ने अपनी मानसिकता को जड़ कर रखा है जिसमें उसने स्त्री को कमजोर समझा है । अगर देखा जाए तो आज नारी नर से आगे ही है हर क्षेत्र में अपना दबदबा बनाए हुए निरंतर आगे बढ़ती जा रही है घर से लेकर राजनीति तक के मैदान में उसने अपना लोहा साबित किया है । क्या हमारा देश कल्पना चावला को भूल गया ? मैरी कॉम, साइना मिर्जा , सायना नेहवाल और भी कई ऐसी जानी-मानी नारी पात्र हैं जिन्होंने अपने देश के सम्मान के लिए कुछ कर दिखाने का ज्ज़बा दिल में रखा है देश और समाज को गौरवान्वित किया है मगर फिर भी  आज की स्थिति पक्षपात पूर्ण है । आज भी कहीं न कहीं मर्द के द्वारा ठुकराई जा रही है , घर परिवार और ससुराल में अपमान सहती है । आज लड़कियों को अपनी आबरू बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है ।

क्यों आज हर माँ को यह कहने की स्थिति में पहुँचा दिया है कि…
'अगले जन्म मुझे बिटिया न दीजो' और 
एक बेटी को यह कहने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि… 
'अगले जन्म मुझे बिटिया ना कीजो'

आज देश में जो हालात हैं छोटी-छोटी बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं उनको यूँ कुचला जा रहा है मानो वो इंसान नहीं कोई खिलौना हों । लक्ष्मी कही जाने वाली, नवरात्रों में पूजी जाने वाली इन कन्याओं के साथ ऐसा कुकर्म करके कैसे यह हैवान चैन से रहते है । क्या इनका ज़मीर मर गया है ? क्या इनके लिए कानून अँधा हो जाता है या वाकई में कानून की आँखों पर पट्टी बँधी है जो देश की बेटियों को सुरक्षित नहीं कर पा रहा है । आए दिन ऐसी घटनाएँ देखने को मिल जाती हैं क्या सत्ताधारी लोगों को दिखाई और सुनाई देना बंद हो गया है ? आज हालात हैं कि नेता कहते रहते हैं । हमें देश की चिंता है । हम देश हित के लिए सोचते है । देश की सीमा सुरक्षित होनी ज़रूरी है । उनको कौन समझाए कि देश को ख़तरा देश के बाहर वालों से नहीं देश के अंदर वालों से है । जिस देश की जनता सुरक्षित नहीं है छोटी-छोटी बच्चियाँ सुरक्षित नहीं हैं ऐसे देश में सीमा सुरक्षा की बात बेमायने प्रतीत होती है ।

आज हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकते हैं । उन्हें क्या पड़ी है कि वह सोचें कि देश में क्या हो रहा है, देश किन स्थितियों से गुज़र रहा है । देश के अंदर क्राइम, भ्रष्टाचार लूट, अत्याचार, हैवानियत बढ़ती जा रही है । दूसरी और नेताओं को एक दूसरे पर छींटाकशी करने से फुर्सत ही नहीं है । एक छोटी बच्ची के साथ हैवानियत की हद पार कर दी जाती है उसे बेपर्दा कर छोड़ दिया जाता है । ऐसे हैवानों को क्या कहा जाए जो इस तरह का कुकर्म करने के लिए हैवानियत की सीमा लाँघकर किसी मासूम के साथ ऐसा बेरहम व्यवहार करते हैं कसाई से भी ज्यादा जल्लाद हो चुके हैं आज की ये असंस्कारी जात । जो न किसी धर्म, जाति और समुदाय सेसंबंध रखती है । इनकी सिर्फ़ एक जाति 'जल्लाद' ही हो सकती है । 

मंदसौर की घटना ने 'निर्भया कांड' का जख्म भी ताज़ा कर दिया था । निर्भया कांड के बाद डॉ प्रियंका रेड्डी के साथ इस तरह के अमानवीय व्यवहार और उसे जिंदा जलाया जाना हमारी व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है । क्या कर रही है हमारी सरकार … हर रोज़ एक निर्भया का मर्म हमारे समक्ष हमारी रूह को कंपन दे रहा है । इन बच्चियों के साथ क्या इंसाफ नहीं होगा ? क्या इस निम्न स्तर तक हैवानियत करने वाले खुलेआम ऐसा जघन्य अपराध करते रहेंगे ? क्यों नहीं उनके ख़िलाफ हमारे देश की सरकार कोई सख्त कानून बनाती जिससे इस अपराध को करने की सोचने वालों की रूह तक कांप जाए । क्यों नहीं सरकार ऐसे लोगों को अपंग बनाकर सूली पर नहीं चढ़ाती ? ऐसे हैवानों की तो पहले आँखें नोच लेनी चाहिएँ जिससे वह देवी रूपी कन्या को गन्दी और तुच्छ नज़रों से देखते हैं उसके बाद उनके हाथों को काट डालना चाहिए जिससे वह उसे छूते हैं और अंत में उन्हें नपुंसक बना कर जिंदा चौराहे पर लटका कर जला देना चाहिए जिससे उन्हें एहसास हो कि एक बच्ची के साथ जो वह करते हैं वह कितना मार्मिक है । ऐसे हैवानों को तड़पा-तड़पा कर मृत्यु के द्वार पर अधर लटका देना चाहिए जिससे मौत माँगने पर ये राक्षस मजबूर हो जाएँ 

आज इंसानियत कही खो गई है । देशवासी यह क्यों नहीं समझते बेटी…सिर्फ़ बेटी है । न वो हिंदू न मुसलमान है न सिख न ईसाई है वह एक मासूम है … वह बेटी है । पृथ्वी पर इंसान को सभ्य कहा गया है क्या वाकई में वह सभ्य है । क्यों इंसान इंसानियत इंसानियत त्याग असभ्य बनता जा रहा है । एक जानवर की भांति व्यवहार कर रहा है । क्या यही विकास है …अगर ऐसा कुकृत्य विकास की दिशा का निर्वाह करेगा तो ऐसा विकास नहीं चाहिए जहाँ संस्कारों की हत्या कर विकास का नाम दिया जाता है । देश…देश… देश… का रोना रोता रहता है हर नेता , मेरा देश, मेरा वतन का राग अलापता है ; उन्हें पता ही नहीं इसकी परिभाषा क्या है । जिस प्रकार एक घर चारदीवारी से नहीं उसमें रहने वाले लोगों से घर कहलाता है उसी प्रकार एक देश का अस्तित्व भी उसमें रहने वाले लोगों , उनकी सुरक्षा से संबंध रखता है ।

हमारा देश बहुसांस्कृतिक देश है जहां हर कौम, जाति, धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं । जाति और धर्म के नाम पर दर्द को अाँकना कहाँ का न्याय है । आज बहुत ही विकट समस्या है संस्कारों के ह्वास की जिसका परिणाम है जीवन में पीड़ा, दर्द और भावनाओं का स्थान का नगण्य हो जाना । किसी को भी किसी अन्य की पीड़ा और दर्द का एहसास नहीं होता । मनुष्य स्वार्थी होता जा रहा है । आज बेटियाँ घर या बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं  दरिंदे घात लगाकर बैठे रहते हैं । माँ अपनी बेटियों को घर से बाहर भेजने से घबराती हैं । जब तक बेटी घर वापस नहीं पहुँचती माँ-बाप की चिंता का विषय बनी रहती हैं । क्या ऐसे समाज की कल्पना की थी हमने ? क्या हम ऐसा समाज चाहते थे जहाँ हर कदम पर खतरा… खतरा…और सिर्फ़ खतरा ही है । मैं अपनी और पूरे देश की जनता की तरफ से कहना चाहती हूँ कि जब तक इस अपराध के लिए सख़्त कानून नहीं बनेगा तब तक ऐसे दरिंदे रोज़ ही किसी न किसी मासूम को अपने गलत इरादों की भेंट चढ़ाते रहेंगे ।

सोए हो क्यों …तुम्हें जगना होगा ।
बहन, बेटी की लाज की ख़ातिर
नया नियम कोई घड़ना होगा ।
करे न कोई बेपर्दा इनको
कानून ऐसा तुझे घड़ना होगा ।
रूह कांपें ज़ालिम की बस अब
ऐसा न्याय तुझे करना होगा ।

*निष्कर्ष*
माना कि स्त्रियां पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है फिर भी दया, करुणा, ममता, त्याग और प्रेम की मूरत समझी जाने वाली नारी आज भी समाज में वह दर्जा नहीं प्राप्त कर पाई है जो उसे मिलना चाहिए था । राजनीति से लेकर ग्लैमर की दुनिया तक नारी शोषण की शिकार होती आई है और हो रही है । आज भी अभिनेत्री बनने के लिए एक लड़की को कास्टिंग काउच का शिकार होना पड़ता है आज भी समाज के कुछ ऐसी वर्गों में जहाँ स्त्री शिक्षा पर रोक लगाई हुई है लड़कियों को सिर्फ इतना पढ़ाया जाता है कि वह घर परिवार को पाल सकें । सरकार की तरफ से हर एक कदम पर सुधार की प्रक्रिया चल रही है और वह चलती रहेगी । लड़कियों पर हो रहे अत्याचार और उनका शोषण यही बता रहा है कि अभी भी कहीं न कहीं समाज में स्त्रियों की दशा में सुधार की आवश्यकता है और जब तक सरकार की तरफ से कोई सख्त कानून नहीं बनता तब तक स्थिति स्थिर ही बनी रहेगी । आज भी स्त्री का यौन शोषण करने वाले खुलेआम शान से चलते हैं और सिर उठा कर जीते हैं ऐसे लोगों के लिए सख्त कानून नहीं होगा तो नारियों की दशा में सुधार आना मुश्किल है । प्राय: देखा गया है कि रोज़ सोशल मीडिया पर बच्चियों के साथ यहाँ तक की बालिग और नाबालिग लड़कियों के साथ ऐसी घटनाएँ घटती रहती है परंतु सरकार की सुप्त अवस्था वाली प्रतिक्रिया बनी रहती है । मानो देख कर भी अनदेखा और सुन कर भी अनसुना कर दिया गया हो । जब तक नारी पर घर और बाहर इसी प्रकार के अत्याचार होते रहेंगे तब तक नारी सशक्तिकरण की बात बेमानी है । हमें पहले समाज का दृष्टिकोण बदलना होगा तभी हम इस दिशा में कुछ सफलता पा सकते हैं जब तक औसतन से ऊपर महिलाओं पर होने वाले अत्याचार नहीं रुकेंगे तब तक नारी की स्थिति में सुधार नहीं आ सकता । आज भी घर से बाहर काम करने वाली महिलाएँ पुरुषों के दवाब में जी रही हैं । कहने की बात है… स्त्री स्वाबलंबी हो गई है परंतु आईना यह बताता है कि आज भी लैंगिक भेदभाव होता है । लड़कियों को पैदा कर यूँ ही सड़कों पर कूड़े के डिब्बे में छोड़ दिया जाता है । बस इसलिए क्योंकि वह बेटी है समाज यह क्यों नहीं समझता कि बेटीने ही इस समस्त जीवलोक को रचा है और अगर ऐसे ही इसका शोषण होगा तो यह धरा भी नहीं बच पायेगी । मनुष्य का अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा ।

21वीं सदी की नारी को ना समझ अबला, 
यह सबला बनी है ।                                       
क्या है दिशा इसकी?                                        
क्या दशा इसकी बनी है?                                    
यह शोषित होकर भी,                                    
सबके लिए जिजीविषा बनी है ।                  
कहानी इसकी नहीं खत्म हो सकती                      
तेरे कमज़ोर कहने से …                                      
यह स्वयं शक्ति, शक्ति का भंडार है…                   
धरा इसी से बनी है ।

ग्रंथावली
सुभद्राकुमारी चौहान- नारी हृदय तथा अन्य कहानियाँ 
मृदुला सिन्हा - कहानी 'उऋण'
मृदुला गर्ग - कहानी 'कठगुलाब'



डॉ नीरू मोहन 'वागीश्वरी'                      
शिक्षाविद्, समाजसेविका, लेखिका

WA -134, Ganesh Nagar -2, Shakarpur, East Delhi, Delhi - 110092।                          
संपर्क सूत्र- 9810956507

No comments:

Post a Comment