मैं नीरू मोहन 'वागीश्वरी' ज्ञान सवेरा के संपादक महोदय जी और प्रकाशन टीम का सहृदय धन्यवाद करती हूँ कि उन्होंने मेरी कविता को 'ज्ञान सवेरा समाचार पत्र में स्थान दिया ।
आभार सहित धन्यवाद
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मैं नीरू मोहन 'वागीश्वरी' वर्तमान अंकुर की संपादक और प्रकाशन टीम को सहृदय धन्यवाद करती हूँ कि उन्होंने मुझे वर्तमान अंकुर में स्थान दिया और मेरे सम्मान समारोह से संबंधित छाया चित्र और लेख को स्थान दिया ।
आभार सहित धन्यवाद
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मैं सब जानता हूँ तुम्हारी बदमाशियाँ
ReplyDeleteतुम्हारे हुश्न की कहर ढाती अठखेलियाँ
ज़ुल्फ़ है कि गहरा सा कोई तिलिस्म
या हैं किसी जादूगरनी की पहेलियाँ
मेरी कहाँ सुनती ही हैं अब ये फ़िज़ाएं
हवा,बादल,चाँद सब तुम्हारी सहेलियाँ
मैं दीवाना न हो जाऊँ तो क्या करूँ
श्रृंगार तेरा ऐसा कि हो नई-नवेलियाँ
तुम जहाँ बरसो सावन की फुहारों सी
बस जाए दिल की हर वीरान हवेलियाँ
सलिल सरोज