Tuesday, 23 April 2019

भारत में हिंदी की स्थिति

आलेख
भारत में हिंदी की स्थिति

हिंदी हमारी शान, हिंदी हमारी जान,
हिंदी से है संसार, हिंदी से हिंदुस्तान,
हिंदी है मन में, हिंदी है तन में,
हिंदी से ही सार्थक…
होती हमारी पहचान ।।

हम सभी ने पर्यावरण प्रदूषण का नाम सुना है और हम देख भी सकते हैं कि पर्यावरण किस प्रकार से दिन-ब-दिन प्रदूषित होता जा रहा है । प्रदूषण चाहे कोई भी हो पर्यावरण या भाषिक हर स्थिति में असर देश पर या देश में रहने वाले समस्त देशवासियों पर पड़ता है । आज हमारे देश में हिंदी भाषा प्रदूषित होती जा रही है और इसका असर देश की प्रगति, विकास और देश के सम्मान पर पड़ रहा है । हिंदी हमारी मातृभाषा है और जहाँ माता का सम्मान नहीं होता वहाँ सुख समृद्धि नहीं रहती है । यह सच है कि जो देश अपनी मातृभाषा का सम्मान नहीं करता उस देश का पतन निश्चित है । यह पतन सांस्कृतिक, नैतिक और साहित्यिक किसी भी रूप में हो सकता है । हिंदी भाषा पर अंग्रेजी भाषा की काली छाया  का प्रकोप फैल रहा है जिससे राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का स्वरूप इतना बिगड़ गया है कि उसके नाम में भी परिवर्तन परिलक्षित होता है अर्थात आजकल हिंदी को हिंग्लिश बना दिया गया है । हिंदी पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी भावी पीढ़ी मातृभाषा का रसवाद नहीं कर पाएगी । हिंदी पर अंग्रेजी की कुहास चादर चढ़ गई है जो भारत देश के अस्तित्व पर एक गहरा प्रहार है ।

हमें हिंदी भाषा को विश्व में सिरमौर बनाना है तो आने वाली पीढ़ी के मन में हिंदी के प्रति आदर सम्मान की भावना पैदा करनी होगी । मैं स्वयं कुछ समय से यह अनुभव कर रही हूँ कि हर रोज हिंदी का विकृत रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रहा है ; कभी समाचार पत्रों के माध्यम से, कभी पत्रिकाओं के माध्यम से और कभी चलचित्रों के माध्यम से हिंदी को इंग्लिश के साथ मिलाकर हिंग्लिश बनाकर हमारे समक्ष पेश कर देते हैं । मानो हिंदी भाषा भाषा नहीं एक मजाक हो । भाषा में बढ़ते प्रदूषण का कारण मीडिया से ज्यादा हम स्वयं हैं, समाज हैं, विद्यालय हैं और शिक्षक स्वयं हैं जो अपनी मातृभाषा को विखंडित होने से नहीं बचा पा रहे हैं । अभी भी हम औपनिवेशिक संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित हैं अगर हम अपने आस-पास नजर घुमाएँ तो पाते हैं कि माता- पिता स्वयं अपने बच्चों पर अंग्रेजी बोलने का दबाव डालते हैं और बच्चों को अंग्रेजी का ज्ञान न होने पर उन्हें हीनता का बोध कराते हैं । ऐसी मानसिकता और सोच के लिए समाज, राष्ट्र, माता-पिता और विद्यालय सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं क्योंकि हम इसका विरोध नहीं करते बल्कि और बढ़ावा देते हैं । आज की शिक्षा व्यवस्था हिंदी भाषा के ह्वास का कारण है जहाँ हिंदी मात्र एक विषय बन कर रह गया है और अंग्रेजी ने भाषा का रूप ले लिया है । इसको प्रदूषण नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ? इसे 'भाषा प्रदूषण' संज्ञा देना कोई अचरज नहीं होगा । मैं मानती हूँ कि अंग्रेजी कुछ गिने-चुने रोजगारों के लिए आवश्यक हो सकती है मगर संपूर्ण समाज के लिए नहीं क्योंकि समाज की 90 फी़सदी जनता हिंदी में ही अपने विचारों का आदान प्रदान करती है ।
आज हमारे आस-पास ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि हम लोभ, लालचवश स्वेच्छा से अंग्रेजी को ग्रहण करते हैं । हमारी मानसिकता के अनुसार लाखों रुपयों का वेतन अंग्रेजी माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने से प्राप्त होता है । हम मानने लगे हैं कि सफलता अंग्रेजी जानने बोलने से प्राप्त होती है । आज हम गुलाम किसी देश के नहीं आज हम गुलाम स्वयं अपनी सोच के हैं …हम गुलाम स्वेच्छा से अंग्रेजी भाषा के हैं । आज ड्राईवर और चपरासी की नौकरी के लिए भी अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है । माँ अपने बच्चों को चाँद की जगह 'मून' और बंदर की जगह 'मंकी' पढ़ाती है बच्चा अगर इन शब्दों को हिंदी में बोले तो माँ की प्रतिक्रिया होती है कि यह चाँद नहीं 'मून' है अर्थात् बच्चों को धरातल से ही हिंदी के ज्ञान से विमुख किया जाता है । आज शादी ब्याह, जन्मोत्सव इत्यादि की पत्रिका और निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में छापे जाते हैं चाहे घर में किसी को अंग्रेजी आती हो या न आती हो मगर विवाह पत्रिका, निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही होने चाहिए क्योंकि अंग्रेजी भाषा आज शान का प्रतीक मानी जाती है जिसके कारण हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है और इसका श्रेय हमारे देशवासियों को जाता है जो अपनी मातृभाषा की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।

आज हम हिंदी दिवस मनाते हैं । साल में एक बार 14 सितंबर को पूरे देश में यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है । एक ही दिन हमें हिंदी की औपचारिकता क्यों करनी पड़ती है ? क्या हमारी मातृभाषा के सम्मान के लिए एक ही दिन है ? क्या हम हर दिन हिंदी दिवस के रूप में नहीं मना सकते ? क्या हम हर दिन अपनी मातृभाषा को सम्मान नहीं दे सकते हैं ? यह सभी प्रश्न हमें चिंता में डालते हैं । एक समय था जब हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे मगर आज हम अंग्रेज़ी के गुलाम होते जा रहे हैं । किसने कहा एक माँ अपने बच्चे को हिंदी नहीं अंग्रेज़ी में सब कुछ सिखाए ? किसने कहा एक कर्मचारी को अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है ? किसने कहा कि निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही हो ? क्या सरकार ने …देश की शासन व्यवस्था … नहीं किसी ने नहीं …यह सब हमारे लोभ, लालच और अंग्रेज़ी भाषा की हवा ने कहा जो ऊँची तरक्की, ऊँचा वेतन और चका-चौंध की छवि को दर्शाता है । भारतीय हिंदी भाषी होना क्या हीनता की निशानी है ? अब आप ही बताइए… क्या यह स्वेच्छा से गुलामी स्वीकार करना है या नहीं …?

हम स्वयं हिंदी के प्रदूषण के जिम्मेदार हैं । जब हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे तब भी अंग्रेज़ी का ऐसा और इतना बोल बाला नहीं था । अंग्रेज़ी थी मगर अंग्रेज़ी की गुलामी नहीं थी और न ही भारतीय भाषाओं के प्रति घृणा और तिरस्कार की भावना थी । हमारे देश के नेता अंग्रेज़ी जानते थे बोलते थे और बहुत विद्वान थे मगर सभ्यता और संस्कृति के सम्मान का ध्यान रखते थे । किंतु आज का नेता वोट तो हिंदी में माँगता है, नारे हिंदी में लगाता है, पर्चें हिंदी में बाँटता है किंतु लोकसभा और विधानसभा में शपथ ग्रहण अंग्रेज़ी में करता है । यह कहाँ तक सही है ? क्या उसे हिंदी में शपथ ग्रहण करने में शर्म आती है या अंग्रेज़ियत के भूत ने पूरे देशऔर उसके शासन को अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा है । हिंदी भाषा के अस्तित्व पर यह गहरा आघात है ।

न जाने जो हिंदी; वह हिंदवासी नहीं,
अंग्रेज़ी का ज्ञान पाकर कोई देशवासी नहीं,
हिंदी में ज्ञान पाओ, हिंदी में गुनगुनाओ,
हिंदी में ही नेताओं को शपथ ग्रहण करवाओ ।।

यह एक भ्रम बुरी तरह से हमारे हिंद में फैलाया गया है और चल रहा है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने लिखने वाले युवक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । इस का नतीजा यह हुआ है कि गरीब और आम आदमी अंग्रेजी भाषा की चक्की में पिसने को तैयार खड़ा हो गया है और वह स्वयं अपने बच्चों को बड़े से बड़े अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ाना चाहता है जिससे उसकी संतान को सफलता प्राप्त हो सके । परंतु यह वास्तविकता नहीं है हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र-छात्राएँ भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं और उच्च पद पर आसीन हो रहे हैं । हिंदी भाषा का सर्वस्व कायम रखना है तो हमें स्वयं की सोच में बदलाव लाना होगा अंग्रेजी जानना, पढ़ना और बोलना बुरा नहीं है परंतु अपनी भाषा को पीछे रख कर नहीं ……आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता नजर आता है । आज लोग अपने बच्चों को प्राइवेट या कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा देना चाहते हैं । आज का युवा उच्च शिक्षा तो ग्रहण कर लेता है परंतु दो लाईन शुद्ध हिंदी न लिख पाता है और न ही बोल पाता है । आज का विद्यार्थी हिंदी नहीं पढ़ना चाहता । बारहवीं के विद्यार्थियों को आज मात्राओं का ज्ञान नहीं है । बारहवीं में आकर भी ि , ी ु , ू े , ै की मात्राओं के प्रयोग में सक्षम नहीं है । इसका जिम्मेदार कौन है …?
हम, आप या विद्यार्थी स्वयं हम से तात्पर्य शिक्षक, आप से तात्पर्य…अभिभावक से है । आज हमें युवाओं के मन में नई चेतना जगानी होगी । अंग्रेजी के संक्रमण को रोकना होगा । प्रदूषित होती हिंदी को बचाना होगा । यह कार्य हम तभी कर सकते हैं जब हम जागरुक हो , हिंदी का महत्व समझें और अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान की भावना रखें । आज अनेक संस्थाएँ हिंदी विकास और विस्तार के लिए कार्य कर रही हैं जिनका एकमात्र ध्येय हिंदी को उच्च स्तर तक पहुँचाना और उसके ह्वास को रोकना है । आज हिंदी भाषा अकादमी और वागीश्वरी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवम् सांस्कृतिक संस्थान जैसे अनेक संस्थान है जो राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार और विस्तार का कार्य करने में लगनशील है तथा हिंदी को भारत में ही नहीं विश्व स्तर पर सिरमोर बनाने का सार्थक प्रयास कर रहे हैं । भारत के नागरिक होने के नाते हमें भी हिंदी उत्थान में अपना पूर्ण योगदान देने हेतु संकल्पबध होना होगा और हिंदी भाषा के उत्थान के लिए सदैव प्रयासरत् रहना होगा तभी हम हिंदी पर अंग्रेज़ी के प्रभाव को रोक पाएँगे और हिंदी पर पड़ रही काली छाया 'हिंग्लिश' को समाप्त कर पाने में सक्षम होगें ।
हिंदी है जन-जन की भाषा ।
हिंदी मेरे हिंद की भाषा ।
हिंदी का सम्मान करो ।
हिंदी पर अभिमान करो।

निष्कर्ष

भाषा चाहे कोई भी हो वह मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है क्योंकि मानव सभ्यता को विकसित और गतिमान बनाने के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है और वह संप्रेक्षण भाषा से ही संभव है मुख से उच्चारित होने वाली ध्वनि की एक अनुपम व्यवस्था भाषा कहलाती है भाषा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है हिंदी , संस्कृत की उत्तराधिकारिणी भाषा है । आज हिंदी के संरक्षण की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है ? क्यों आज हिंदी को बचाने के लिए प्रयास हो रहे हैं ? क्या भाषा भी किसी के संरक्षण की मोहताज है ? हम भारतवासी होकर हमारा क्या यह कर्तव्य नहीं कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें और उसे विश्व पटल पर लाएं ।
 
अपनी भाषा में एक एहसास है ।
हिंदी देश का स्वाभिमान है ।

हिंदी से भविष्य और वर्तमान है ।
हिंदी भावों का महाजाल है ।

भावों का समंदर रहता है इसमें ।
एहसास से गुथा एक धागा है जिसमें ।

जोड़ देता है मन से मन को पल में कहीं भी । 
टूटते दिलों को जोड़ देता है दूर से ही ।

भावनाओं की भाषा  सौहार्द बनाती है ।
लिपि भाषा को  लिखना सिखाती है ।

भाषा से ही ज्ञान समृद्ध, विशाल मुमकिन है ।
भाषा नहीं तो शब्दों का महाजाल बुनना मुश्किल है ।

देश विदेश में भी इसका परचम लहराया है ।
सबने हिंदी को मन से अपनाया सौभाग्य हमारा है ।

अभिमान है हमें…हम हिंदुस्तानी हैं। 
गौरवान्वित हैं हम… कि हम हिंदी भाषी हैं ।

डॉ. नीरू मोहन 'वागीश्वरी'




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