Sunday, 13 May 2018

[5/13, 8:50 AM] ‪+91 98262 78837‬: जननी का जो हुआ नही,
वो जन्मभूमि का क्या होगा,
ऐसे नींच कपूतों से,
अब कर्मभूमि का क्या होगा,
माँ को छोंड़ बुढ़ापे में,
जो पत्नी का ही गुण गायें,
ऐसे लालों का जीना क्या,
चुल्लू भर पानी में मर जायें,
बहुत बड़ा दुर्भागी है,
जो माँ की ममता ना जाने,
माँ ही है इस जग की देवी,
प्रथमहिं ईश्वर ना पहचाने,
ऐसे पुत्र भरे हैं जग में,
जो माँ के दुख का भाग बने,
ममता भी लज्जित होती है,
पुत्र नहीं जो श्राप बने,
माँ है जीवन माँ ही जन्नत,
यारों माँ को पहचानों,
माँ ही ईश्वर माँ ही मंदिर,
माँ के चरणों में स्वर्ग है मानो,
-------जय माँ की
----------------------आशीष पान्डेय ,जिद्दी,
[5/13, 8:52 AM] ‪+91 98262 78837‬: पकड़कर नन्हीं सी उंगली हमें चलना सिखाती है-२
हमारी राह से कांटें सदा मां ही उठाती है-२
पकड़कर नन्हीं-------

हमारे जन्म से लेकर हमारी जिंदगी सारी-२
ये मां की ममता है यारों दुआएं मां की है सारी-२
दुआओं का सदा आंचल ये मां हमको ओढ़ाती है-२
पकड़कर नन्हीं------

लगे गर चोट बच्चे को हृदय जख्मीं हो माता का-२
ये लेकर रूप है आई जमीं पे मां विधाता का-२
मिटा दे गहरे से गहरा जख्म मरहम लगाती है-२
पकड़कर न्नहीं-------

जरा कभी गौर से देखो कि मां की आंखों में क्या है-२
भरा है ममता का सागर कि जादू हांथों में क्या है-२
तड़प जाती हैं सांसें जब भी आंसू बहाती है-२
पकड़कर नन्हीं सी-------
       आशीष पान्डेय जिद्दी
25नवम्बर2015
[5/13, 9:00 AM] ‪+91 98262 78837‬: स्वर्ग रूप में कोख धरा पर,माताओं की होती है।
नन्हा बीज पले है उसमें,नव जीवन वो बोती है।।
गर्भ पले नौ माह जन्म तब,शिशु को माता देती है।
प्रथम दृष्टि पड़ते ही शिशु की,मात बलैयाँ लेती है।।

अपनी छाती से ममता का,पहला दूध पिलाती है।
शिशु के कोमल अंगों को माँ,जी भरकर सहलाती है।।
आँचल में शिशु को पाकर माँ,सबको भूली जाती है।
जब रोता है बालक मइया,सुंदर लोरी गाती है।।

बच्चे की किलकारी सुनकर,माँ आनन्दित होती है।
जब बच्चे को कष्ट पड़े तो,पहले माँ ही रोती है।।
छुन-छुन छुन-छुन पायल बाजे,नन्हें-नन्हें पैरों में।
माँ बच्चे को नहीं छोड़ती,पल भर खातिर गैरों में।।

बालक को चलना सिखलाये,ममता नेह लुटाती है।
अपने हिस्से की भी रोटी,माँ ही सदा खिलाती है।।
बचपन जिसकी गोद समाया,आँचल में मिलती छाया।
जिसके प्रेम स्नेह से शिशु की,निशदिन खिलती है काया।।

वात्सल्य रूप में मातृ प्रेम,करता जीवन आला है।
संस्कार माँ के सुंदर से,जीवन भर की शाला है।।
आँचल में जिसने हमको ढक,लाड़-प्यार से पाला है।
दुनिया में उस नाम से पावन,नहीं किसी की माला है।।

          आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
9826378837
दिनाँक- 08सितम्बर2017
[5/13, 9:36 AM] ‪+91 70177 11275‬: सुप्रभात 💐💐💐💐💐💐
💐💐💐जयश्रीकृष्णा🙏🏻🙏🏻
💐💐 💐💐 💐💐💐💐
भजन
तर्ज--तुझे देख कर जग वाले पर
यकीं नही क्यूं कर होगा)

तुझे देख कर मन नही भरता।
मूरत है कितनी प्यारी।
तेरी महिमा कौन बनाने,
तुझमें है सृष्टी सारी--2

मोर मुकुट मेरे मन को मोहे,
काँधे कामल कारी है।
अंग पीताम्बर पीला पटका,
अधरों पर मुरली प्यारी है--2
देख देख तुझे मैं मुस्काऊँ -होहो होहो
देख देख तुझे मैं मुस्काऊँ,
पल पल मैं जाऊँ वारी।
तेरी महिमा----
तुझे देख-----

कस्तूरी का तिलक सोहना,
आँखे तेरी कजरारी।
काँधे पर लट ऐसी बिखरी,
जैसे घटायें हो कारी--2
रूप मनोहर प्यारा लागे होहो होहो
रूप मनोहर प्यारा लागे,
इन्दू तुझ पर बलिहारी।
तेरी महिमा----
तुझे देख----

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम
[5/13, 10:12 AM] ‪+91 98970 71046‬: *ईश्वर स्वरूपा।।।।।माँ।।।।।।*
*।।।।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।।।*

माँ का आर्शीवाद जैसे कोई
खजाना होता है।

मंजिल की  जीत का जैसे
पैमाना होता है।।

माँ  की गोद मानो  कोई
वरदान है जैसे।

चरणों में उसके प्रभु का
ठिकाना होता है।।

*रचयिता।।।एस के कपूर*
*श्री हंस।।।।।बरेली।।।।*

मोब  9897071046।।।
8218685464।।।।।।।।

*मातृत्व दिवस की असीम*
*शुभकामनायों सहित।।।।।*
*एस के कपूर।।।।।।।।।।।।।।।*

*पता।।।       *06,पुष्कर एन्क्लेव*
*टेलीफोन टावर के सामने*
*स्टेडियम रोड ,बरेली....243005*
[5/13, 10:19 AM] ‪+91 96300 89588‬: बच्चे खुश हैं दुआ से जिनकी  ,
उन सब मां का वंदन है ।

गंगाजल सी पावन माँ है ,
अक्षत रोली चंदन है ।

आँचल में गम भी छिप जाते ,
जीवन को है आस नई ।

एक दिवस क्या सदा साल भर ,
माँ तेरा अभिनंदन है ।।

डॉ अरुण कुमार श्रीवास्तव अर्णव
[5/13, 10:23 AM] ‪+91 94313 34653‬: माँ तेरी पहली छुवन ही मेरा प्यार।
तेरे चरणों में कँरु जीवन निसार ।
सारे दुःख सह गर्भ मे पाला,
तुझको मेरा नमस्कार ।

माँ तेरी पहली  छुवन ही मेरा प्यार।
तेरे चरणों में कँरूँ जीवन निसार ।

जिंदगीकी धूप मे,
हाथ दे चलना सिखाया ।
हर गलत राह को ,
सही कर बढ़ना सी खाया ।
तू मेरा जीवन आधार ,
तुझको मेरा नमस्कार ।
माँ तेरी पहली छुवन ही मेरा प्यार।

तेरे चरणों में कँरूँ जीवन निसार ।

श्रापित सी लगती ये दुनिया,वहशी सारे लोग लगे ,
सारे दुःख अपने भूले माँ ,लग के तेरे हम गले ।
खो ही जाते भीड़ में ,
गर ना मिलता ठाँव तेरा ।
तेरे आँचल के तले  ,मेरा है  सारा  सँसार ।
माँ तेरी पहली छुवन ही  मेरा प्यार ।
तेरे चरणों में करूँ जीवन निसार ।

कंटक -कठिन पथ था मेरा ,
तम सा लगता  था ये जीवन ।
मेरे मन के मंदिर  में ,
देवी जैसी तू अवतार ।
ह्रदय -द्वार पर रहेगा ,
सदा तेरा ही अधिकार ।
माँ तेरी पहली छुवन ही मेरा प्यार ।
तेरे चरणों में  कँरूँ जीवन निस्सार ।

अनीता मिश्रा "सिद्धि "
[5/13, 10:23 AM] ‪+91 81079 25476‬: मुक्त विषय पर आज माँ को समर्पित कुछ शब्द।

काहे फिक्र करू अपनी सर पर हाथ है तेरा।
जब आशीष है तेरी डरूँ क्यों साथ है तेरा।
मुसीबत लाख आती है मैं बच ही जाती हूँ,
कवच का रूप लेती है ये ही तो बात है तेरी।

दवाओं ने नही मुझको दुआओं ने बचाया है।
माँ के रूप में रहता खुदा तेरा ही साया है।
तना कैसे संभालेगा हजारों पत्तियां अपनी,
इसी के वास्ते उंसने लताओं को बनाया है।।

यू ही नही नारी यहां पर माँ कहलाती है।
कलेजा चीरती अपना हमे दुनियां में लाती है।
मेरी आंखे क्यों नम है क्यों आवाज है भारी,
मैं कुछ नही कहती पर वो समझ ही जाती है।।

इस प्यार की गंगा में,जो डुबकी लगाता है।
लाख तूफाँ हो वो सागर तर ही जाता है।
अपने ही टुकड़े फिर क्यों देते है उसे ठोकर,
जिसका नाम लेकर तू सलामत घर को जाता है।

माँ के देखकर हालात मेरा दिल आज रोता है।
वो तड़पती है तन्हाई में तू महफ़िल में खोता है।
जिसके लहुँ से आज सितारा बन के चमका है,
उसी आँचल के तले तू चेन की नींद सोता है।।
खुदा भी खुद तड़पता है मां का प्यार पाने को।
इंसान का रूप लेता है जमाने को दिखाने को।
कभी कान्हा कभी पैगम्बर कभी ईशु बना है वो,
अपनी ही कृति पर अपना हक जमाने को।।





रानी सोनी"परी
[5/13, 10:30 AM] ‪+91 95992 38176‬: आज सभी माताओं को समर्पित मेरा सृजन....🌹🌹🌹🌹

प्यार के हर रूप का स्वरूप हो तुम माँ,
मेरे अक़्स में जो झलकता, वो प्रतिबिम्ब हो तुम माँ।
हर मोड़ पर निर्भीक चलने की प्रेरणा देतीं, वो तुम हो माँ...
हर एम्तिहान में होंसला बढ़ातीं, वो शक्ति हो तुम माँ!

सर्दी कि नर्म धूप के सुख का अहसास सी तुम माँ,
ममता से भरी आँखों से जो निहारती, वो तुम माँ।
मेरी हर उलझन के समाधान का विश्वास हो तुम माँ।
हर प्यार भरे स्पर्श का अहसास हो तुम माँ!!

अखण्ड ज्योति के दीप सी, वो पहचान हो तुम माँ,
अंधकार को जो उजाला दे, वो प्रकाश हो तुम माँ।
मेरे जीवन के स्वर्णिम लम्हों की याद हो तुम माँ,
मेरे अस्तित्व की रचनाकार हो तुम माँ!!

हर प्यार के स्पर्श का अहसास हो तुम माँ!
मेरी ज़ीवन की नीव तुम,आधारशक्ति तुम,
मेरी नज़र तुम्हें तलाशतीं, कहाँ ओझिल हो गयीं माँ।
मेरी हर श्वास की एकाइ का  पर्याय हो तुम माँ!!
                                     
- प्रतिभा गर्ग
    गुड़गाँव( हरियाणा)
[5/13, 10:38 AM] ‪+91 80589 36129‬: प्रणाम साहित्य संगम संस्थान
दिनांक -13-05-2018
विषय - माँ
विधा - मुक्त कविता (उद् बोधन शैली)

माँ की जिन्दगी तो....मनु की कलम से

माँ की जिन्दगी तो यूँ ही तमाम हो गई ।
सहम में दौड़ते -२ जिन्दगी की शाम हो गई ।
चाकी पीसते , चूल्हा फूँकते , आँगन लीपते ।
घर भर का उदर भरते-भरते  माँ तमाम हो गई ।।
लड़ गई अपने सुहाग से मेरी ख्वाहिशों के लिए ।
मेरी  माँ मेरे लिए ईश का नया आयाम हो गई ।।
बस चन्द घड़ी ओढ़ लूँ मैं मेरी माँ के आँचल को ।
पिता की खास दुल्हन घर के लिए आम हो गई ।। माँ की जिन्दगी तो यूँ ही तमाम हो गई ..
जेवर गहनों से लदी सुकुमार देह,चंचल चितवन ।
बेटे की बरकत के लिए ये तिजोरी निलाम हो गई ।।
हर घाव का मरहम बनके , हर दर्द की दवा बन गई ।
बेटी को अपने जेवर दे सुकून का इन्तजाम बन गई ।।
उज्जवल तेज से दमकता चेहरा झुर्रियों से भर गया ।
माँ की हँसी हम बच्चों की रुलाई पर निलाम हो गई ।। माँ की जिन्दगी तो यूँ ही तमाम हो गई ....
फिर ढ़ल गई वो रेत के साँचे की मानिंद धीरे - धीरे ।
नई बहू के घर आते ही ये रेत भी बदनाम हो गई ।।
लगे जब नौंचने वसीयत के टुकडे़ अपने अपने भाग के ।
आखिर बूढ़ी माँ भी पिता के साथ बँटवारे के नाम हो गई । माँ की जिन्दगी तो यूँ ही तमाम हो गई .....
रह बदल गया ‘मनु' उसका जिस्म फ़कत एक गठरी में ।
घर , आँगन ,दीवारों के लिए माँ की चर्चा आम हो गई ।।
लुटाती रही वो झोली से दुआओं की खैरात उम्र भर ।
जाते - जाते भी सबके लिए समर्पण का पैगाम हो गई ।।
बस चन्द घड़ी ओढ़ लूँ मैं मेरी माँ के आँचल को । ।माँ की जिन्दगी तो यूँ ही तमाम हो गई ....

स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित @ मनोज कुमार सामरिया ‘मनु'
[5/13, 11:23 AM] ‪+91 99680 92415‬: आज ठंडा खूब भू का गात होने दो..
2122  2122  2122  2

छा  गये  बदरा  बहुत  बरसात होने दो।
आज  ठंडा खूब  भू  का  गात होने दो।।

कुछ पलों के भीगने से क्या भला होगा..
आसमां  वाले  इसे  दिन  रात  होने  दो।

बावला ये  दिल  बडा बेचैन  धरती का..
इन सभी बेचैनियों  की  मात  होने  दो।

हो रहे आंसू  विकल  संवाद  करने को..
होंठ छूकर  खूब  इनकी  बात  होने दो।

आंधियां  तूफान 'रोहित' सिर्फ हिस्से में..
शांत मन के आज सब जज्बात होने दो।

    @रोहित
[5/13, 11:38 AM] ‪+91 91550 81311‬: कलाधर- छंद
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जन्म दे सवारती सु मातु प्यार से दुलार,
        मात के  ममत्व  को कभी नहीं विसारिये|
आन वान शान मान प्राण को करें निसार,
         मात के  महत्व को सदा हिये  विचारिये||
धर्म मर्म धीर पीर प्रेम प्यार स्नेह नीर,
             ईश रूप मात पै सु  प्राण को निसारिये|
बात ये अमोघ जान मात से सु  देह जान,
              मात के सु दिव्य ज्ञान विश्व में पसारिये||
रीति नीति छोड छाड लोक लाज को विसार,
               स्वार्थ से विभोर हो अनाथ ना बनाइये|
स्नेह भरा हाथ फेर दुःख को करे न टेर,
               मात रूठ जाय आप प्यार से मनाइये||
नित्य नित्य आठ याम मात चाप चार धाम,
              हाथ जोड मात आप शीश को नबाइये|
बात को चरित्र मान ईश रूप माँ तु जान,
           मात के स्वरूप आप ध्यान मे बसाइये||
           
                       चंचल पाण्डेय 'चरित्र'
[5/13, 11:44 AM] ‪+91 94556 84868‬: ऑचल""
     
मॉ का___ कितनीममता,कितना प्यार,
सब सिमटा है ,मॉ के ऑचल में यार..
मॉ कर देती सब  न्योछार,
लुटाती हम पर प्यार बेशुमार..
मॉ के ऑचल की छॉव में हम,
अपना बचपन यूं बिताते हैं,
मॉ के आगे बच्चे बनकर
हम सब भी तुतलाते हैं..

हम सब में मॉ रहती जिन्दा..
मॉ के ऑचल के छॉव तले..
सारे जगत के जीव चराचर
ममता केऑचल तले पले...

प्रेमिका का ऑचल ____
जब लहराये गोरी का ऑचल..
प्रेमी का मन बरबस डोले
प्रेम की बगियॉ में बौर लगे
दोनों इक ऑचल के तले..

धरतीमॉ का ऑचल...
जब आये सावन ,तबधरती का ऑचल हरा भरा है लहराता..
खेत खलिहान हरे पीले हो जाते,मन बरबस ही खिंच जाता....
__ 
हर ऑचल की छॉव रहे
ठंडी छाया मिले हमेशा....
हम भी ऑचल लहरायें यूं
तितली बन ,मगन रहे हमेशा....kumud..
[5/13, 12:09 PM] ‪+91 70733 18074‬:  कविता

माँ की महिमा

कलम लिख नहीं सकती
माँ की महिमा इतनी गहरी
माँ की सेवा जन्नत का द्वार
माँ के चरणों मे होता उद्धार
माँ की पूजा घर- घर होती
वही माँ शोषित पीड़ित होती
माँ अग्नि परीक्षा देती आई
सारा इतिहास दे रहा गवाही
माँ भूख प्यास सहती रहती
मजदूरी कर औलाद पढ़ाती
माँ सीता सावित्री मदालसा सी
आशीष से जिंदगी संवर जाती
कवि राजेश पुरोहित
[5/13, 12:12 PM] ‪+91 94307 74737‬: 🌹फसल/अनाज/ अन्न🌹

🌱🌱🌱🌱🌽🌽🌽
काव्य फसल है शब्द अनाज़
भाव का अन्न पकाएँ  आज
जिससे  प्यारा  देश   हमारा
तृप्ति   पा   होवे    सरताज l

📝📝📝🔨🔨🔨񚀽𹰊
कलम बनी हल कृषक कवि है
वैचारिक  बीजों   की  हवि  है
प्रेम का पानी सींच-सींच  कर
सुंदर  कर  दो  आज समाज ll

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
राग-द्वेष  की  घास  निकालो
अरु  विद्रोह  के पशु भगा लो
सुख -  समृद्धि   लहलहाएगी
तभी  पुष्ट  होगा   साम्राज्य ll

🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲
धरा     हमारी    'वीर'  प्रसूता
संस्कार    जो    इसमें    बोता
पाता औषधि - सी   गुणवत्ता
हो  जाता  है  उसका ' राज' ll
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴

राज वीर सिंह
[5/13, 12:17 PM] ‪+91 99821 31651‬: 🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵
विषय- सियाराम का दरबार 
**************************
विधा-स्वैच्छिक
**************************
जहाँ बुजुर्गों की सेवा है
है विद्वानों का सत्कार।
साक्षात वह घर लगता है
सियाराम जी का दरबार। ।

भाई भाई मिलकर रहते
एक दूजे से अलग न रहते
बहन बेटियाँ जहाँ प्रफुल्लित
वार्ता तू न तकार से करते
न्यौछावर हैं सब आपस में
जहाँ प्रेम की बहती धार।  
साक्षात वह------------------

एक साथ सब भोजन करते
सबके सिद्ध प्रयोजन करते
मिलते जुलते समय समय पर
मिलकर हर आयोजन करते
एक दूसरे के सुख दुःख  पर
देते हैं दिनरात बिसार।
साक्षात वह------------------

पति पत्नी में प्यार भरा है
आपस में  व्यवहार खरा है
चहल पहल रहती है घर में
नहीं किसी का शीश फिरा है
सब बच्चे मिल उछल कूदते
नहीं दिलों के बीच दरार।
साक्षात वह----------------

सेवक पाते मान जहाँ पर
अपनों सम्मान जहां पर
जहाँ अतिथियों की पूजा
बसा है चारों धाम वहां पर
"निर्मल "रीति  जहाँ पुरखों की
सब चलते हैं श्रुति अनुसार।
साक्षात वह -----------------------

जागेश्वरप्र"निर्मल "अजमेर( राज )

🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵
[5/13, 12:34 PM] ‪+91 94153 73909‬: गीतिका
आधार छंद -वाचिक स्रग्विणी
समान्त - आ
पदान्त - कीजिये

२१२ २१२ २१२ २१२

मातु पर आपने जो लिखा कीजिये !
स्नेह मिलता रहे बस दुआ कीजिये !

व्यक्त करना सहज है किसी भाव को ,
जो कहा आपने वह जिया कीजिये !

सत्य तो सत्य है कौन झुठला सका,
हेतु मत अश्रुओं  के बना कीजिये !

अश्रु तुमने दिया वह दुआ दे रही,
शर्म कुछ तो कभी तुम किया कीजिये !

देखना दृष्टि खुद से मिला कर कभी,
क्या दिखाते करो क्या पता कीजिये !

कौन पूजा करें मातु की आज कल,
झूठ लिखती कलम को मना कीजिये !

चन्द्र पाल सिंह
१३-०५-२०१८
[5/13, 1:33 PM] ‪+91 74094 98125‬: माँ को समर्पित रचना-

माँ तेरे  हम नन्हें  पौधें, हमको  सीचेंगा अब कौन?
सजल नैन से राह ताकते,अधर हमारे हो गये मौन।।

माँ  तेरी परछाई बनकर, जन - जन का मन हर्षाऊँ।
जैसे तुमने नाम कमाया, मैं भी सबको  भरमाऊँ।।

कितनी ही अदभुत प्रतिभाओं से, मुझको तुमने जोड़ा।
रूठ गयी तुम मुझसे मैय्या, रिश्ता सदा के लिये तोड़ा ।।

माँ  हरदम  मुझपे आँचल की, छाँव  बनायें  रखना ।
तेरे पद चिन्हों पर चल पाऊँ, राह दिखाये रखना।।

                      - महालक्ष्मी सक्सेना 'मेधा'
[5/13, 1:42 PM] ‪+91 97191 02232‬: माँ

बड़ी प्यारी लागे है हमको मेरी माँ
बड़ी सुंदर लागे है हमको मेरी माँ

तू ही जल्दी उठकर, माँ हमको जगाए
हमारे लिए माँ तू भोजन बनाए
माँ तू ही खिलाए,माँ तू ही पिलाए
स्कूल तक हमको माँ छोड़ने जाए-2
माँ.................
बुरी हर नज़र से माँ हमको बचाए
लागे न नज़र, काला टीका लगाए
बड़ी..................

तू ही माँ हमको घुमाने ले जाए
नित नए हमको माँ उपहार दिलाए
माँ तू ही पढा़ए, माँ तू ही सिखाए
पापा की डाँट से हर दम बचाए-2
माँ................
हाथों से ही माँ अपने खाना खिलाए
कभी दोस्त बनकर माँ हमको समझाए
बड़ी.....................

रातों को  गा कर माँ लोरी सुनाए
बीमार पडूं तो, माँ खुद को जगाए
माँ तू थपथपाए, आँचल से लगाए
ममता भरे हाथों से सहलाए -2
माँ........
हाथों का ही माँ हमको तकिया लगाए
रातों को माँ मेरे सपनों में आए
बड़ी................

संगीता अग्रवाल
[5/13, 1:47 PM] ‪+91 92369 75567‬: कश्मीर  

माँ के पुराने एलबम मे एक झलक कश्मीर की देखी थी।
कल्पना की उड़ान ने मुझे जैसे वहां वादियों में पहुँचाया था।
मधुरिम भावों से मैंने अत्यंत सुख और आनन्द पाया था। हिमाचल की बेमिसाल सुन्दरता ह्रदय गति को बढ़ाया था।
जल उत्पत्ति की धरती नदियों पर बसी यह घाटी थी।
संस्कृति का मुख्य व संस्कृत विद्या का विख्यात केन्द था।
प्रतिभाशाली एवं गौरवान्वित इतिहास उसका जाना था।
गर्मियों मे सुहावना सदियों मे बर्फीला मौसम भी भाया था।
शिव भी तो कहॉ इतनी अलोकिक जागृति से बच पाये थे।
सती माता का घर भी तो उसी स्वर्ग की धरती पर होता था।
स्वाति कैसे फिर उस अभिभूति में नतमस्तक न होती थी।

डॉ स्वाति श्रीवास्तव
[5/13, 1:49 PM] ‪+91 91655 50848‬: विषयःमुक्त
काव्य धाराःझुर्रियाँ
..................।।।।............
"मैंने देखा,
रास्ते पर एक वृद्धा को,
जिसके चेहरे पे थी झुर्रियाँ।
उसके होंठों पे थी सुर्खियाँ।।
मगर,
बेचारी उत्कट जिजीविषा
तदर्थं,
कचरों केे ढेर से,
चुन रही थी,
पलास्टिक की पन्नियाँ, बाटलें,
और न जानें क्या-क्या?
उसके अथक परिश्रम का ,
कोई मोल नहीं, सिर्फ़
देख रहीं थी,
अपलक नयन से,
कचरों के ढेर में,काश!
जिंदगी का अंतिम क्षण भी.
झूम उठेअतुलित आनंद से,
मात्र,जीवन की
अद्भुत लालसा से!!
######$$$######
सुनीलकुमार अवधिया, मुक्तानिल
गाड़ासरई, जिला -डिण्डौरी, म.प्र.
9165550848.
[5/13, 1:58 PM] ‪+91 95754 19049‬: माँ पर चौपाई
--------

माँ ममता की मूरत ऐसी।
और न कोई इनके जैसी।।

जग जननी जग जाई माता।
महिमा इनकी सब जग गाता।।

माँ का जिसने कहना माना।
सुख वैभव से भरा खजाना।।

माँ की महिमा वेद बतावे।
ज्ञानी ध्यानी सब गुण गावे।।

अब ना कोई माँ दुःखी हो।
सकल धरा की मात सुखी हो।।

आओ हम सब माँ को पूजे।
इनसे बढ़कर देव न दूजे।।

कैलाश मंडलोई 'कदंब'
खरगोन मध्यप्रदेश
[5/13, 2:35 PM] ‪+91 97983 86001‬: 1212  1122 1212 22

वो इस तरह से नज़र जब भी डाल देता है
वजूद सारा हवा में खंगाल देता है

बहुत मैं सोच के करता हूँ गुफ़्तगू उससे
वो ऐब जाने कहाँ से निकाल देता है।

नहीं मनाता खुशामद से वो मुझे माना
बिगड़ती बात को लेकिन संभाल देता है

वफ़ा के पेड़ पे  इस वास्ते न फल आये
वो मेरी बात  को सुन के भी टाल देता है

भले ही याद का मज़बूत सा सहारा पर
तेरी जुदाई का लम्हा मलाल देता है

किया है प्यार मुझे जिस घड़ी से उसने
मुझे ख़ुशी की तो भरपूर  साल देता है

मेरी ग़ज़ल की तरह का है प्यार ज़ालिम का
यकीं नहीं वो यकीं का ख़याल देता है

किसन लाल अग्रवाल
[5/13, 2:35 PM] ‪+91 90990 49383‬: 22 22 22 22 22 2

जिसके आँचल में खेला उस अवनी का।
सूरज चाँद सितारे दिन का रजनी का।
जीवन अर्पण कर भी ऋण न चुका पाऊँ,
जीवन ज्योति जगाने वाली "जननी" का।।

-प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'
[5/13, 2:37 PM] ‪+91 94792 27213‬: *अखबार*

समाचार के आस में , पढ़ते हो अख़बार।
विज्ञापन रहे देखते ,डूबे कारोबार ।।

कुछ श्वेत कुछ श्याम किये, रंगीन समाचार ।
छल प्रपंच कथन रखे , बेच रहे अख़बार । ।

मिर्च मसाले से भरी , ऐसा होता न्यूज़ ।
सरकारी विज्ञापन से , दिमाग बोले फ्यूज ।

पीत पत्रकारिता किये, करते रहे बवाल ।
मुफ्तखोर पास रखते , करे माफिक सवाल ।।

लोक तंत्र भटका रहे, मच रहा कोहराम ।
कौन चर्चा  से भागते ,  सदन में धूम धाम ।।
*नवीन कुमार तिवारी*
[5/13, 2:38 PM] ‪+91 75662 53550‬: *माँ*

(दोहे)

माँ ममता का रूप है, माँ है चारों धाम।
माँ की सेवा कीजिये, पावन है यह काम।।

माँ का आँचल दे रहा सबको शीतल छाँव,
स्वर्ग अगर हो देखना, देखो माँ के पाँव।।

माँ के आशीर्वाद से, हो सपने साकार।
खुशियाँ माँ के रूप में, महकाये घरद्वार।

माँ बच्चों के अश्रु को, सदा पोछती जाय।
जो कुछ उसके पास हो, उन्हें सौपती जाय।

माँ सहती हर घाव को, हर दुख रहे छुपाय।
अपने बच्चों को सदा, लेती मात बचाय।।

तेजराम नायक
[5/13, 2:38 PM] ‪+91 94513 48935‬: मुझे सुला दो माँ

मुझे सुला दो बाँहों में माँ नींद नहीं आती है ।
शाम गुजरती चिंता मे माँ रात निकल जाती है।।
छोटा था मै कितना चंचल और कितना प्यारा था ,
ना मेरा तेरी करता था सबकी आँखों का तारा था ।
अब दुनिया भर की बातों ने कैसे मुझे बदल डाला है ,
तुमने तो माँ बोला था ये जीवन फूलों की माला है ।
पर कांटो की चुभन से मेरी साँसे रुक सी जाती है ।
मुझे सुला दो बाँहों में माँ नींद नहीं आती है ।।
जब भी मै गलती करता था तुम नाराज़ नही होती थी ,
पापा की धमकी देती थी पर फिरभी कुछ ना कहती थी ।
बस प्यार से मुझको समझाकर थी लेती मेरी बलायें ,
माँ सारी बातें आज भी मेरे मन मंदिर में छा जायें ।
पर दफ्तर में गलती करने पर आफत सी आ जाती है ।
मुझे सुला दो बाँहों में माँ नींद नहीं आती है ।।
इस अफरा तफरी भागा दौड़ी में मेरा बचपन बिदक गया ,
माँ तुझसे दूर किया पैसों ने मै कितना सिसक गया ।
लगन लगाकर पढ़कर मैंने तेरी उम्मीदों को थाम लिया ,
घर से निकला सांस भरी एक और माँ का नाम लिया ।
पर अब माँ उम्मीदों की बोरी सिर पर अब भारी सी पड़ जाती है ।
मुझे सुला दो बाँहों में माँ नींद नहीं आती है ।।

--- कविराज तरुण
[5/13, 2:38 PM] ‪+91 96947 28934‬: विषय - मां ....तुम हो कहाँ ?
विधा - मुक्त छंद

तुम हो कहां मेरे ममत्व
ममता के स्मृति जाल मे
कहां खोई
बुला रहा महा विराट मे
खोया सा अस्तित्व हीन
चेतना शून्य
जडवत देह निस्सार समझ
मौन हूँ पर तुम स्पंदन हो
जागृति का
दीप बनकर रश्मि कण सा
समाने लगा हूँ खोजने
सदेह
नही रहता बंध मे
त्याग कर जब ढूँढता तो
अनंत उन्नत उर्मी बनकर
दौडने लगता जलधि अंक
कर्मण्य जीवन बेबस हुआ
भावना के राग मे नहाकर
चेतना का भाव खोया
माया मोह जंजाल बढाकर
घीर चुका अब ताल तृष्णा
बन चुका भव भार जीवन
मनगढंत वैभव महल मेरे
तृष्णा अर्धांगिनी के जाल घेरे
मिट रहा यह जीवन फेरा
मेरी मां
सुनना होगा मुझे
हो कहां पुकार सुन लो
भीतर बाहर का भ्रम हर लो
कुछ अपनत्व का भान कर लो
अंश तेरा टूट बिखर गया हूँ
समेट अपने अस्तित्व समा लो
तुम हो कहां बुला रहा
महा विराट मैं
अब तो पुकार सुन लो ।।

छगन लाल गर्ग "विज्ञ"!
आबूरोड, राजस्थान!
[5/13, 3:04 PM] ‪+91 98265 16430‬: *माँ*
मेरी साँसों में तुम हो,मेरी यादों में तुम हो।
मेरी बातों में तुम हो,अंदाज़ों में तुम हो। धमनियों में रग रग में, तुम्हीं हो समाई।
तेरे सुसंस्कार परवरिश ही हमने,
इतनी ख़ूबसूरत ज़िन्दगी है पाई।
चली गईं तुमअम्माँ,हमें बनाते बनाते।
ताउम्र संघर्ष और कष्ट उठाते उठाते।
आज सब कुछ है माँ तेरी ही बदौलत,
अफ़सोस तुम्हें कोई भी सुख दे न पाई।
याद में तेरी अक़्सर नम होते नयन।
माँ तुमको नमन कोटि कोटि नमन।
🙏🏼🙏🙏🙏किरण🙏🙏🙏🙏
[5/13, 3:11 PM] ‪+91 94350 35361‬: नारी के महानतम रूप मातृ-शक्ति का चित्रण का एक प्रयास।🙏�🙏�🙏�🙏�
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

माँ
**

माँ शब्द नहीं एहसास है।
माँ रूह में रूह का वास है।
माँ आस है विशवास है।
माँ अँधेरे में उज़ास है।
माँ व्यक्ति नहीं पाठशाला है।
माँ ठंडी में दुशाला है।
माँ जीवन की परिभाषा है।
माँ समाधान जिज्ञासा है।
माँ संस्कारों की प्रहरी है।
माँ अनुपम भोर सुनहरी है।1

माँ ग्रँथ है काव्य है गाथा है।
जन-जीवन भाग्य-विधाता है।
माँ कल-कल बहती सरिता है।
माँ रामायण, भागवद गीता है।
माँ मंदिर और शिवाला है।
हँस कर पीती हाला है।
माँ गज़लों में ,रुबाई में।
माँ तुलसी की चौपाई में।
माँ सर्वसुख कल्याणी है।
माँ उपनिषद की वाणी है।2

माँ वेदों की ऋचाएं-श्रुति है
माँ प्रभु प्रार्थना-स्तुति है।
माँ मंत्रों का उच्चारण है।
माँ कारण और निवारण है।
माँ क्षमा-धर्म की मूरत है।
माँ प्रभु की सच्ची सूरत है।
माँ तो अंतर्यामी है।
माँ सर्वगुणों की स्वामी है।
माँ करुणा ,दया का सागर है।
माँ कुदरत सत्य उज़ागर है।3

माँ निर्गुण ब्रह्म साकार है।
माँ भावों का आकार है।
माँ शाश्वत सत्य सनातन है।
माँ चिर-चिरंतन अंतर्मन है।
माँ अमर अमिट अविनाशी है।
माँ खुद में काबा-काशी है।
माँ देवकी, यशोदा,सीता है।
माँ अहिल्या,द्रौपदी पुनीता है।
माँ साथी तुम ,सहारा भी।
माँ भवसागर का किनारा भी।4

माँ सत्कर्मों का प्रतिफल है।
माँ पुण्यात्मा निश्छल है।
माँ सब धर्मों का सार है।
माँ संसार का आधार है।
माँ दिल से दिल की आस है।
माँ रब की सच्ची अरदास है।
माँ प्रभु का प्रसाद है।
माँ ईश्वर का आशीर्वाद है।
माँ छत्रछाया जहान है।
माँ नारी-शक्ति महान है।5

माँ बचपन की डोर है।
माँ उनको देख विभोर है।
माँ बच्चों का घर-द्वार है।
माँ खुशियों का अंबार है
माँ त्रिवेणी का संगम भी।
माँ सात सुरों की सरगम भी।
माँ गृृहस्थी की रूह है नींव है।
माँ घर की आत्मा सजीव है।
माँ बच्चों की ऊँगली है।
माँ से ही सब जिंदादिली है।6

माँ भोर का प्रथम नमन है।
माँ पूजन-वंदन कीर्तन है।
माँ आरती की गूंज है।
माँ दिव्य प्रकाश-पुंज है।
माँ अनदेखा जन्नत है।
माँ अनकहा मन्नत है।
माँ आशीष है दुआ है।
माँ हर रोग की अचूक दवा है।
माँ सुरमयी सुहानी शाम है।
माँ में ही चारों धाम है।7

माँ सुकूँ है आराम है।
माँ गुल-गुलशन-गुलफाम है।
माँ रत्नों में अमूल्य अमोल है।
माँ ईश्वरतुल्य अनमोल है।
माँ फ़िक्र से भरा आँचल है।
माँ लूण-राई का काज़ल है।
माँ बच्चों की आदत भी।
माँ इबादत भी,इबारत भी।
माँ अमृत का घोल है।
माँ मिश्री से मीठी बोल है।8

माँ सागर की गहराई है।
माँ शिखरों की ऊंचाई है।
माँ धरती की हरियाली है।
माँ प्यारी, भोली -भाली है।
माँ पुण्य-धरा के रज-कण में।
माँ तन -मन और संजीवन में।
माँ दिल-धड़कन के प्यास में।
माँ रोम-रोम में साँस में।
माँ बच्चों का दर्पण है।
माँ त्याग और समर्पण है।9

माँ सृष्टि की रचयिता है।
माँ नीतिज्ञ,पावन शुचिता है।
माँ जलती एक समां है।
माँ बच्चों का पूरा आसमाँ है।
माँ सहन शील तपो-धरा है।
माँ से ही घर भरा-भरा है।
माँ बच्चे की मुस्कान है।
माँ उसका हर अरमान है।
माँ वात्सल्य की चिरंतन धारा है।
माँ बच्चों की तारण हारा है।10

माँ नेह-नयन की चमक है।
माँ मिट्टी की सोंधी महक है।
माँ बालक का प्रतिबिंब है।
माँ मीठी लोरी है ,नींद है।
माँ मनीषी और यशश्वी है
माँ सत्य सनातन तपस्वी है।
माँ ज्ञानी और विदुषी है।
माँ ऋषि-मुनि सम तेजस्वी है।
माँ दुःख-दर्द ताप का काल है।
माँ पाप-शाप का ढाल है।11

माँ सूरज की अरुणाई में।
माँ प्रकृति की तरुणाई में।
माँ अनादि काल अनन्त है।
माँ पुण्यात्मा श्री संत है।
माँ भू से भारी ममता में।
माँ असीमित,अद्वितिय क्षमता में।
माँ नेह-स्नेह की है देवी।
माँ मानवता की सच्ची सेवी।
माँ मंजिल है राहों की।
माँ घेरा तुम बांहों की।12

माँ केसर की क्यारी सी।
माँ की छवि है न्यारी सी।
माँ जादू की खान है।
माँ बच्चों का सम्मान है
माँ खुद से ही अन्जान है।
माँ की हस्ती महान है।
माँ बारिश की फुहार है।
माँ ठंडी-शीतल बयार है।
माँ संतति में समभाव है
माँ दुपहरी में शीतल छाँव है13

माँ सुबह प्रभु का सुमिरन है
माँ प्रथम पृष्ठ का आवरण है।
माँ गंगाजल सी पावन है।
माँ ऋतुओं में सावन है।
माँ रंगों की चितकारी है।
माँ बच्चों की किलकारी है।
माँ बच्चों की रक्षक है।
माँ रोली-मोली अक्षत है।
माँ सुबोध, सुकृति सविता है।
माँ छंदों-लय की कविता है।14

माँ धरिणी के धीरज में।
माँ पंक में खिलते नीरज में।
माँ इंतज़ार है वर्षो की।
माँ कहानी है संघर्षो की।
माँ एक तप इक साधना भी।
माँ जन्मों की आराधना भी।
माँ हिमगिरि सी अविचल।
माँ झरना सी बहती कल-कल।
माँ सतरंगी इंद्रधनुष है।
माँ का ऋणी हर मनुष है।15

माँ तुम जीवनदायिनी सुधा हो।
माँ गरिमामयी वत्सल वसुधा हो।
माँ सत्कर्मों का प्रतिफल तुम।
माँ पुण्यात्मा निश्छल तुम।
माँ मलयगिरि का चंदन तुम।
माँ सचमुच कष्ट-निकन्दन तुम।
माँ बच्चों की निवाला है।
माँ संतुष्टि का प्याला है।
माँ बच्चों की है दायित्व।
माँ से हम सबका अस्तित्व।16

माँ बच्चों की आदत भी।
माँ  इबादत भी,इबारत भी।
माँ प्रेरणा-स्रोत ,मार्ग-दर्शक हो।
माँ ताउम्र स्वयं एक तप हो
माँ ईश्वर का उपहार हो।
माँ तू माँ बस प्यार हो।
माँ जीवन का वरदान है।
माँ स्वयं में भगवान है।
माँ सृष्टि सनातन आगोश है।
माँ शब्द नहीं शब्दकोश है।17

कितना भी लिखें,कम है।
माँ है तो आप और हम है।18

कोटिशः नमन समस्त मातृ-शक्ति को।
🙏�🙏�🙏�🙏�🙏�🙏�🙏�🙏�🙏🙏�
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

ऋतु गोयल सरगम
28/1/17
[5/13, 3:55 PM] ‪+91 94062 88063‬: माँ
🌹🌹
हे, ईश्ववर
तुने फुलो को
बाग में जगह दी

पानी को दरिया
में जगह दी
अमीर को महलो
में जगह दी
गरीब को झोपड़ी में
जगह दी

भुखे को पेट भर
भोजन दी अमीरों
को बेशुमार दौलत
दी

इन सबसे भी महान
है, वो मां जिसने मुझे
नौ माह अपने गर्भ में
जगह दी

हे, ईश्ववर तुझसे है
एक प्रार्थना की उस
मां को तु जन्नत में
जगह देना, सिर्फ जन्नत में

एक मां के नाम
[5/13, 4:03 PM] ‪+91 70177 11275‬: विषय ---बेटी

बेटी  घर  की रौनक है,
समझो  मत अभिश्राप।
बेटी  बिन   मुक्ति कहाँ,
है  बेटी   तो  है   आप।

भोर की उजली किरन,
बेटी फूलों का गुलशन।
झरनो  जैसी सीतलता,
गंगा  जैसा  पावन  मन।

सृष्टि की  है रचनाकार,
आँचल में रखती प्यार।
प्रकृति का  रूप श्रृंगार,
बेटी से बनता परिवार ।

बेटी को मत ठुकराओ,
तक्ष्मी है  गले लगाओ।
देवों  ने   दिया  है मान,
बेटी होती घर की शान।

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम
[5/13, 4:19 PM] ‪+91 80177 87108‬: 🙏🙏🙏🙏🙏

                      ॥ श्री ॥

“सूरज के तेवर हैं तीखे”

सूरज के तेवर हैं तीखे।
दिन लगते हैं आग सरीखे।

पसरा सन्नाटा भाँय-भाँय।
लू का फर्राटा साँय-साँय।
लोक-लिहाज फिस टाँय-टाँय।

गर्मी पल-पल बढ़ती जाये।
छाँव निगोड़ी आँख दिखाये।
धूप चलें तो जल जल जायें।

गला-होंठ सब सूखे-साखे।
पानी प्यास को जिंदा राखे।
घाम हो रहा सूर्ख सलाखें।

ताल-तलैया नंग-धड़ंग।
नदियों के घायल सब अंग।
साँसें चलती हैं बैरंग।

सहमी टिटहरी-गिलहरी।
लगे उम्र से बड़ी दुपहरी।
भोर-शाम भी नहीँ सुनहरी।

प्राण पखेरू रह-रह चीखेँ।
मौसम के ये कौन तरीके?
पुरवाई से कुछ तो सीखें।
सूरज के तेवर हैं तीखे।

सूरज के तेवर हैँ तीखे।
दिन लगते हैं आग सरीखे।
सूरज के तेवर हैं तीखे।

                 ✍रामावतार ‘निश्छल’

🙏🙏🙏🙏🙏
[5/13, 4:25 PM] ‪+91 89593 26509‬: सकल मातृ सत्ता को नमन करते हुए👏👏👏👏👏

◆गीत◆

[ताटंक छंद पर आधारित]

कहाँ,कौन है?,ईश्वर,अल्ला,
                             समझ नहीं मैं पाता हूँ
जो है सो, सब मेरी माँ है,
                         अनुदिन शीश झुकाता हूँ......
1-पोषित होता हुआ उदर से,
                 जब मैं धरती पर आया।
   जैसे ही आँखें खोलीं तो,
               यक मुखड़ा हँसता पाया।।
उस मुखड़े को जब-जब देखूँ,
                             तब-तब मैं हर्षाता हूँ.......जो
2-अमिय सरस पयपान किया तब,
                      जगी रवानी काया में।
   जो कुछ चाहा मिला हमेशा,
                 इस आँचल की छाया में।।
माँ के आँचल तले आज भी,
                             चैन वही पा जाता हूँ......जो
3-बैठी रहती दरवाजे पर,
                 जबतक लौट न आऊँ मैं।
   कभी नहीं सो सकती है माँ,
                जबतक सो नहिं जाऊँ मैं।।
सुन लेती चुपचाप अगर मैं,
                           खोटी खरी सुनाता हूँ.......जो
4-मेरे रोम-रोम से माँ का ,
                         जाने कैसा नाता है।
   चोट अगर मुझको लगती तो,
                      घाव उसे हो जाता है।।
"सोम"शीश रख पदरज माँ की,
                          आगे कदम बढ़ाता हूँ......जो
   
                                ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
[5/13, 4:54 PM] ‪+91 99207 96787‬: 9920796787****रवि रश्मि 'अनुभूति '

🙏�🙏�

🚼 कोटि - कोटि नमन माँ को 🚼
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

💠💠
थपकियाँ दे दे के मुझे , माँ जो सुलाती है
नहीं आने वाली भी , नींद मुझे आ जाती है .....

💠💠
माँ का आँचल है तो , रौनके बहारां है
उसी आँचल में मेरी , ममता का सहारा है
परेशानी मेरे दिल की , मुझसे ख़फ़ा हो जाती है .....

💠💠
माँ के आगे दुनिया की , हर चीज़ ही बौनी है
माँ है तो कौन - सी चीज़ भला , मुझे खोनी है
माँ के क़दमों में मुझे , जन्नत नज़र आती है .....

💠💠
माँ का साया मेरे , संग - संग चला हरदम
मेरी ज़िंदगी में पड़ा , कोई भी न पेचो - खम
माँ की दुनिया बड़ी , सयानी नज़र आती है .....

💠💠
माँ ने मुझको कभी , न जुदा होने दिया
उसकी सीख ने मुझको , न खुदा होने दिया
उसके लब पर सदा , दुआ ही टिक जाती है .....
💠💠

ले के आँचल में मुझे , हर पल है सुलाया उसने
कितने ही आये दुख मगर , हर दुख - दर्द मिटाया उसने
माँ तो पग - पग पे मुझे , ख़ुदा ही नज़र आती है .....

💠💠
माँ तो एक अज़ूबा है , हर किसी के जीवन का
एक पल भी नहीं देती मुझे , वो अपनी ख़िदमत का
फिर भी हर जगह मुझे , माँ ही नज़र आती है .....

💠💠
माँ तो माँ है वो उसके , रूप हैं अनेक ही
हर रूप में उसके इरादे , रहते सदा नेक ही
कभी शेरनी और कभी , बया भी बन जाती है .....

💠💠
दिन - रात करे चाकरी , कोल्हू के बैल की तरह
तरोताज़ा रहती वो हर पल , परियों की तरह
फिर भी कभी मुझको वो , थकी न नज़र आती है .....

💠💠
पड़ूँ बीमार जो मैं , कुछ भी नहीं भाता उसको
मेरा ही मेरा ग़म , पल - पल है सताता उसको
मुझसे दूर वो , एक पल भी न हो पाती है .....

💠💠
न जानूँ उसे मैं , कौन - सा तोहफ़ा दे दूँ
मैं क़दमों में उसके ही , जां अपनी
न्योछावर कर दूँ
सौ बार की ज़िंदगी भी कर्ज़ , उतार न पाती है .....

💠💠
कोटि - कोटि नमन माँ को तू , लंबी उमर देना
सारे सुख भगवन तू , मेरी माँ को दे देना
पल भर भी जो जीवन भर चैन न पाती है .....
*****************************************************

(C)
रवि रश्मि ' अनुभूति '
17.11.2016 , 12:55 पी. एम. पर रचित ।
⭕❣⭕❣⭕❣⭕❣⭕❣⭕❣⭕

●●
[5/13, 4:58 PM] ‪+91 78982 60402‬: विधा - छन्द आधारित गीतिका

सामान्त - आ
पदांत - कीजिये

२१२ २१२ २१२ २१२

मात मेरे लिए ये दुआ कीजिये |
साथ मेरा हमेशा दिया कीजिये ||

सामने माँ खड़ी देखती है मुझे |
मुस्कुरा के हमेशा जिया कीजिये ||

प्यार देती हमें रात भर जाग कर |
मान सम्मान माँ का किया कीजिये ||

सत्य की राह पर वो चलाती सदा |
झूठ का साथ यूँ ना दिया कीजिये ||

याद माँ की मुझे अब सताने लगी |
खूब आशीष माता दिया कीजिये ||

       दीपाली पाण्डेय "दिया"

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