विषय: “ए.आई. इंसानों की नौकरियां ले सकता है”
आरंभिक काव्य-पंक्तियाँ:
“सोच बदली, समय बदल गया,
अब यंत्रों में भी मन पल गया।
मानव की बुद्धि जब मशीन बनी,
तो जीवन का हर रंग ढल गया।
“ए.आई. इंसानों की नौकरियां ले सकता है।”
साथियों, जब से “कृत्रिम बुद्धिमत्ता” या Artificial Intelligence (AI) का नाम सामने आया है, दुनिया में एक नई बहस शुरू हो गई है — क्या मशीनें अब इंसानों की जगह ले लेंगी?
आज ए.आई. हर क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है।
चाहे अस्पताल हों या बैंक, स्कूल हों या उद्योग,
हर जगह ए.आई. अपने तेज़ और सटीक काम से सबको चौंका रहा है।
डॉक्टर की सहायता से ए.आई. सर्जरी कर रहा है,
ड्राइवर की जगह सेल्फ-ड्राइविंग कारें चल रही हैं,
कस्टमर के प्रश्नों का उत्तर चैटबॉट दे रहे हैं,
और यहाँ तक कि लेखन, चित्रकारी और संगीत में भी ए.आई. अपनी प्रतिभा दिखा रहा है।
ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है —
क्या ए.आई. सचमुच इंसानों की नौकरियां छीन लेगा?
उत्तर है — आंशिक रूप से हाँ, लेकिन पूरी तरह नहीं।
हाँ — क्योंकि बहुत-से दोहराव वाले काम, जैसे डेटा एंट्री, अकाउंटिंग, कस्टमर सपोर्ट, मशीनें अधिक सटीक और थकान-रहित तरीके से कर सकती हैं।
कंपनियाँ कम खर्च में तेज़ काम चाहती हैं, इसलिए वे ए.आई. को प्राथमिकता दे रही हैं।
लेकिन साथियों, हर तकनीकी क्रांति अपने साथ नए अवसर भी लाती है।
जब कंप्यूटर आया था, तब भी लोग यही कहते थे — “अब नौकरियां खत्म हो जाएंगी।”
पर हुआ क्या?
नई नौकरियां बनीं — सॉफ्टवेयर इंजीनियर, ग्राफिक डिज़ाइनर, डाटा साइंटिस्ट, और अब “ए.आई. ट्रेनर” और “प्रॉम्प्ट इंजीनियर” जैसे नए पेशे जन्म ले चुके हैं।
ए.आई. नौकरियां नहीं छीनता, वह नौकरियों का स्वरूप बदलता है।
जो लोग समय के साथ खुद को बदलना जानते हैं,
जो नई तकनीक को अपनाते हैं, वही आगे बढ़ते हैं।
हमें यह समझना होगा कि ए.आई. में गणना की शक्ति है,
पर उसमें मानव की भावना, नैतिकता और संवेदना नहीं।
मशीन यह नहीं समझ सकती कि कौन-सा निर्णय मानवीय दृष्टि से सही है।
वह आदेश मानती है, पर सोच नहीं सकती।
इसलिए, ए.आई. इंसान का विकल्प नहीं, बल्कि उसका सहायक बन सकता है।
यदि हम इसे सही दिशा में उपयोग करें,
तो यह हमारे जीवन को सरल, तेज़ और सृजनशील बना सकता है।
आज आवश्यकता है “डर” से नहीं, “दृष्टि” से सोचने की।
हमें शिक्षा में तकनीक को जोड़ना होगा,
बच्चों को रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और नैतिक मूल्यों से सशक्त बनाना होगा।
तभी आने वाला समय मानव और मशीन की साझेदारी का स्वर्ण युग बनेगा।
समापन काव्य-पंक्तियाँ:
“तकनीक चले तो राह बने,
ज्ञान बढ़े तो वाह बने।
मशीनें हों साथी हमारी,
पर संवेदना पहचान हमारी।
डर से नहीं, दृष्टि से जीना,
यही है ए.आई. युग का नगीना।”
अंतिम संदेश:
ए.आई. इंसानों की नौकरियां नहीं छीनता,
बल्कि उन्हें नए आयाम देता है।
जो इंसान सीखने और बदलने का साहस रखता है,
वह हर युग में विजेता बनता है।
इसलिए, ए.आई. से डरिए मत —
उसे अपना मित्र बनाइए, साधन बनाइए और आगे बढ़िए!
–डॉ नीरू मोहन