लिख रही हूं वो एहसास जो गुजरते हैं एक लड़की के साथ……
* आबरू मेरी लूटकर जो तू इतनी शान से चला जाता है ।
बे-पर्दा में ही नहीं तू भी हुआ जाता है ।
नोच के मेरे तन को न तूने मर्दानगी दिखाई अपनी……
बल्कि नामर्द बन के तू यहाँ से उठा है ।
* क्या सोचता है
मुझे यूं खत्म करके
तू क्या सुचा रहा है…
जो कर्म तूने मेरे साथ किया है उसका अंश तू भी बना है ।
मुझे ही नहीं तुझे भी कलुष ही मिला है ।
* मेरी नजर में तू मर्द नहीं नामर्द बना है । क्योंकि रात के साए में तूने मुझे बे-आबरू किया है…
शायद परिवार से तुझे सीख न मिल पाई, कि नारी लक्ष्मी है सृष्टी उसने रचाई ।
* मुझे बदनाम करके माँ का नाम न तूने रोशन किया है,
बल्कि उसके दूध को तूने सरेआम बदनाम किया है ।
मुझे किया है जो बेपर्दा तूने…
माँ के नाम को बेदाग किया है,
कोख को तूने उसकी…
नि:शब्द किया है ।
माफी न मिल पाएगी तुझे
तेरे इस कुकर्म की कभी
अपनी इस करनी के मर्म से
तू न कभी पाएगा गति…
तू न कभी पाएगा गति…
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