स्वस्थ बनाए
संतुलित भोजन
सौंदर्य बढ़ाए
साँझ ढली है
नई आशाएँ लिए
आए प्रभात
खुशियाँ बाँटों
आनंदित हो मन
है नव वर्ष
धरा का जल
वाष्पित क्रिया संग
मेघ सृजन
शीत की भोर
हर्षित वन्य जीव
उषा सिम्त
रेत लेखनी
किसी काम न आए
बहती जाए
द्वारे पे खड़ी
है विदाई की डोली
अश्रु की झड़ी
साँझ सवेरे
सद्भाव है फैलाए
अंबर तल
उर का मल
हिय में मत पालो
सदा निकालो
टूटते रिश्ते
कौन अब सँवारे
बिखरे जाते
त्यागो तनाव
बनाओ मैत्री भाव
फैले सद्भाव
घर का भूला
घर वापिस आए
मंजिल न पाए
माता-पिता है
बागवान हमारे
पूजनीय है
आगंतुक हैं
ईश्वरीय स्वरूप
सत्कार पाएँ
रूप की रोए
नसीब वाली खाए
मौज मनाए
उम्र ढले ही
पालक बोझ बने
अंजाने सब
स्वयं भूखे
संतान की ख़ातिर
न सोचें कल
करो सम्मान
मात-पिता सर्वस्व
मिलेगा फल
कृष संघर्ष
दिलाता उसे सिर्फ
मौत का दर्श
रवि आतप
कनक रश्मि संग
मिटे कंपन
कटु वचन
जलप्लावन संग
रिश्ते दफन
मेघ करे हैं
बे-मौसम बारिश
कृषक त्रस्त
हिम का वेग
मन निकली आह
सैलाब लाए
शीत नीहार
मानुष है बेकार
होए न काज
तन दामिनी
जलधर कुलिश
पीर बढ़ाए
कर्दम पुष्प
पंकज कहलाते
पूजे हैं जाते
पंख पखेरू
उड़ जाते हैं प्राण
बन तू तरु
मील प्रस्तर
है दिशा निर्देशक
हो अग्रसर
मेरा जीवन
शबनम का कतरा
संग सुमन
दुष्ट जो नर
मिलता न साहिल
भटके दर
विभावरी-सी
होती दुख की छाया
प्रभात संग
ज्योत्स्ना फैलाता
रजनीश गगन में
तिमिर संग
निदाध आती
बिलकुल न भाती
प्यास बढ़ाती
सद्भाव बने
मत्सर न पनपे
है नव वर्ष
मौसम सभी
कृकलास कहाए
बदले जाए
रक्तलोचन हैं
सबसे अच्छे प्राणी
संदेशा लाएँ
मन को भाती
कुहूरव की वाणी
काक न बन
श्रम तू कर
पिपीलिकी की भांति
सफल बन
गमनागमन
भीड़ में बुरा हाल
सड़क जाम
समाप्त तम
स्वर्णिम है आदित्य
सुप्रभातम !
जीवन बहे
मोम पिघले जैसे
जलता रहे
नई सुबह
नई उम्मीद बाँधे
उमंग बहे
नव प्रभात
पक्षी पंख पसारे
उन्मुक्त नभ
है उलझन
खामोश हुआ मन
तड़प बड़े
नि:शब्द हम
मनमुटाव खत्म
मनाओ जश्न
नवीन वर्ष
नव काव्य सृजन
प्रकृति संग
नया बरस
नव वृक्ष रोपण
मिले सुफल
नव प्रभात
खत्म हो अत्याचार
बढ़े सद्भाव
नव विचार
प्राकृतिक दोहन
समाप्त अब
नव चेतना
उर में उदगार
शांति सद्भाव
माघ की ठंड
नए साल का जश्न
मनाएँ सब
चुप रहती
नारकीय जीवन
नारी सहती
चिंगारी जैसे
सुलगती औरत
रहती शांत
सीमा से बंधी
जैसे होती है नदी
नारी की छवि
नारी है घन
झरती बरसती
सदैव प्यासी
घर न दर
सदैव है बेघर
नारी है खग
बुलंद स्वर
पर रहती मौन
शब्दों की भांति
नारी है शक्ति
नहीं ये कमज़ोर
जीव को पाले
नारी का मन
ममता का भंडार
मिलेगा ज्ञान
नव आशाएँ
नवनिर्मित सोच
मंज़िल पाएँ
नई रश्मियाँ
है मिलेगा सुपथ
धैर्य तू रख
नया है जोश
नई सब की सोच
नवनिर्माण
नए है स्वप्न
नई डगर संग
सफल बन
सशक्त नारी
नवसृजन मूल
संपन्न धरा
बढ़ेगा मान
नारी देश की शान
करो सम्मान
उन्मुक्त नभ
पंख फैलाएँ पंछी
टूटे बंधन
घर की शान
फले फूले संसार
बेटी है मान
नारी उत्थान
नई सोच के साथ
देश विकास
कुंठित सोच
त्यागो सब मानुष
करो उत्थान
भ्रष्टाचार को
करो समाप्त अब
जागो इंसान
पुस्तक मेला
विचारों का अर्णव
साहित्य रेला
मदिरा पान
करे जब इंसान
बने हैवान
सुरा सेवन
नष्ट गृह संसार
भ्रष्टाचरण
मदिरालय
भ्रष्ट राह दिखाएँ
नष्ट आलय
मदिरा पान
बिगड़ती संतान
बच इंसान
बुढ़ापा आता
औलाद को न भाता
ख़्वाब जलाता
बूढ़ा दरख्त
ठूँठ न कहलाता
पाले जगत
श्रेष्ठ संतान
बुढ़ापा खुशहाल
प्राण संपन्न
बसंत आता
पतझड़ के बाद
फूल खिलाता
धरा प्रसन्न
सुगंधित मलय
मन मगन
पीत श्रृंगार
आंचल सतरंगी
छाई बहार
स्वराष्ट्रहित
सभी की एक सोच
वही भारत
भारत देश
हमारा स्वाभिमान
त्याग विदेश
सीमा पे अरि
सुरक्षित है राष्ट्र
करो सम्मान
है समर्पण
मेरा यह विद्रोह
नहीँ कुचक्र
धन है नष्ट
मद्यपान सेवन
तन भी नष्ट
सोचो समझो
जो बोओगे…काटोगे
कर्म सुधारो
सर्द बयार
कंबल न अंबर
दीन लाचार
कैसी ये शिक्षा
बोझ तले पिसता
मासूम बच्चा
कंधो पर बोझा
नित्य ढोता बस्ते का
रोता… सहता
खेल से छूटा
किताबों में रहता
कीड़े की भाँति
टूटी है लाठी
बुढ़ापे में बेहाल
बूढ़े माँ-बाप
आज संतान
है माँ की हत्यारी
पिता के बैरी
लगते बोझा
वृद्घावस्था में रक्षक
वृद्घाश्रम पाते
गुरू ही देव
दे अनुपम ज्ञान
सुखी संसार
उल्फ़त खत्म
मोहब्बत आबाद
थमा कारवाँ
हँसते क्षण
गतिमय जीवन
बाधाओं संग
दुख के पल
सहता है जीवन
सपनों संग
लाखों सपने
कठिन है डगर
चलता चल
आशा में प्राण
अहसासों में प्राण
मोह को त्याग
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