बेटियां होती सच्ची
मां की होती हैं प्यारी
प्यार लुटाती अपना सब पर
बन जाती हैं न्यारी
तभी तो कहते बेटी होती
आंगन की किलकारी
रोते हुए मां बाबा को
पल में हंसना हैं सिखलाती
कभी तो लाठी बनकर
घर की छत का धर्म निभाती
राजदुलारी सबकी बन
ममता का शहर बसाती
लड़की है तो क्या ग़म है
लड़का बनकर दिखलाती
काम सभी कर जाती
अव्वल लड़कों से है आती
बेटियां होती हैं सच्ची
ग़म में हंसना सिखलातीं
दवा खिलाती, चोट सहलातीं
बेटे का फर्ज़ निभाती
एक आंख गर बेटा बनता
बेटी दुजी बन जाती
दोनों आंखों के तारे
फिर क्यों … फिर क्यों
बेटियां कोख़ में मारी जातीं
मारी जातीं
लहर उठी बदलाव की अब है
बंद कभी न होगी
बेटियां जन्मेंगी अब सारी
कोख़ में न दम तोड़ेगी
बदलाव यही बदलेंगे जमाना
बेटियों को हमने है बचना
बेटियों को हमने है बचना
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