Wednesday, 8 November 2017

#प्रदुम्न की हत्या व बाल अपराध

#प्रदुम्न की हत्या व बाल अपराध
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प्रदुम्न की हत्या उसी स्कूल के ग्यारहवी के छात्र द्वारा इसलिये की गई कि वो हत्यारा अपने स्कूल की PTM को टलवाना चाहता था ! उसे लगा कि बच्चे की हत्या करके वो वाँछित उद्देश्य को पा लेगा ! आज बाल अपराधी अपनी आकाँक्षाओं को पूरा करने के लिये वो किसी भी अपराध तक जा सकता है  ? कितनी हैरानी और दुखद स्थिति है ये ?
कहा जाता है कि बच्चे मन के सच्चे होते है ।  उनका निश्छल मन, कोमल भावनाये , बिना किसी दुराग्रह से ग्रसित हुए जो मन होता है वही करती है पर वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल साइट्स का प्रभाव उनके दिलो दिमाग पर घर करने लगा है और शायद यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में अपने देश में बच्चों में अपराधिक प्रवृति में आश्चर्यजनक रूप से 13% की वृद्धि हुई है  जो अत्यन्त ही चिंता का विषय है। इधर बाल अपराधी अत्यंत क्रूर और चौकने वाले अपराधों मे संलिप्त रहे हैं जो अब  खतरनाक स्थिति मे पहुँच गया है !
इस बात में दो मत नहीं हो सकता कि बाल- अपराधों की बढती संख्या हमारे देश के भविष्य के लिए खतरे का संकेत हैं। बच्चे हमारे देश का भविष्य है इन्हे संस्कारवान , सद्चरित्र और सुदृढ़ बनाने का दायित्व परिवार , समाज और सरकार का है , लेकिन वर्तमान सामाजिक परिवेश और अनेक सामाजिक कमजोरियों और सरकार के ढुलमुल रवैये के चलते हमारे बच्चे पतन की ओर अग्रसित हो रहे है।
बाल अपराधों की ब़ढती संख्या हमारे समाज के माथे एक ऐसा कलंक है जिससे धुलने के प्रयास तुरंत शुरू किये जाने चाहिए। जहाँ एक तरफ इसके लिए परिवार , माँ बाप को सतर्क होने की जरुरत है  दूसरी तरफ सामाजिक स्तर पर भी इसके लिए  कदम उठाने  की जरूरत है !
भारतीय संविधान में निहित वर्तमान कानून के अनुसार, सोलह वर्ष की आयु तक के बच्चे अगर कोई ऐसा कृत्य करें जो समाज या कानून की नजर में अपराध है तो ऐसे अपराधियों को बाल अपराधी की श्रेणी में रखा जाता है। यद्यपि निर्भया कांड के बाद सोलह साल की उम्र पर अनेक वाद विवाद हुए।तमाम विवादों के बाद 15 जनवरी   2016 से नया किशोर न्याय अधिनियम 2015 लागू हो गया है !
ऐसा माना जाता है कि बाल्यावस्था और किशोरावस्था में व्यक्तित्व के निर्माण तथा व्यवहार के निर्धारण में बच्चे को मिल रहे वातावरण का बहुत बड़ा हाथ होता है। वास्तव में बच्चों द्वारा किए गए अनुचित व्यवहार के लिये बालक स्वयं नहीं बल्कि उसकी परिस्थितियां उत्तरदायी होती है ! 
बाल अपराध को रोकने के लिये मनो चिकित्सा व्यवहार चिकित्सा क्रिया चिकित्सा व परिवेश चिकित्सा के द्वारा बाल अपराध को रोका जा सकता है !
वैयक्तिक स्वतंत्रता मे नैतिक मूल्य बिखर रहे हैं अवसाद के शिकार होकर किशोर  बाल अपराध कर रहे हैं ! अफसोस व दर्दनाक है कि उस प्रदुम्न के मा बाप का क्या दोष व अपराध है कि उन्होने एक बाल अपराधी की निजी आकाँक्षाओं की क्षणिक पूर्ति मे अपना होनहार हमेशा के लिये खो दिया ! !
वी के पांडे

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