* कहते हैं एक चिंगारी या तो आग लगाती है या प्रकाश फैलाती है । रोशनी देने वाली चिंगारी का इस्तेमाल अगर ध्यान से किया जाए तो वह जीवन में प्रकाश भर देती है नहीं तो उसी जीवन को खाक कर देती है । यह मेरे शब्द नहीं है मेरी कलम की आवाज है जो श्वेत पत्र पर अपने आप ही लेखनी बनकर उतर जाती है मुझे तो सिर्फ कलम के चलने की ध्वनि ही सुनाई देती है शब्द अपने आप मेरी कलम स्वयं बना लेती है ।
* मैं 1997 से शिक्षण कार्य में संलग्न हूँ । बाल भवन स्कूल में शिक्षण का अवसर मुझे सन् 2008 में प्राप्त हुआ । मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मुझे ऐसा मंच और कार्यस्थल मिला जहाँ मेरे हर कार्य को हर कदम पर सराहा गया । विद्यालय की मुख्य अध्यापिका माननीया कविता महरोत्रा जी के सान्निध्य और सहयोग से मेरे शिक्षण कार्य में निखार आया ।उन्होंने हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया। विद्यालय में पहले ही दिन कक्षा-कक्ष में उन्होंने मेरे कार्य की सराहना की । उनका सहयोग मुझे हर कदम पर एक नई दिशा देता गया ।
* कहते हैं शिक्षक एक नदी की भांति होता है स्वच्छ ,शीतल ,निर्मल और श्वेत । जब तक नदी का पानी बहता है वह अपने समस्त गुणों को प्रवाहित करता है और जब वह रुक जाता है तो वह गंदे नाले के समान हो जाता है । उसी प्रकार शिक्षक जब तक सीखता है वह सिखाता है और ज्ञान ज्योति जलाता है । मैं बहती नदी की भांति आज तक शिक्षा से जुड़ी हुई हूँ । जिसमें मेरे विद्यालय का बहुत बड़ा योगदान है । विद्यालय ने हर कदम पर मुझे प्रेरित किया और अपना सहयोग दिया ।
* विद्यालय के प्रधानाचार्य जी हमेशा से ही मेरे प्रेरणा स्रोत रहे हैं । साधारण व्यक्तित्व के धनी और मेरे प्रेरणास्रोत श्री बी बी गुप्ता जी के मुख की आभा और व्यक्तित्व हमेशा से मेरे अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रदार्पण करता है ।अभी कुछ ही दिन पूर्व जब मैंने उन्हें अपनी उपलब्धियों के बारे में बताया उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रख कर जब मुझे आशीर्वाद दिया मानो मेरे अंदर नई ऊर्जा का संचार हुआ हो उनके मुख से निकला यह शब्द 'बहुत अच्छा कार्य' हर बार मुझे एक नई शक्ति देता है । जिस विद्यालय में 2008 में मैंने प्राईमरी शिक्षिका के रूप में प्रवेश किया था आज उसी विद्यालय में हिंदी विभाग में टी.जी.टी के पद पर शिक्षण कार्य कर रही हूँ । इसके लिए में विद्यालय के उप प्रधानाचार्य श्री विविध गुप्ता जी जो आज की युवा पीढ़ी के लिए सबसे बड़े प्रेरणास्रोत है धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने मुझमें विश्वास दिखाया और मुझे यह सुअवसर प्रदान किया।
* मेरे हर खट्टे-मीठे और कड़वे अनुभवों ने मुझे एक नई दिशा दी है । कहते हैं 'कड़वे अनुभव सबसे अधिक सीख देते हैं' और मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है मैंने अपनी कड़वे अनुभवों से बहुत कुछ सीखा है । आज मैं एक लेखिका और कवयित्री बाद में सबसे पहले मैं एक शिक्षिका हूँ जिसका धर्म और कार्य समाज को एक ऐसी युवा पीढ़ी प्रदान करना है तो देश की उन्नति और तरक्की की राह को मजबूत करें और देश से अत्याचार और भ्रष्टाचार का अंत कर दे । आज के विद्यार्थियों को भी यह समझना होगा कि शिक्षा का मंदिर ज्ञानार्जन के लिए होता है और उस मंदिर में शिक्षक देवता स्वरूप होता है जिस प्रकार मंदिर में प्रवेश करते ही स्वतः हम मंदिर के नियमों का पालन करते हैं वहाँ हमें कोई बताने वाला नहीं होता कि हमें हाथ जोड़ने हैं, शांत रहना है और मंदिर की गरिमा बनाए रखना है उसी प्रकार एक विद्यार्थी के लिए विद्यालय मंदिर समान है जहाँ प्रवेश करते ही अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के मन और मस्तिष्क पर स्वतः ही छा जानी चाहिए । एक शिक्षक होने के नाते मैं यही चाहूँगी कि जो ज्ञान की ज्योति हम लेकर चले हैं आगे आने वाली पीढ़ी भी इस ज्ञान की ज्योति का प्रकाश यूँ ही चारों सिम्त फैलाए रखें ।
**विद्यालय की गरिमा बनाकर ,
शिक्षक का सम्मान करो ,
अनुशासन का पालन करके ,
ज्ञानदीप की ज्योति भरो ,
सफलता चूमेगी कदम तुम्हारे ,
नभ ज्योति बरसाएगा ,
रात्रि के तम में भी तुमको ,
प्रकाश ही प्रकाश नजर आएगा ।।
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