Friday, 14 November 2025

अब और नहीं आतंकवाद (दोहे)

 अब और नहीं आतंकवाद (दोहे)

अब और नहीं आतंक यह, अब शांति का हो नाद।
मानवता के पथ चलें सब, मिटे विभाजन-वाद॥

घृणा जले, आतंक मिटे, जग में फैले प्रेम।
मानवता के दीप से, उजियारा ले नेम॥

रक्तरंजित राह पर, अब चलना है बंद।
शांतितंत्री जग बने, मानव हो अनुबंध॥

नफ़रत का अवसान हो, उगें करूणा-प्राण।
धरती मां मुस्काए फिर, मिले स्नेह सम्मान॥

हिंसा रूठे, प्रेम फूटे, हो जीवन आनंद।
अब और नहीं दहशतें, विश्व जगे भवबन्ध॥

✍️ लेखनाधिकार सुरक्षित: डॉ. नीरू मोहन

Saturday, 8 November 2025

Artificial Intelligence (AI)“ए.आई. इंसानों की नौकरियां ले सकता है”

विषय: “ए.आई. इंसानों की नौकरियां ले सकता है”

आरंभिक काव्य-पंक्तियाँ:

“सोच बदली, समय बदल गया,

अब यंत्रों में भी मन पल गया।

मानव की बुद्धि जब मशीन बनी,

तो जीवन का हर रंग ढल गया।

“ए.आई. इंसानों की नौकरियां ले सकता है।”

साथियों, जब से “कृत्रिम बुद्धिमत्ता” या Artificial Intelligence (AI) का नाम सामने आया है, दुनिया में एक नई बहस शुरू हो गई है — क्या मशीनें अब इंसानों की जगह ले लेंगी?


आज ए.आई. हर क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है।

चाहे अस्पताल हों या बैंक, स्कूल हों या उद्योग,

हर जगह ए.आई. अपने तेज़ और सटीक काम से सबको चौंका रहा है।

डॉक्टर की सहायता से ए.आई. सर्जरी कर रहा है,

ड्राइवर की जगह सेल्फ-ड्राइविंग कारें चल रही हैं,

कस्टमर के प्रश्नों का उत्तर चैटबॉट दे रहे हैं,

और यहाँ तक कि लेखन, चित्रकारी और संगीत में भी ए.आई. अपनी प्रतिभा दिखा रहा है।


ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है —

क्या ए.आई. सचमुच इंसानों की नौकरियां छीन लेगा?

उत्तर है — आंशिक रूप से हाँ, लेकिन पूरी तरह नहीं।


हाँ — क्योंकि बहुत-से दोहराव वाले काम, जैसे डेटा एंट्री, अकाउंटिंग, कस्टमर सपोर्ट, मशीनें अधिक सटीक और थकान-रहित तरीके से कर सकती हैं।

कंपनियाँ कम खर्च में तेज़ काम चाहती हैं, इसलिए वे ए.आई. को प्राथमिकता दे रही हैं।


लेकिन साथियों, हर तकनीकी क्रांति अपने साथ नए अवसर भी लाती है।

जब कंप्यूटर आया था, तब भी लोग यही कहते थे — “अब नौकरियां खत्म हो जाएंगी।”

पर हुआ क्या?

नई नौकरियां बनीं — सॉफ्टवेयर इंजीनियर, ग्राफिक डिज़ाइनर, डाटा साइंटिस्ट, और अब “ए.आई. ट्रेनर” और “प्रॉम्प्ट इंजीनियर” जैसे नए पेशे जन्म ले चुके हैं।


ए.आई. नौकरियां नहीं छीनता, वह नौकरियों का स्वरूप बदलता है।

जो लोग समय के साथ खुद को बदलना जानते हैं,

जो नई तकनीक को अपनाते हैं, वही आगे बढ़ते हैं।


हमें यह समझना होगा कि ए.आई. में गणना की शक्ति है,

पर उसमें मानव की भावना, नैतिकता और संवेदना नहीं।

मशीन यह नहीं समझ सकती कि कौन-सा निर्णय मानवीय दृष्टि से सही है।

वह आदेश मानती है, पर सोच नहीं सकती।


इसलिए, ए.आई. इंसान का विकल्प नहीं, बल्कि उसका सहायक बन सकता है।

यदि हम इसे सही दिशा में उपयोग करें,

तो यह हमारे जीवन को सरल, तेज़ और सृजनशील बना सकता है।


आज आवश्यकता है “डर” से नहीं, “दृष्टि” से सोचने की।

हमें शिक्षा में तकनीक को जोड़ना होगा,

बच्चों को रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और नैतिक मूल्यों से सशक्त बनाना होगा।

तभी आने वाला समय मानव और मशीन की साझेदारी का स्वर्ण युग बनेगा।

समापन काव्य-पंक्तियाँ:

“तकनीक चले तो राह बने,

ज्ञान बढ़े तो वाह बने।

मशीनें हों साथी हमारी,

पर संवेदना पहचान हमारी।

डर से नहीं, दृष्टि से जीना,

यही है ए.आई. युग का नगीना।”

अंतिम संदेश:

ए.आई. इंसानों की नौकरियां नहीं छीनता,

बल्कि उन्हें नए आयाम देता है।

जो इंसान सीखने और बदलने का साहस रखता है,

वह हर युग में विजेता बनता है।

इसलिए, ए.आई. से डरिए मत —

उसे अपना मित्र बनाइए, साधन बनाइए और आगे बढ़िए! 

–डॉ नीरू मोहन 

“ए.आई. इंसानों की नौकरियां ले सकता है”

विषय: “ए.आई. इंसानों की नौकरियां ले सकता है”


आरंभिक काव्य-पंक्तियाँ:

“नव युग आया, नव औजार,

मानव बुद्धि का विस्तृत संसार।

पर प्रश्न यही हर दिल में उठता—

क्या मानव अब यंत्रों से डरता?”

“ए.आई. इंसानों की नौकरियां ले सकता है।”

कृत्रिम बुद्धिमत्ता अर्थात Artificial Intelligence (AI) — मानव मस्तिष्क की वह तकनीकी प्रतिध्वनि है जो अब सोच सकती है, सीख सकती है और निर्णय ले सकती है। आज ए.आई. डॉक्टर की तरह निदान करती है, वकील की तरह केस स्टडी पढ़ती है, ड्राइवर की तरह गाड़ी चलाती है और यहाँ तक कि लेखक की तरह लेख भी लिख देती है।


ऐसे में स्वाभाविक प्रश्न उठता है — क्या ए.आई. इंसानों की नौकरियां छीन लेगा?

हाँ, कुछ हद तक यह सत्य है।

मशीनें अब डेटा एंट्री, बैंकिंग, अकाउंटिंग, ग्राहक सेवा, यहाँ तक कि समाचार लेखन जैसे कई क्षेत्रों में इंसानों की जगह ले रही हैं। कंपनियाँ कम खर्च में तेज़ और त्रुटिरहित काम चाहती हैं — और यह सुविधा ए.आई. आसानी से दे देती है।


परन्तु साथियों, हमें यह भी समझना होगा कि हर परिवर्तन के साथ नया अवसर भी जन्म लेता है।

जब मशीनें आई थीं, तब भी लोगों ने यही डर जताया था कि मजदूरी खत्म हो जाएगी;

पर हुआ इसके उलट — नई नौकरियां पैदा हुईं, जैसे मैकेनिक, इंजीनियर, टेक्निशियन, और अब “डेटा एनालिस्ट”, “ए.आई. ट्रेनर”, “प्रॉम्प्ट इंजीनियर” जैसी भूमिकाएं सामने आ रही हैं।


ए.आई. नौकरियां नहीं छीनता, बल्कि नौकरियों का स्वरूप बदलता है।

जो व्यक्ति समय के साथ खुद को बदल लेता है, वही टिकता है।

आज हमें डरने की नहीं, सीखने की जरूरत है —

नई तकनीक को अपनाने की, उसे समझने की, और उसके साथ तालमेल बिठाने की।


सच्चाई यह है कि ए.आई. में “बुद्धि” है, पर “भावना” नहीं।

यह मनुष्य की “संवेदना”, “रचनात्मकता” और “नैतिकता” को नहीं समझ सकता।

मशीनें आदेश मानती हैं, पर विचार नहीं करतीं।

इसलिए, इंसान की भूमिका खत्म नहीं होगी — वह रूपांतरित होगी।


हमारा लक्ष्य होना चाहिए — “ए.आई. से प्रतिस्पर्धा” नहीं, बल्कि “ए.आई. के साथ सहयोग।”

यदि हम शिक्षा में तकनीक को मित्र की तरह अपनाएँ, तो ए.आई. हमारी क्षमता को दस गुना बढ़ा सकता है।

जैसे शिक्षक के लिए यह एक सहायक हो सकता है, डॉक्टर के लिए निदान का सहयोगी, और लेखक के लिए सृजन का साथी।

समापन काव्य-पंक्तियाँ:

“यंत्र चलें तो जग बदलें, पर मानव का मन ही रचे नया कल।

डर से नहीं, ज्ञान से जीतो — यही है प्रगति का सच्चा पल।”

संदेश:

ए.आई. हमारा प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि हमारी कल्पनाशक्ति का विस्तार है।

यदि हम इसे सही दिशा में उपयोग करें, तो यह नौकरियां छीनने वाला नहीं,

बल्कि नौकरियां सृजित करने वाला साथी बन सकता है। 

– डॉ नीरू मोहन 

⚔️🔥 जय नवयुग वीरों की 🔥⚔️

⚔️🔥 जय नवयुग वीरों की 🔥⚔️

(वीर रस पर आधारित समसामयिक प्रेरक कविता)

उठो युवाओं! रणभूमि यही है,

कर्म ही पूजा, यही साधना सही है।

अब वाणी नहीं, अब कार्रवाई चाहिए,

भारत को फिर अग्रसर बनाना है — यही लड़ाई चाहिए!


तलवार नहीं, विचार हमारी शक्ति हैं,

सत्य और कर्म ही हमारी भक्ति हैं।

जो झुके नहीं अन्याय के साए में,

वही वीर है इस नव युग की छाए में!


सुनो, समय तुम्हें पुकार रहा है,

धैर्य की ज्वाला फिर सुलगा रहा है।

देश नहीं झुकेगा बिके विचारों से,

वीर खड़े हैं अब संस्कारों से।


> जो मिट्टी के लिए जीता है, वही अमर कहलाता है,

जो वतन के लिए जलता है, वही सूर्य बन जाता है।

अब संघर्ष ज्ञान का रण है,

हर छात्र सिपाही, हर शिक्षक धन है।

कलम चलाओ, स्याही से तीर बनाओ,

भ्रष्ट अंधेरों में सच का दीप जलाओ!


वो वीर नहीं जो शस्त्र संभाले,

वो वीर है जो सृष्टि संभाले।

तकनीक में भी संस्कृति पले,

नव निर्माण का भारत फले।


अब नारी नहीं अबला कहलाए,

वो भी रण में आगे आए।

घर की दीवारों से निकल कर देखो,

भारत की शक्ति कैसे दमक उठे वो!


> उसकी आँखों में स्वाभिमान की ज्वाला है,

वही तो आज के भारत की परिभाषा है।


धरती की पीड़ा अब सुनो,

पेड़ों की सांसें अब चुनो।

जो हरियाली का प्रहरी बने,

वही धरती का सच्चा सपूत तने।


> वीर वही जो प्रकृति बचाए,

धरा को माँ मान अपनाए।


अब आओ फिर प्रतिज्ञा लें,

हर बुराई से युद्ध छेड़ें।

लोभ, भेद और द्वेष मिटाएँ,

सत्य, कर्म और प्रेम जगाएँ।


जब युवा चलेंगे दीप बनाकर,

अंधकार भागेगा लजाकर।

भारत फिर स्वर्ण युग पाएगा,

विश्व उसे शीश झुकाएगा।


जय-जय भारत, जय-जय वीर,

साहस गगन, संकल्प अधीर।

जन-जन बोले ऊँचे स्वर में,

“वीर जन्मे हैं इस धरती पर में!”

– डॉ नीरू मोहन 


🌾🔥 नवभारत का शंखनाद 🔥🌾

 🌾🔥 नवभारत का शंखनाद 🔥🌾

(वीर रस प्रधान समसामयिक कविता)

जागो नवयुवक! ये भारत पुकारे,

भविष्य तुम्हारा तुम्हीं से सँवारे।

वक़्त का पहरा सच्चाई माँगे,

अब कर्मों से इतिहास तुम्हीं लिख डाले!


अब भी जलते हैं प्रश्न अंधेरों में,

क्यों झुके हैं दीपक शहरों में?

गाँव अभी भी प्यासा, भूखा,

कहाँ खो गया वो ‘सपनों का सुखा’?


पर सुनो, जो झुक जाए समय के आगे, वो वीर नहीं कहलाता,

जो टूटे विपत्ति में फिर भी मुस्काए, वही भारत कहलाता!


अब शिक्षा का दीप जलाना होगा,

हर अंधियारे में उजियारा फैलाना होगा।

ज्ञान ही रण है, कलम ही तलवार,

सच्चे सपूतों का यही संस्कार!


किताबें बनेंगी ढाल हमारी,

तकनीकी बनेगी जयकार हमारी!

संकल्पों की मशाल उठाओ,

हर मन में नव युग की आभा जगाओ!


प्रकृति कराह रही, धरती जल रही,

मानव अपनी ही छाया से डर रही।

ओ वीरों! अब रण पर्यावरण का है,

बचाना धरा, यही धर्म हमारा है!


जो पेड़ लगाता है, वही अमरत्व पाता है,

जो पृथ्वी सजाता है, वही सच्चा वीर कहलाता है!


नारी का सम्मान अब संकल्प बने,

हर मन में आदर का अंकुर फले।

वो माँ है, शक्ति है, सृजन की धारा,

उसके बिना अधूरा है सारा।


जो स्त्री का गौरव पहचाने,

वही युग का सच्चा वीर ठाने।


अब भ्रष्ट विचारों की बेड़ी तोड़ो,

नव समाज की नींव गढ़ो।

स्वच्छ सोच, स्वच्छ नगर बनाओ,

हर दिल में भारत बसाओ।


वीर वही जो खुद को जीते,

भीतरी अंधकार को मिटा कर रीते।


युवा शक्ति अब मौन न रहे,

सत्य की जय का घोष करे।

कर्म ही पूजा, सेवा ही धर्म,

भारत नवयुग का ले नया स्वरम।


नव निर्माण की ज्योति जलाओ,

भारत को फिर स्वर्ण बनाओ।


हम बदलेंगे, हम गढ़ेंगे,

भारत फिर से विश्व-शिखर चढ़ेगा।

राष्ट्र प्रथम, यही हमारा मंत्र,

हर हृदय बने अब देश का केंद्र।


वंदे मातरम् का जयघोष गूंजे,

हर सीमा पर साहस फूले।

जब भारत बोले – “हम हैं तैयार!”,

तब विश्व झुके, कहे – “जय वीर भारत!”

लेखाधिकारी सुरक्षित 

डॉ नीरू मोहन 


Saturday, 3 May 2025

एक बहन जो बन गई डायन


एक बहन ने लूटा अपने सगे बड़े भाई का घर 


 

Friday, 2 May 2025

निरुपमा : संघर्षों के सैलाब पर स्त्री जीवन


यह उपन्यास एक दस्तावेज़ है नारी के संघर्षों का। पूरा जीवन अपने घर की खोज का। कौन–सा और किसका घर अपना है। मां का या सास का ..... जीवन के अंतिम पड़ाव पर पता चलता है कि न ही मां का मायका और न ही सास का ससुराल दोनों ही उसके अपने नहीं हैं क्योंकि..... ???
इसका उत्तर पता करना है तो ज़रूर पढ़ें निरुपमा को ।
जीवन और जीव की सच्चाई को जानने के लिए 150 पृष्ठ का सैलाब समेटे और जानें अपने ही खून के रिश्तों की सच्चाई।
आपको आपकी अपनी ही कहानी लगेगी। 
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