Sunday, 9 February 2020

सरदार पटेल और एकता की प्रतिमा ' स्टेच्यू ऑफ यूनिटी ' की प्रासंगिकता

सरदार पटेल और एकता की प्रतिमा स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की प्रासंगिकता :

एकता के प्रतीक 
सरदार पटेल कहलाए 
एकता की प्रतिमा ने 
रोजगार भी दिलवाए 
पर्यटकों के लिए तो आकर्षण का केंद्र बनी है मूरत
भारतवासियों के लिए गौरव का विषय है यह स्मारक

वल्लभभाई  झावेरीभाई पटेल जो सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे; एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे । उन्होंने भारत के पहले उप - प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया और भारत के लौह पुरुष कहलाए । उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था ।उन्होंने अपनी अंतिम सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली । किसान परिवार में जन्मे पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए भी याद किए जाते हैं । आजाद भारत को एकजुट करने का श्रेय पटेल की सियासी और कूटनीतिक क्षमता को ही दिया जाता है । सरदार पटेल ने 22 साल में दसवीं की परीक्षा पास की थी । सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी वक्त लगा । परिवार में आर्थिक तंगी की वजह से उन्होंने कॉलेज जाने की बजाय किताबें ली और खुद जिला अधिकारी की परीक्षा की तैयारी करने लगे । इस परीक्षा में उन्होंने सर्वाधिक अंक प्राप्त किए । 

36 साल की उम्र में सरदार पटेल वकालत पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए उनके पास कॉलेज जाने का अनुभव नहीं था फिर भी उन्होंने 36 महीने की वकालत के कोर्स को महज 30 महीने में ही पूरा कर लिया । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देसी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने की वजह से सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान पाया । बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने ' सरदार ' की भी उपाधि प्रदान की । आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू - राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को 'भारत का विस्मार्क' और 'लौह पुरुष' भी कहा जाता है ।  

सरदार पटेल वर्गभेद तथा वर्णभेद के कट्टर विरोधी थे । सरदार पटेल अन्याय नहीं सहन कर पाते थे । अन्याय का विरोध करने की शुरुआत उन्होंने स्कूली दिनों से ही कर दी थी । नडियाद में उनके स्कूल के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे और छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से ना खरीद कर उन्हीं से खरीदें ।बल्लभ भाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें ना खरीदने के लिए प्रेरित किया । परिणाम स्वरूप अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया । 5 से 6 दिन स्कूल बंद रहा अंत में जीत पटेल की हुई । अध्यापकों की ओर से पुस्तकें बेचने की प्रथा बंद हुई । सरदार को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी समय लग गया इंग्लैंड में वकालत पढ़ने के बाद भी उनका रुख पैसा कमाने की तरफ नहीं था । सरदार पटेल 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में अपनी वकालत शुरू की जल्द ही वह लोकप्रिय हो गए अपने मित्रों के कहने पर पटेल ने 1917 में अहमदाबाद के सैनिटेशन कमिश्नर का चुनाव लड़ा और उसमें जीत भी हासिल की । गृहमंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों को भारत में मिलाना था इस काम को उन्होंने बिना खून बहाए करके दिखाया । केवल हैदराबाद के 'ऑपरेशन पोलो' के लिए उन्हें सेना भेजनी पड़ी । भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हें भारत का लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है । 

सरदार पटेल की महानतम देन थी 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना । विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा ना हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो । सरदार बल्लभ भाई पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री होते । वे महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पद से पीछे हट गए और नेहरू जी देश के पहले प्रधानमंत्री बने । देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह , सूचना तथा रियायत विभाग के मंत्री भी थे । सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा स्टैचू ऑफ यूनिटी का 31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भव्य समारोह में अनावरण किया । लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले गृहमंत्री थे । स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देसी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । गुजरात में नर्मदा के सरदार सरोवर बांध के सामने सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर ऊंची लौह प्रतिमा का निर्माण किया गया है । भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने की वजह से सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान पाया है । 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने सरदार पटेल की 137 वी जयंती पर इस प्रतिमा को राष्ट्र को समर्पित किया यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है । इस प्रतिमा का नाम एकता की मूर्ति रखा गया है । पीएम मोदी के कथन अनुसार कौटिल्य की कूटनीति और शिवाजी के शौर्य के समावेश थे_ सरदार पटेल ।  उन्होंने कहा कि जब सबको लगता था कि देश ऐसे ही बिखरा रहेगा ऐसे निराशा के दौर में सरदार पटेल आशा की किरण थे  ।उनको एकता के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है और स्टेच्यू ऑफ यूनिटी इसका प्रमाण पेश करता है कि सरदार पटेल राष्ट्रीय गौरव और एकता के प्रतीक हैं । सरदार पटेल ने सदैव देशहित के विषय में सोचा था देश के लोगों की प्रत्येक समस्या के समाधान के लिए सदैव तत्पर रहे । आज उनकी प्रतिमा और उनका नाम स्वयं में एकता का प्रतीक है । सरदार पटेल की यह प्रतिमा 182 मीटर ऊंची है यह अमेरिका की ' स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी ' से तो ऊंची है ही साथ ही चीन की ' स्प्रिंग टेंपल बुद्धा ' से भी 177 फुट ऊंची है । इस वजह से दुनिया चाह कर भी सरदार पटेल की प्रतिमा और देश के प्रति उनके सम्मान और समर्पण को अनदेखा नहीं कर सकती । इस प्रतिमा के बनने से भारत के सबसे बड़े नेता को सम्मान मिला है । पटेल भारत के चीफ आर्किटेक्ट थे । जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का फैसला किया तो पटेल ने 562 रियासतों को एक साथ लाने का काम किया जिनकी वजह से देश धर्म और परंपरा के नाम पर बंटा हुआ था । कौटिल्य जैसे दिमाग वाले पटेल को यह पता था कि सभी रियासतों को एक साथ लाना कितना जरूरी है और वे यह जानते थे कि इसे कैसे करना है । जिसमें बहुत सारी 'पॉलिटिकल बारगेनिंग' करने की जरूरत थी और सौभाग्य से इन सब के लिए हमारे पास सरदार पटेल थे लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि अब तक उन्हें उनके नाम के हिसाब से महत्व नहीं मिल सका । ना तो राजनीतिक रूप से और ना ही किसी अन्य तरीके से लेकिन अब उनकी प्रतिमा देश की सबसे ऊंची प्रतिमा है जो उनके कामों के हिसाब से उनका कद हमारे सामने दिखाती है । इस प्रतिमा के कारण पटेल एक बार फिर लोगों को एक साथ में लाए ; यह हम कह सकते हैं क्योंकि इस मूर्ति को बनाने के लिए देश भर के लोगों से लोहा जमा किया गया खासकर कृषि के लिए इस्तेमाल होने वाले लोहे के उपकरण जो खराब हो चुके थे । इसके लिए पूरे देश में 'लोहा कैंपेन' भी चलाया गया था । इस तरह सरदार पटेल की मूर्ति ने लोगों को साथ लाने का काम भी किया है । पटेल को देश की तरफ से इससे अच्छा सम्मान क्या दिया जा सकता था एक लौह पुरुष के लिए लौह कैंपेन चलाना अपने में ही एक अद्भुत और अविस्मरणीय कार्य था । 

सरदार पटेल ने सदैव देश और देश के लोगों के बारे में सोचा था । उनका एकमात्र लक्ष्य एक अखंड भारत का निर्माण करना था जो सौहार्द और भाईचारे पर आधारित हो । भले ही सरदार पटेल की मूर्ति को लेकर कितने ही सवाल क्यों ना उठे लेकिन यह सच है कि इससे देश का मान सम्मान भी बड़ा है और खुद सरदार पटेल को भी सम्मान मिला है जिसके वह हकदार हैं । साथ ही लोगों को रोजगार मिलने से यह मूर्ति देश की अर्थव्यवस्था में भी योगदान प्रदान करेगी । इसमें कोई शक नहीं है कि यह प्रतिमा देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनेगी । बिखरे हुए भारत को एक साथ जोड़ने वाले व्यक्ति के बारे में बार बार हर बार हर पीढ़ी को जानना चाहिए और यह ' स्टेचू ऑफ यूनिटी ' उसके लिए सार्थक होगा । हम पटेल के भारतवासी हैं । हम ही उनका सम्मान नहीं करेंगे तो क्या दूसरे देश मैं उनका सम्मान होगा । हम सबको तो प्रतिमा पर गौरवान्वित और फक्र होना चाहिए । 

कौटिल्य जैसी बुद्धि 
फौलादी थे विचार 
देसी रियासतों को मिलाकर 
बनाया अखंड भारत महान ।।

सारांश : सरदार पटेल का संपूर्ण जीवन एवं व्यक्तित्व सादगी भरा था । सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री हो सकते थे लेकिन महात्मा गांधी के निर्देश पर उन्होंने इस दावेदारी से अपना नाम वापस ले लिया था और जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे । उनका जीवन इतना सादगी भरा था कि वह अहमदाबाद में एक किराए के मकान में रहते थे ।15 दिसंबर 1950 को मुंबई में उनका निधन हो गया था । जब उनका निधन हुआ तब उनके बैंक खाते में केवल मात्र ₹260 थे ।सरदार पटेल के निधन के 41 साल बाद सन 1991 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया । उनकी ओर से यह सम्मान उनके पौत्र विपिनभाई पटेल ने स्वीकार किया था । वे एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे ; जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत स्वतंत्र राष्ट्र में एकीकरण का मार्गदर्शन किया । भारत और अन्य जगहों पर अनेक भाषाओं में उन्हें ' सरदार ' कहा जाता था जिसका अर्थ है ' प्रमुख ' जो आज भी हमारे बीच सबसे प्रमुख हैं और सबसे अद्भुत प्रतिमा ' स्टेच्यू ऑफ यूनिटी ' के रूप में देश को सदैव एकता के सूत्र में बांधे रहेंगे ।

संदर्भ : वेब समाचार से प्राप्त जानकारी ।
डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '



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