अजन्मी बेटी की पुकार
क्या तुझे नहीं सुनाई देती है मेरी चींख ? क्या तुझे दर्द नहीं होता है ?
कैसे तेरा दिल करता है मुझे गर्भ में ही मारने का ?
कैसे चलाता है तू छुरी मेरे हाथों पर ?
कैसे प्रहार करता है तू हथौड़े से मेरे सिर पर ?
कैसे तार-तार कर देता है तू मेरा अंग-अंग ?
कैसे देख पाता है खून से लथ-पथ अपने हाथ ?
क्या नहीं सुनाई देती तुझे मेरी चीख-पुकार पुकार ?
सोचो, समझो, विचारों कन्या रूपी धन को यूँ निर्ममता से न मारो ।
जब कन्या नहीं होगी तो वंश कैसे चलेगा । देखता ही रह जाएगा निर्वंश ही रहेगा ।
माँ की कोख में कन्या रूपी धन भरा है । बाहर मानव उसको ध्वंस करने पर तुला है ।
क्यों उसकी ममता को न जान पाता है ये नर ?
क्यों कोख में ही नन्हीं आवाज को दबाता ये निर्लज ?
क्यों नहीं सुनता है जग इस ख़ामोश मूक पीड़ा को ?
जो चीख-चीखकर कहना चाहती है ।
न मारो , न मारो !
होता है दर्द मुझको भी हर अंग-अंग पर ।
छलनी कर देता है मेरा हर कतरा -कतरा
प्रहार जब होता है औजा़रों का मुझ पर ।
जिस औजार से हाथ और पैर काटे जाते है , खून का दरिया बहता-सा प्रतीत होता है ।
नहीं क्या देती तुम्हें सुनाई मेरी गुहार,
प्रहार कर देता है मस्तिष्क पर बिना सोच- विचार ।
पाषाण-सा हृदय तेरा यह कैसा है बंदे ।
चंद पैसों की खातिर मुझे मार देता है जन्म से पहले।
इस भू-लोक पर डॉक्टर के रूप में भगवान कहे जाते हो ।
फिर भी जीवन देने वाले तुम, कसाई की संज्ञा क्यों पाते हो ।
माँ की कोख में ही मार देते हो मुझके पल में ।
उसकी कोख में अस्तित्व मेरा मिटा कर कोख को उसकी उजाड़ देते हो क्षण में ।
अपने पेशे को सरेआम नापाक करते हो ।
माँ की ममता को उसकी कोख में ही दफन करते हो ।
पूछो उस माँ से जो नौ महीने एक जीव को पालती है ।
बिना भेद के बेटी और बेटे को कोख में संभालती है ।
क्या उस से किसी ने कभी पूछा है ?
बेटा और बेटी में सबसे ज्यादा किसको वह चाहती है ।
नहीं मिल सकता उत्तर कभी तुम्हें इस बात का किसी से भी।
क्योंकि माँ जैसा हृदय नहीं रखता इस जहान में कोई भी ।
अपनी करनी को इस जग में ही रह कर सुधार ।
कन्या रूपी धन की हत्या का न ले जीवन में भार ।
अधिकार है उसको भी इस जीव लोक पर आने का ।
भगवान की बनाई दुनिया में स्थान पाने का ।
डॉक्टर के पेशे की लाज रख अब तू ।
नीरू कहती कन्या है संपूर्ण धन जीवन दे उसको तू ।
प्रण कर ले , प्रण कर ले
किसी कन्या को कोख में न मारेगा ।
जीवन देना तेरा फर्ज़ है अपना फर्ज अदा कर अब तू ।
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