Saturday, 1 July 2017

चंद्रज्योत्ना-सी आभा लिए **एकता**

विधा- कविता

*खिलती हुई कली के जैसी
उगती हुई सुबह के जैसी
चंद्रज्योत्सना जैसी शीतल
ऐसी है उसकी मुस्कान
जहाँ भी जाए या न भी जाए
खुशबू और प्रकाश फैलाए
ऐसा है उसका एहसास

*बोली में रस,मुख पर आभा
मन निर्मल,स्वरूप है सादा
हर बात से मन पर छाप छपाए
सबको कर देती है मुग्ध
जब बात अपनी वो कह जाए

*सहयोगी व्यक्तित्व है उसका
चिड़िया के जैसे है चहके
एक के दिल को नहीं यह बाला
सबके दिल को मोह से जीते

*नाम भी उसका ऐसा है
उसके व्यक्तित्व के जैसा है
एकता में विश्वास है रखती
अपने नाम को परिपूर्ण है करती

*मैंने तो कर दिया है विवरण
अब तुम ही उसको जानो
साथ तुम्हारे रोज है रहती
उसका तुम सब कहना मानो

***समझ सको तो समझ लो अब तुम
कौन है वह क्या नाम है उसका
बिना बताए जानो अब तुम
पहचान सको पहचानो अब तुम

***चंद्ज्योत्सना-सी आभा उसकी
फूलों-सी मुस्कान है उसकी
एकता के साथ ही साथ
शांति भी वह कायम रखती
इसी पंक्ति में छिपा है
उसका अपना का नाम |||

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