नारी समाज की ऐसी संवेदनशील पात्र हैं जो सदियों से करुणा दया प्यार ममता की मूरत कही जाती हैं । कहते हैं नारी तेरे रूप अनेक कहीं कौशल्या तो कहीं केकैय अनेक । नारी इस जीव लोक पर ईश्वर का उपहार है जो सृष्टि के निर्माण के लिए ईश्वर द्वारा पृथ्वी पर अवतरित हुआ है । नारी ईश्वर की एक ऐसी संरचना है जो सर्वशक्तिशाली कही गई है जिसमें सभी कार्यों को करने की क्षमता और शक्ति है । नारी सौंदर्य का प्रतीक , वीरता की मिसाल , ममता प्यार करूणा और दया की मूरत कही जाती है ।
नारी संपूर्ण रूप से सक्षम है अगर हम इतिहास की ओर रुख करते हैं तो हमें अनेक ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं जिसमें हमें नारी के समस्त रूपों का चित्रण मिलता है । मिसाल के तौर पर झांसी की रानी, रानी पद्मिनी , हाड़ा रानी, पन्नाधाय, मदर टेरेसा, महादेवी वर्मा ऐसे कुछ उदाहरण आज भी जीवांत हैं । हम सदियों से कहते आ रहे हैं , "नारी तू कमजोर नहीं शक्ति शक्ति की संवाहक है, नारी सर्व शक्तिशाली है , नारी नर को जन्म देने वाली है।" फिर भी आज इस समाज में उसी नारी को ,जो पूजनीय हैं कन्या के रूप में निर्ममता से मारा जाता है । उसका अपमान किया जाता है । उसको सरेआम बेपर्दा किया जाता है । यह कैसा समाज है जो जिससे जन्म लेता है उसको ही जन्म से पहले ही मार देता है ।
आज भी समाज में ऐसे समुदाय हैं जो लड़कियों को जन्म से पहले ही मार देते हैं उनको शिक्षा का अधिकार नहीं देते उनको घर से बाहर नहीं निकलने देते । मेरी पुस्तक में समाहित रचनाओं के माध्यम से साहित्य की अनेक विधाओं द्वारा नारी के प्रत्येक रूप का चित्रण किया गया है । समाज में उनकी व्यथा और उसके सुधार की ओर दिशा निर्देश किया गया है । यह एक कोशिश मात्र है नारी की समस्त रूपों का चित्रण समाज के सामने प्रस्तुत करने का । आज की नारी को किसी सहारे की जरूरत नहीं , किसी आरक्षण की जरूरत नहीं है और किसी के सहारे की जरूुरत नहीं है बल्कि आज वह इतनी सक्षम है कि अकेले कंधों पर पूरे परिवार का पालन पोषण कर सकती हैं घर के साथ-साथ बाहर भी अपनी भूमिका निभा सकती है । आज नारी पुरुष के साथ कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर चल रही है। बल्कि एक कदम आगे है कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा ।
समर्पण
माँ शब्द की अनुभूति ही मन के तारों को झंकृत कर देती है । किताब को लिखने की प्रेरणा मेरी माँ स्वर्गीय 'श्रीमती पदम देवी' हैं । जो आज अपने स्थूल रूप में इस जीव लोक में विद्यमान नहीं है परंतु अपने सूक्ष्म रुप में हमेशा मेरे मन मस्तिष्क में निवास करती है । मेरी माँ ही मेरी प्रेरणा हैं जो मेरे पास न होते हुए भी हमेशा मेरी प्रेरणा रही हैं । इस किताब में जितनी भी रचनाएँ रची गई हैं उनको लिखते श्रण मेरी माँ मेरी प्रेरणा बन कर मेरी आँखों में और मस्तिष्क के हर कोने में विद्यमान रही हैं जहाँ से विचार बाहर निकल कर लेखनी के रूप में इस श्वेत पत्र पर सिमट कर आपके समक्ष प्रस्तुत हो रहे हैं ।
इस पुस्तक का प्रत्येक शब्द मेरी माँ और उन सभी महिलाओं को समर्पित है जो अपने परिवार के लिए अपने जीवन का हर अंश समर्पित करती हैं । पूरे ब्रह्मांड की समस्त नारी प्रजाति को शब्दों से गुंफित सुमन सुरभि अर्पित करती हूँ । और ईश्वर से कामना करती हूँ कि वह हर नारी को इतनी शक्ति धैर्य साहस प्रदान करें कि वह इस जीव लोक पर हमेशा अच्छे संस्कार और गुणों को प्रवाहित करती रहें और अपने कर्तव्य मार्ग पर बने रह कर इस लोक का उद्यार करती रहे।
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