यह उस माँ की कहानी है जिसने अपने बच्चों में ही भेदभाव किया है और बच्चों को एक दूसरे से अलग किया है भाई को बहन से और बहन को भाभी के प्यार से दूर रखा है । माँ ऐसी भी होती है जो अपने ही बच्चों में दरार पैदा करती है । बच्चों की गलतियों में उन का साथ देती है ।
*यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम और स्थान बदल दिए गए हैं ।
*रमन का परिवार हैदराबाद में रहता है ।
रमन की उम्र आठ साल की है । वह बचपन से ही एक लड़की को चाहता है । यह लड़की रमन के घर के नज़दीक अपने चाचा के रहने अाती है । लड़की का नाम रागिनी है । रमन को लड़की की मासूमियत बहुत भाती है बचपन से ही उसको पसंद करने लगता है । दिन बीतते हैं, साल बीतते हैं । इस बीच रमन की लड़की से कोई मुलाकात नहीं होती मगर रमन के दिल में रागिनी आज भी राज करती है ।
*एक दिन रमन और उसके परिवार की मुलाकात दोबारा उस लड़की के परिवार से एक सभागार में होती है । जहाँ दोनों का आमना सामना होता है । रमन रागिनी को पहचान जाता है और माता-पिता के पास जाकर रागिनी के बारे में बताता है रागिनी से शादी की मंशा भी जाहिर करता है । रमन के पिता को तो पता है कि रमन रागिनी को बचपन से ही प्यार करता है । उनके द्वारा बहुत सी लड़कियाँ दिखाने पर भी सिर्फ रागिनी से शादी करने का प्रस्ताव रहता है ।
*रमन के पिता जरा भी देर नहीं करते सभागार में रागिनी के पिता से मिलकर रमन के मन की बात बता देते हैं । रागिनी के पिता भी रागिनी की शादी के लिए चिंतित थे । रिश्ता घर चल कर आया है मानो जैसे उनकी सारी चिंता दूर हो गई हो । परिवार देखा दिखाया है , जात बिरादरी भी अपनी है रागिनी के पिता ज़रा भी देरी नहीं करते लड़के को देखकर वही बात पक्की कर देते हैं । रागिनी भी बचपन से रमन को मन ही मन पसंद करती थी । उसे यह सब सपना सा प्रतीत हो रहा था जो सपने में सोचा भी नहीं था वह सब उसके आगे हो रहा था उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था कि रमन उसका जीवनसाथी बनेगा ।
*रागिनी की नानी को यह रिश्ता मन नहीं भा रहा था क्योंकि रागनी की नानी रमन के परिवार को अच्छी तरह जानती थी । रागिनी की नानी ने रागिनी की माँ को खूब समझाया मगर पूनम रागिनी की माँ ने अपनी माँ की एक न मानी । पूनम के लिए रमन से अच्छा वर रागिनी के लिए हो ही नहीं सकता था । सुंदर, सुशील और बचपन से प्यार करने वाला । पूनम के मुताबिक रमन रागिनी को कभी दुखी नहीं रहेगा । माँ ने पूनम को बहुत समझाया कि पार्वती का स्वभाव अच्छा नहीं है वह कटु बोलने वाली महिला है मगर पूनम ने माँ की एक न सुनी और रमन रागिनी का विवाह पक्का कर दिया ।
*रागिनी और रमन की शादी हो जाती है । शुरू के कुछ दिन तो सही चलते हैं परंतु पार्वती का कटु स्वभाव सामने आ जाता है उसे बहू खटकने लगती है । बेटे का बहू की तरफ खिंचाव पार्वती सहन नहीं कर पाती । घर में लड़ाई-झगड़े शुरू हो जाते हैं । रमन की बहन सुमन अपने ससुराल में नहीं रहती पति को छोड़े दस साल हो गए हैं वह और उसका बेटा कुश भी वहीं रहता है । सुमन हर गलत बात में मां-बाप का साथ देती है और भाई को भला बुरा कहती है । रागनी स्वभाव से शील, गुणी और बुद्धिमान है सभी उसकी तारीफ़ करते हैं मगर रमन की माँ , बहन और पिता से यह हज़म नहीं होता । माँ ,भाई और बहन के बीच गलतफ़हमी पैदा कर देती है और बहन भाई को भला बुरा कहने से नहीं कतराती है । सुमन बड़े भाई-भाभी को भला बुरा कहती हैं इस पर भी पार्वती सुमल को डाटने के बजाय उसका साथ देती है । पार्वती ने हमेशा बेटी की गलतियों को नज़रांदाज़ किया है शायद इसीलिए उसका संसार आज तक नहीं बस पाया । पार्वती आज भी अपनी बेटी का साथ देती है और बहू को भाई बहन के रिश्ते में दरार डालने का दोषी ठहराती है ।
रमन की बहन हर रोज़ की लड़ाई का कारण बनती है ।
*सुमन अपने ससुराल छोड़कर अपने पति को छोड़कर माँ-बाप के घर में रहती है । भाई की शादी के कुछ समय पश्चात सुमन
की भी अभिलाषाएँ जागती हैं वह अपने पति के पास वापिस जाना चाहती है मगर पार्वती और जगदीश रमन के पिता सुमन का तलाक करवाना चाहते हैं और उसकी दूसरी शादी के बारे में सोचते हैं उनको सुमन के लिए लड़का भी पसंद करके रखा है जो यदा कदा उनके घर भी आता रहता है लेकिन सुमन दूसरी शादी नहीं करना चाहती वह वापिस राकेश अपने पति के पास जाना चाहती है । माँ-बाप की मर्ज़ी के खिलाफ जाकर कोट में पति के खिलाफ़ चल रहा केस वापिस ले लेती है और पति से सुलाह करके ससुराल चली जाती है । माँ को सुमन का ससुराल जाना अच्छा नहीं लगता और वह रागिनी को कोसती रहती है कि उसके कारण उसकी बेटी उसको छोड़ कर चली गई ।
*यह कैसी माँ है बहू को धन्यवाद देने के बजाए उसे कोस रही है । उसे इस बात से खुशी नहीं हो रही कि उसकी बेटी का घर बस रहा है । बेटी की नादानियों के कारण जो घर टूट गया था वह घर दस साल बाद फिर से आबाद हो रहा है । वह खुश होने के बजाय बेटी के जाने का मातम मना रही थी । पड़ोसियों , रिश्तेदारों ने बहू को शुभ बताया जिसके आने से सुमन की बुद्धि सही मार्ग पर आई और वह अपने घर चली गई । पास-पड़ोस रिश्तेदार भी रागिनी की तारीफ़ करते नहीं थकतेे थे । लेकिन उस दिन के बाद रागिनी की जिंदगी ने एक अलग ही मोड़ ले लिया था । सास रोज़ आए दिन घर में क्लेश करती जिससे रमन और रागिनी के बीच मतभेद उत्पन्न होने लगे । रोज़-रोज़ की लड़ाई , रोज का खाना फिकना , रोज बिना खाना खाए सो जाना मानो यह रागिनी और रमन की दिनचर्या बन गई थी । क्लेशों के चलते दो बच्चों के माता-पिता भी बन गए समय बीतता गया रमन के माँ-बाप ने रमन और रागिनी को अलग रहने के लिए मजबूर कर दिया न चाहते हुए भी रमन को अलग होना पड़ा । रागिनी ने पढ़ाई शुरु कर दी पढ़ते-पढ़ते नौकरी करने लगी घर भी संभालती और काम पर भी जाती । रागिनी का जीवन ऐसे ही दिशा लेने लगा । इसी बीच रागिनी की माँ का देहांत हो गया । रागिनी के लिए यह बहुत ही दुखद घड़ी थी अब ऐसा कोई नहीं था जिससे वह अपने मन की बात कर सके । जीवन बीतता गया । गाड़ी का पहिया जीवन के उतार-चढ़ाव के साथ आगे बढ़ता गया । बच्चे बड़े हो गए ।
*आज रमन माँ-बाप से अलग रहता है । रमन रागिनी का बहुत ख्याल रखता है । रागिनी भी रमन से आज भी उतना ही प्यार करती है । रमन की बहन आज भी भाई भाभी से नहीं बोलती और बच्चों से भी कोई वास्ता नहीं रहती । रमन के माँ- बाप अपने मतलब से मतलब रखते हैं उन्हें अपने खान-पान सुख से मतलब है । अाज तक न तो रमन न ही रागिनी और न ही बच्चों के सुख के लिए सोचा है । हमेशा अलग खाया पहना है । कहीं बहू सास से अलग रहना चाहती है कहीँ बेटा मगर यहाँ तो एक माँ ने ही अपने बच्चों को अपने से अलग किया है । यह ऐसे माँ-बाप हैं जिन्होंने अपनी बेटी के लिए या फिर सिर्फ अपने लिए ही सोचा है । अगर पार्वती रागिनी को भी बेटी जैसा प्यार दुलार करती और बेटी जैसे ही नजरिए से देखती तो शायद आज भाई-बहन का रिश्ता ना टूटता और घर परिवार जुड़ा रहता । पार्वती में अभी भी अकड़, अहम और मैं है जो जाने का नाम ही नहीं लेती बल्कि समय के साथ-साथ और अधिक परिपक्व होती नजर आ रही है । आज भी वह सिर्फ अपने और अपनी बेटी के सुख के बारे में सोचती है । रागिनी से आज भी वह कोई सरोकार नहीं रखती । रमन आज भी अपने माता-पिता को समर्पित है वह रागिनी से पहले उनका ख्याल रखता है रागिनी के बच्चे भी दादा-दादी को पूरा सम्मान देते हैं क्योंकि रागिनी ने अपनी माँ के संस्कारों का अपने बच्चों में डाला है और रमन की माँ आज भी रागिनी को उतना ही नापसंद करती है जितना पहले करती थी ।
*संदेश - इस सच्ची कहानी के माध्यम से यह संदेश देना चाहती हूँ कि जब तक हम एक दूसरे का सम्मान नहीं करेंगे एक दूसरे को आदर-सत्कार नहीं देंगे ,नारी हो कर भी नारी के बारे में नहीं सोचेंगे तब तक नारीसश्क्तिकरण जैसे शब्द बेमायने हैं ।
No comments:
Post a Comment