पात्र- माँ , बेटी , पिता और सूत्रधार
**************************
*** सूत्रधार – आज देश में कई प्रकार की बुराइयाँ फैली हुई है | इन बुराइयों और रूढ़िवादिता को त्याग कर ही हम अपने देश के उत्थान में अपना योगदान दे सकते हैं | शिक्षा संबंधी अधिकार जो संविधान द्वारा हम सभी पर समान रूप से लागू है जिसके अनुसार सभी को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है | यह लघु नाटिका इसी अधिकार से संबंधित है । आज भी समाज में कुछ ऐसे समुदाय हैं जो अपनी बेटियों को इस अधिकार से वंचित रखते हैं | हमें उनकी इस सोच को बदलना होगा |
तो चलिए चलते हैं " नए समाज की ओर नई सोच के साथ |"
*** सूत्रधार- बेटी माँ के समक्ष अपने पढ़ने की इच्छा को ज़ाहिर करती है |
** बेटी- माँ मैं भी हूँ पढ़ना चाहती | जीवन में …मैं कुछ करना चाहती |
क्या है यह मुझको अधिकार ?
** माँ- हाँ बेटी, जो चाह है तेरी वहीं चाह मेरी भी है ।
पढ़-लिख कर तू नाम कमाए, चाह यही मेरी भी है |
** बेटी- पढ़-लिख कर मैं बनना चाहती टीचर, डॉक्टर या कलाकार |
क्या मैं हूँ कम किसी बाल से मुझको भी है यह अधिकार |
** माँ- मेरा भी यह था एक सपना कि मैं भी पढ़-लिख जाऊँ |
पर जो मैं न कर पाई और जिस वज़ह से न कर पाई ऐसा पल न आने दूँगी मैं अब तेरे साथ |
** बेटी- माँ! क्या अब यह होगा संभव ? मुझको बतला दे तू इस पल |
** माँ- समझाऊँगी तेरे बापू को न समझो गहना बेटी को |
खुले गगन में पंख फैलाकर उड़ने दो उन्मुक्त गगन में |
**** सूत्रधार- पिता, माँ और बेटी की यह सारी बातें सुन रहे होते हैं वह गुस्से में कहते हैं |
** बापू- ज़ोर-ज़ोर से क्यों चिल्लाए , मुझको यह तू क्यों समझाए |
रहना है हमको समाज में तुझको यह क्यों समझ न आए |
** बेटी- ऐ प्यारे बापू, मैं बतलाती तुम्हें
क्या मुझको बनना है |
देश की सेवा करके ही मुझको जीवन अर्पण करना है |
नहीं मुझे परवाह समाज की |
क्या कहता क्या सोच है इसकी ?
पर यह मेरा छोटा-सा सपना तुम को ही पूरा करना है |
** बापू- लड़की होती है धन पराया उसका ख़्याल हमें रखना है |
ऊँच-नीच न हो जाए इसका भी ध्यान हमें रखना है |
लड़की होती है घर की शोभा घर में ही है उसको रहना |
घर परिवार की सेवा करना यही तक ही है उसकी सीमा-रेखा |
** माँ- अरे सुनो! मुन्नी के बापू संकीर्ण विचारों का त्याग करो |
पढ़ा-लिखा बेटी को अपनी स्वावलंबी बनाने का प्रयास करो |
फेंक निकालो इस विचार को… बेटी की है कोई सीमा रेखा और उसे है केवल इस चारदीवारी में ही रहना |
** बेटी- जन्मदाता मेरे पालनकर्ता मान भी जाओ यह मेरी बात |
अपनी हामी दे कर दे दो मुझको शिक्षा का मौलिक अधिकार |
** माँ- बेटी ईश्वर की अनुकंपा ,बेटी है अनमोल धरोहर|
जीवन है उसका अधिकार ,शिक्षा है उसका हथियार |
न करो निहत्था उसको तुम, दे दो उसको उसका अधिकार |
**** सूत्रधार- माँ और बेटी के समझाने पर पिता को यह बात समझ आ जाती है कि बेटियों को भी शिक्षा पाने का अधिकार है और बेटी की करुणा भरी पुकार से पिता का मन पिघल जाता है
** बापू- ऐ मेरी प्यारी सी बेटी, लाडो सी प्यारी सी बेटी |
यह बात समझ आ गई है अब |
न किसी से कम होती है बेटी |
आज अभी से इस विचार का त्याग यहीं मैं करता हूँ और सभी को आज अभी संदेश यही में देता हूँ|
माना…माना होती बेटी एक गहना उजियारा जो लाती है |
पढ़-लिख जाए तो समाज को नई दिशा दिखलाती है |
** माँ/बापू – इसीलिए ऐ लोगों सुन लो , मत रहने दो बेटी को अनपढ़ |
जग जाओ उठ जाओ ,जाग जाओ उठ जाओ |
"बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ" इस देश के आने वाले कल को जगमग ,उज्ज्वल सुंदर बनाओ |
**** सुत्रधार- बेटियाँ उगते सूरज की नई किरण हैं जो एक नए समाज का उत्थान करने और उसे नई दिशा प्रदान करने की क्षमता रखती हैं ।
बेटी अभिशाप नहीं है |
बेटी सृष्टि का मूल आधार हैं |
बेटी संस्कृति की संवाहक है |
बेटी भविष्य की जन्मदात्री है |
बेटी है तो कल है |
बेटी शिक्षित है तो भविष्य सभी का उज्ज्वल है |
No comments:
Post a Comment