विधा- कविता
*पहुँचाकर मंजिल पर राही को
अभी भी वहीं खड़ा हूँ |
*धूल से ढककर, सूरज से तपकर
अभी भी अडिग खड़ा हूँ |
*रुका न कोई पलभर भी
न पूछा मेरा अता-पता |
*देखकर मुझको दूर से यूँ ही
अपनी मंजिल की ओर ही बढ़ा |
*न ली कोई मेरी खैर-खबर
न दो पल भी वहाँ रुका |
*न किया मेरा शुक्रिया उसने
स्वार्थी मानुष धूल उड़ाए चलता ही गया |
*क्या दूँ अपना परिचय में तुम्हें
मैं हूँ वही पाषाण, वही पाषाण हूँ मैं |
*जो मील का पत्थर बन
दिशा निर्देशक-सा अभी भी वहीं हूँ खड़ा ||
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