*पंछी से सीखा है मैंने
ऊँचें उड़ना चहचहाना |
*सूरज से सीखा है मैंने
नई सुबह की किरण फैलाना |
*ऊँचे नभ-गगन से सीखा
शीतलता का एहसास पुराना|
*अपनी इस धरती से सीखा
ममता का आँचल फैलाना |
*सागर से सीखा है मैंने
हर नैया को पार लगाना |
*सीखा उसकी लहरों से है
बढ़ते जाना बढ़ते जाना |
*उस बहती नदिया से सीखा
दुख को कैसे पार लगाना |
*सीखा उस ऊँचे पर्वत से
शीश उठाकर जीते जाना
*पथरीली राहों से सीखा
मुश्किल में मंजिल को पाना |
*राह के उस पथिक से
सीखा मंजिल को आसान बनाना |
*लाखों उन तारों से सीखा
रोशन होकर टिम टिमाना |
*उस चंदा से भी सीखा है
घटना,बढ़ना और चमकाना |
*काली बदरी से सीखा है
सुख की वर्षा करते जाना |
*वर्षा की बूँदों से सीखा
रहागीर की प्यास बुझाना |
*मौसम से सीखा है मैंने
आना-जाना सुख बरसाना|
*सावन के झोंकों से सीखा
चलते-जाना कभी न रूकना |
*सावन के झूलों से सीखा
परदेसी को पास बुलाना |
*अपने देश से सीखा मैंने
हाथ मिलाकर कदम बढ़ाना |
*उस परदेसी से भी सीखा
अपने देश की शान बढ़ाना |
*धरती के मानव से सीखा
सब धर्मों का आदर करना |
*सीखा हर छोटे बच्चे से
भेदभाव को दूर भगाना |
*एक है हम और एक रहेंगे
मिलजुल कर हम साथ चलेंगे |
*****कहे नीरू ये आज सभी सेे,
सीख कहीं से भी हो प्राप्त,******
******रखो उसे तुम सहज संभाल |
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