इंसानियत कहीं खो गई
अरुण घर में प्रवेश करता है आज भी रोशनी बहुत गुस्से में दिखाई दे रही थी । बच्चे दूसरे कमरे में सहमे से बैठे थे ।
अरुण- क्या हुआ रोशनी घर में सन्नाटा क्यों कर रखा है बहुत गुस्से में दिखई दे रही हो ।
रोशनी- बस अब मेरे से नहीं उठाई जाती तुम्हारे बच्चों की जिम्मेदारी । मेरे बस का नहीं है इनकी देखभाल करना ।
अरूण- ऐसी क्या बात हो गई जो तुम इतनी आग बबूला हो रही हो
वंश- अरुण का बेटा पापा को देख कर दौड़कर आता है और सीने से लग जाता है । हिचकियाँ मानो खत्म ही नहीं हो रही है ।
शरण- पापा को देखकर दौड़ी-दौड़ी आती है और सीने से लग जाती है ।
अरूण- बच्चों के गाल पर निशान देखकर क्या हुआ बच्चो तुम्हारे गाल पर यह निशान कैसा।
बच्चे कुछ कह नहीं पाते ।
बच्चों की कमर को सहलाते हुए पूछता है । बच्चे करहाने लगते हैं । अरूण बच्चों की कमर देखता है बच्चों की कमर पर मार के निशान नजर आते हैं ।
उसको समझने में देर नहीं लगती कि रोशनी ने आज भी बच्चों को बिना बात के मारा है ।
अरूण- रोशनी यह कहाँ कि इंसानियत है । यह बच्चे हैं कोई जानवर नहीं है । तुम्हारा बच्चों के प्रति यह बर्ताव अब मैं बर्दाश्त नहीं करूँगा । तुम्हें शादी से पहले ही पता था कि मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं उनको माँ की जरूरत है । मुझे उनके लिए माँ चाहिए जो उन्हें प्यार दे कसाई नहीं जो रोज-रोज उनको मारे-पीटे ।
रोशनी- मुझे नहीं पता तुम इन्हें कहीं भी छोड़कर आओ मैं नहीं जानती । मैं इनके साथ नहीं रह सकती ।
अरुण- बिन माँ के बच्चों को मैं कहाँ छोड़कर आऊँ । मेरे सिवा इनका कोई और नहीं है ।
रोशनी- मैं क्या करूँ , इनको भी इनकी माँ के पास पहुँचा दो ।
रोशनी- तुम यह कैसी बात कर रही हो कैसे तुम्हारी ममता तुम्हें यह कहने और करने की इजाज़त देती है ? क्या तुम्हारे अंदर बिल्कुल भी ममता नहीं है ? क्या तुम्हारी ममता मर गई है ?
रोशनी- हाँ मर गई है मेरी ममता । मैं कोई इनकी सगी माँ थोड़ी हूँ जो इनके नाज नखरे उठाऊँ । अपने सीने से लगा कर रखूँ । मैं उनको बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकती इनको अनाथ आश्रम में छोड़ आओ । कल को मेरे भी बच्चे होंगे । मैं अपनी ममता का बँटवारा किसी ओर के बच्चों के साथ नहीं कर सकती ।
अरुण- ये किसी ओर के बच्चे नहीं मेरे बच्चे हैं । रोशनी तुमने आज साबित कर ही दिया कि सगी माँ सगी और सौतेली माँ सौतेली ही होती है । मुझे अपने बच्चों के लिए सिर्फ माँ चाहिए थी । सौतेली माँ नहीं ।
रश्मि- मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी जब इन बच्चों को अनाथ आश्रम में छोड़ कर आ जाओ तब मुझे संदेश पहुँचा देना मैं वापस आ जाऊँगी । रोशनी झटके से दरवाजा खोलती है ।
अरुण- रश्मि को रोककर कहता है रश्मि तुम्हें वापस आने की जरूरत नहीं है मुझे अपने बच्चों के लिए माँ चाहिए थी जो उन्हें प्यार, दुलार और सुरक्षा दे सके अगर मेरे बच्चे माँ के होते हुए भी सुरक्षित नहीं तो मुझे ऐसा जीवन साथी नहीं चाहिए मैं अपने स्वार्थ के लिए अपने बच्चों के जीवन में काँटे नहीं भर सकता । अलविदा ! वापस आने की सोचना भी मत ।
रोशनी गुस्से से बाहर निकलती है । अरुण और दोनों बच्चों को हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाती है । उसकी ममता बिल्कुल भी उसको झंझोरती नहीं उसकी इंसानियत तनिक भी उसे कचोटती नहीँ । ऐसी भी माँ होती हैं ।
कहते हैं न एक सिक्के के दो पहलू होते हैं ।
उस दिन से दोनों बच्चों के साथ अरूण अकेले रहने लगा । माँ और पिता का प्यार दोनों बच्चों को पिता से ही मिलने लगा ।
क्या माँ का एक रूप ऐसा भी होता है जिसमें इंसानियत को ढूँढना पड़ता है ? क्या सगा और सौतेला यह दो शब्द रिश्तों और प्यार के मायने बदल देते हैं ?
जरा सोचिए ??
क्यों एक पुरुष को दूसरी शादी करने की जरूरत होती है ?
इस निर्दयी समाज में पुरुष न होते हुए भी जब एक माँ अपने बच्चों को अकेले पाल सकती है, तो पुरुष क्यों नहीं ?
यह जीवन की सच्चाई है जो हमें समाज में कहीं न कहीं देखने को मिल ही जाएगी । कुछ सौतेली माँ बच्चों को स्वयं से भी ज्यादा प्यार करती हैं और कुछ अपने अहम में आकर बच्चों में भी भेदभाव करती है ।
बच्चे तो बच्चे हैं सिर्फ यही सत्य है ।
No comments:
Post a Comment