Saturday, 8 November 2025

⚔️🔥 जय नवयुग वीरों की 🔥⚔️

⚔️🔥 जय नवयुग वीरों की 🔥⚔️

(वीर रस पर आधारित समसामयिक प्रेरक कविता)

उठो युवाओं! रणभूमि यही है,

कर्म ही पूजा, यही साधना सही है।

अब वाणी नहीं, अब कार्रवाई चाहिए,

भारत को फिर अग्रसर बनाना है — यही लड़ाई चाहिए!


तलवार नहीं, विचार हमारी शक्ति हैं,

सत्य और कर्म ही हमारी भक्ति हैं।

जो झुके नहीं अन्याय के साए में,

वही वीर है इस नव युग की छाए में!


सुनो, समय तुम्हें पुकार रहा है,

धैर्य की ज्वाला फिर सुलगा रहा है।

देश नहीं झुकेगा बिके विचारों से,

वीर खड़े हैं अब संस्कारों से।


> जो मिट्टी के लिए जीता है, वही अमर कहलाता है,

जो वतन के लिए जलता है, वही सूर्य बन जाता है।

अब संघर्ष ज्ञान का रण है,

हर छात्र सिपाही, हर शिक्षक धन है।

कलम चलाओ, स्याही से तीर बनाओ,

भ्रष्ट अंधेरों में सच का दीप जलाओ!


वो वीर नहीं जो शस्त्र संभाले,

वो वीर है जो सृष्टि संभाले।

तकनीक में भी संस्कृति पले,

नव निर्माण का भारत फले।


अब नारी नहीं अबला कहलाए,

वो भी रण में आगे आए।

घर की दीवारों से निकल कर देखो,

भारत की शक्ति कैसे दमक उठे वो!


> उसकी आँखों में स्वाभिमान की ज्वाला है,

वही तो आज के भारत की परिभाषा है।


धरती की पीड़ा अब सुनो,

पेड़ों की सांसें अब चुनो।

जो हरियाली का प्रहरी बने,

वही धरती का सच्चा सपूत तने।


> वीर वही जो प्रकृति बचाए,

धरा को माँ मान अपनाए।


अब आओ फिर प्रतिज्ञा लें,

हर बुराई से युद्ध छेड़ें।

लोभ, भेद और द्वेष मिटाएँ,

सत्य, कर्म और प्रेम जगाएँ।


जब युवा चलेंगे दीप बनाकर,

अंधकार भागेगा लजाकर।

भारत फिर स्वर्ण युग पाएगा,

विश्व उसे शीश झुकाएगा।


जय-जय भारत, जय-जय वीर,

साहस गगन, संकल्प अधीर।

जन-जन बोले ऊँचे स्वर में,

“वीर जन्मे हैं इस धरती पर में!”

– डॉ नीरू मोहन 


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