कहानी
कक्षा मॉनिटर
रमेश एक अत्यंत मेधावी छात्र था , उसने इसी वर्ष विद्यालय परिवर्तन करके महानगर के विद्यालय में प्रवेश लिया । रमेश आज्ञाकारी छात्र होने के साथ –साथ बांसुरी वादन में प्रवीण था । रमेश कक्षा आठवीं का छात्र था , उसका विचार वैज्ञानिक बन कर देश की सेवा करने का था । उसका मन-पसंद विषय विज्ञान था ।
पूर्व मे डेविड नाम का छात्र उसकी क्लास में प्रथम आया , उसका सभी शिक्षकों व छात्रों पर रुतबा कायम था , वह हॉकी का बेहतरीन खिलाड़ी था । डेविड को क्लास का मॉनिटर चुना गया , उसके कुछ साथी बुरी संगत के शिकार थे ।
डेविड के इन मित्रों ने डेविड को अपनी बुरी संगत में साथ लेने का प्रयास कई बार किया , किन्तु डेविड पर कोई असर न हुआ , वह पूर्व की भांति अध्ययनशील , संस्कारी , क्लास के प्रति ईमानदार था ।
डेविड और रमेश घनिष्ठ मित्र थे , परस्पर सहानुभूति , सहृदयता उनके आकर्षण का कारण बनी । दोनों मित्र हमेशा अध्ययन से संबन्धित विचार –विमर्श किया करते थे ।
रमेश के माता –पिता चिकित्सक थे , और डेविड के बैंक मैनेजर । दोनों परिवार में मेल –जोल था ।
रमेश , डेविड को बुरी संगत से बचने की राय देता था ।
एक दिन, रमेश , डेविड से मिलकर घर वापस आ रहा था । नयन , मृगांक व शशांक ने उसे कुछ दूरी पर रोक लिया , उसे अपशब्द कहे , व डेविड से दूर रहने की धमकी दी । प्रथम रमेश भयभीत हुआ , किन्तु विनम्रता पूर्वक उसने उनसे रास्ता रोकने का कारण पूछा , उसने उनसे कहा, “ मित्रों, मित्र का मित्र , मित्र होता है” , अत: तुम लोग परोक्ष रूप से मेरे मित्र हो , किन्तु तुम सभी की समस्या से मैं परिचित नहीं हूँ । मैं समय का सदुपयोग करता हूँ, और तुम पर विश्वास करता हूँ । मृगांक , तुम लोग, अध्ययन का सारा समय भौतिक मनोरंजन मे लगाते हो , समय का दुरूयोग करते हो , तुम्हारा भविष्य अंधकार मय हो गया है , पैरों पर खड़े होने के लिए, अपने समय को व्यर्थ मत जाने दो । डेविड और मैं, तुम्हारी समस्याओं का निदान करेंगे । एक अच्छे मित्र की यही पहचान है।
“विचार और व्यवहार परिवर्तनशील होते हैं , देश , काल , परिस्थिति के अनुसार इनमें यथोचित परिवर्तन अवश्य संभावित है ।“
उन , मित्रो के समझ में आ गया था कि , उनके जीवन की दिशा गलत थी । उनकी बुरी आदतों से घर वाले भी परेशान थे , क्योंकि, वे कभी घर पर नहीं रुकते , माता –पिता व अग्रजों की आज्ञा को अनसुना करते , व अक्सर होटलो व रेस्त्रां में भोजन करते थे । वे रोगों से अक्सर ग्रस्त रहते , इस कारण क्लास से अधिकतर अनुपस्थित रहते थे ।
रमेश ने जो सीख अपने मित्रों को दी , उसने उनकी दशा व दिशा दोनों में परिवर्तन किया ।उक्त तीनों मित्र सम्मान पूर्वक रमेश के माता –पिता से मिलते व आज्ञा कारी बच्चों के जैसे व्यवहार करते थे । रमेश से अध्ययन सम्बंधी विमर्श किया करते थे ।
नयन , मृगांक , व शशांक के व्यवहार में आए इस अप्रत्याशित परिवर्तन से उन सब के अग्रज व वयो वृद्ध हैरान थे , उनके मन में डेविड और रमेश के प्रति सम्मान का भाव जागृत हो गया । उक्त तीनों मित्र अपने माता –पिता की आज्ञा का पालन व सम्मान करने लगे । उनका अधिकतर समय विद्यालय के पश्चात घर पर अध्ययन मे बीतने लगा ।
जनपदीय विद्यालयों में , क्रीडा सत्र प्रारम्भ हो चुका था । अंतर जनपदीय विद्यालयों में स्पर्धा शुरू हो गयी । हॉकी टीम का चयन हो गया था , डेविड को कप्तान चुना गया । डेविड व उसके साथियों ने, अच्छा खेल दिखाते हुए फ़ाइनल में प्रवेश किया । फ़ाइनल में , डेविड की टीम का मुकाबला एक अत्यंत मजबूत टीम से था । उसके खिलाड़ी मजबूत कद –काठी के , व खतरनाक खेल के लिए बदनाम थे । रेफरी की चेतावनी के पश्चात भी , वे विरोधी खिलाड़ियों से बुरा व्यवहार करते , व , जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे ।
क्रीडा प्रारम्भ हुई , डेविड, सेंटर फारवर्ड में अच्छा खेल दिखा रहा था , उसके साथी, अपने खिलाड़ियों का उत्साह वर्धन कर रहे थे । प्रथम हाफ टाइम में डेविड की टीम 2 =0 से आगे थी । डेविड ने दो गोलदाग कर अपनी टीम को आगे कर दिया । द्वितीय हाफ मे विपक्षी खिलाड़ियों का खेल पलटा , वे आक्रामक हो गए । डेविड को मार्क करने के साथ उसे चोटिल करने का प्रयास कर रहे थे , अचानक विपक्षी खिलाड़ी की स्टिक डेविड के बाएँ पैर पर ज़ोर से लगी , डेविड मैदान पर गिर पड़ा । रेफरी ने खेल कुछ समय के लिए रोका । डेविड के बाएँ पैर मे फ्रेक्चर हो गया था , उसे मैदान से बाहर जाना पड़ा । विपक्षी खिलाड़ी को अगले सत्र के लिए निलम्बित कर दिया गया । डेविड की टीम मात्र दस खिलाड़ियों के साथ खेल रही थी , खिलाड़ियों में जोश के साथ –साथ रोष था , उन्होने, विपक्षी टीम पर ज़ोर दार हमला बार –बार बोलकर , अंतत : स्कोर 3 =0 कर मैच को पूरी तरह अपने पक्ष मे मोड़ दिया । रेफरी की सीटी बजी , डेविड का स्कूल, प्रथम बार चैम्पियन घोषित हुआ । खेल प्रांगण हर्ष उल्लास से गूँजने लगा ।
डेविड का रमेश के पिता ने, उपचार किया , डेविड को पूर्ण तया ठीक होने में , तीन महीने लगे , किन्तु मित्रों के सहयोग से उसके अध्ययन में कोई कमी बाकी न रही , उसे अपने मित्रों पर प्रथम बार गर्व की अनुभूति हुई थी ।
“खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है ।“यह कहावत डेविड के मित्रों पर चरितार्थ हो गयी थी । अच्छी संगत से कुसंगत का हृदय परिवर्तन किया जा सकता है , यही सच्चे मित्र की पहचान है ।
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