**खोजती अपनी पहचान**
निकली हूँ मैं खुले गगन में
ढूँढती हूँ अपनी पहचान ।
एक साधारण नारी हूँ मैं
मांग रही हर रोज़ इंसाफ़ ।।
कोई मुझे अबला है समझता
कोई समझता… जिंदा लाश ।
लिए स्वयं को बंद मुट्ठी में
खोज रही अपनी पहचान ।।
सदियों से मौन स्वर यह मेरा
मांग रहा तुमसे अधिकार ।
स्वतंत्र करो अब मुझको भी तुम
दे दो मुझको मेरी पहचान ।।
हटा कर सारे भेदभाव ये
मुक्त करो मुझको भी आज ।
परिचय स्वयं ही बन जाऊँगी
जगा है मन में आत्मविश्वास ।।
लिख दूँगी अपना इतिहास
पंखों में है अभी इतनी जान ।
खोल दो मेरे बंधन अब तुम
उड़ने दो उन्मुक्त… गगन के साथ ।।
स्वप्न लिए नयनों में अपने
निकल पड़ी जिस पथ पर आज ।
नहीं थमेंगे कदम यह मेरे
बिना पाए अपनी पहचान ।।
समक्ष झुकेगा हिंद यह मेरे
कर जाऊँगी ऐसे काम ।
शक्ति का भंडार है मुझमें
मेरे सपनों में है आग ।।
ऐसी आग जो कर दे रोशन
चहुँ सिम्त प्रकाश से भर दे ।
स्वर्णिम किरण निकले अंबर से
नभ से तल तक क्षितिज को रंग दे ।।
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