Saturday, 1 July 2017

***बारिश की बूंदे***

विधा- कविता

*काले घने फूस से बादल,
घिर-घिर कर जब आएँ|
मन हर्षित हो जाए,
जब घनघोर घटाए छाएँ|

*बारिश की बूंदे संग लेकर,
काली बदली मन हर्षाए|
देखो-देखो काले बादल,
नभ-तल पर मोह बिखराएँ|

*मेरे मन का जगमग दीपक,
देख इन्हें भरमाए|
आए-आए नभ-तल पर,
बारिश के बादल आए|

*रिमझिम-रिमझिम बरस गए,
हरियाली धरती पर छाए|
मन मयूर-सा हुआ है मेरा,
नभ पर बादल… जब घिर-घिर आए|

*वर्षा ने है किया उन्माद,
खेतों में हरियाली छाएँ|
बागों में मयूर भी देखो,
खुशी में अपने पंख फैलाएँ|

*फर-फर,फर-फर करें नृतन,
बगिया भी महकी-सी जाए|
तितली,भौरे संग देखो अब,
मन मयूर-सा हुआ है जाए|

*वर्षा की बूंदों ने जब-जब
धरती पर जल बरसाया|
नदियों ने जल के भरने पर,
राग मोहनम है गाया|

*कागज की नैया के संग,
बच्चों ने खेल दिखाया|
पानी भरे हुए गड्ढों में,
अपनी नैया को तैराया|

*बच्चे,बूढ़े हुए मगन सब,
प्रकृति भी मंद-मंद मुस्काए|
गड्ढों के पानी में बच्चे,
छक-पक,छक-पक उधम मचाएँ|

*देखो वर्षा ने यह कैसा,
अपना रंग दिखाया|
नीले नभ पर देखो,
सतरंगीला धनुष बनाया|

*अरुण ने डाली रश्मियाँ,
नभ-तल पर स्वर्णिम छाया|
इंद्र देव की कृपा हुई,
इंद्रधनुष उभरकर नभ पर आया|

*देख प्रकृति की छटा,
मन हर्षित झूमें गाए|
काले घने फूस से बादल,
घिर-घिर कर जब आएँ|

*मन हर्षित हो जाए,
जब घनघोर घटाएँ छाएँ|
काले घने फूस से बादल,
बारिश जब-जब लाएँ|

*काले घने फूस-से बादल,
बारिश जब जब लाएँ|

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