एक तन्हाई सी छिपी है
मेरी हर सुबह और शाम में
शायद यह जिंदगी इसी दर्द और गम में
यूं ही कट जाएगी ।
मौत आएगी मेरे सामने
जिस पल भी ऐ दोस्तों
मुझसे टकराकर चोट खाकर
खुद ही वापस चली जाएगी ।
अपने ही सीने में दफना दी है
कब्र अपनी…अपने हाथों से
मौत भी मुझसे होकर
लहूलुहान वापस जाएगी ।
जर्रा-जर्रा दर्द पर्वत बन बैठा
यूं मेरे सीने पर…
बे इख्त़ियारी मेरी ही…
मुझको सरेआम लुटवाकर जाएगी ।
गुम़गुस्सार मेरा अब न कोई बचा
इस जँहा में
ये जिंदगी मिट्टी की…
मिट्टी में ही मिल फना हो जाएगी ।
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