Thursday, 4 January 2018

आज भी अकेली है नारी

एक नारी…हाँ एक नारी
क्यों ठोकरों में ठुकराई जाती है ?
क्यों मर्द की आँखों में वह
पैरों की जूती कही जाती है ?
सोचती हूँ…सोचती हूँ
जब इस दर्द के मर्म के एहसास को
क्यों नारी ही नर से ठुकराई जाती है ।
देती है जो सृष्टि को जीवन
देवों में पूजी जाती है ।
फिर भी इस जालिम मर्द के आगे
कमजोर समझी जाती है ।

सर्वस्व लुटाती, परिवार पालती,
घर संभालती है ।
अपने मुँह का निवाला भी वह
औरों को खिलाती हैं ।
माँ, बेटी, बहू बन
सारी जिम्मेदारी निभाती है ।
फिर बस नारी ही क्यों
सत्य की कसौटी पर आँकी जाती है ।

कितना स्वार्थी है ये नर…
जन्म लेता है जिसकी कोख से
उसी को कलंकित करने को…
आतुर रहता है ।
माँ की गोद और आँचल के साए में
जो सुरक्षित रहता है ।
फिर क्यों … फिर क्यों एक दिन
उसी आँचल को मेला करने में
सबसे आगे भीड़ में खड़ा रहता है ।

कभी पति बनकर प्रताड़ना देता है ।
तो कभी प्रेमी बन…
बदनामी का जहर देता है ।
देखती हूँ जब…
हाल इससे भी बुरा बना दिया है इसने कभी पिता तो कभी ससुर बन
अस्तित्व जला दिया है इसने ।

पिता के घर होती है…
तो भी दुख सहती है ।
कभी घरवालों के
कभी रिश्तेदारों के जुल्म सहती है ।
कुछ नहीं कहती…
जब दागदार होती है ।
रिश्ता किसी का किसी से न बिगड़े
यही सोचती हैं ।
परिवार की इज्ज़त की खातिर
चुप्पी साध लेती है ।
बेबस होकर भी रिश्ते निभा लेती है ।

दिया भगवान ने इसे करुणा, दया, सहनशीलता का वरदान है ।
हजारों दुखों में भी मुँख पर
मुस्कान बनाए रखती है ।
आँखो में नमी लिए
अश्रुधार संभालती हैं ।
नयननीर को भी हृदय में उतार लेती है ।

ससुराल की चौखट पर पहुँचते ही
बेबस और लाचार नजर आती है ।
पराए घर से पराए ही घर में
जब आती है ।
यह मर्म सृष्टि के अंत तक ही
मर्म रहेगा ।
एक नारी का अपना घर
स्वर्ग में ही बनेगा ।
क्योंकि पृथ्वी पर तो सिर्फ
पत्थर की मूरत पूजी जाती है ।
लक्ष्मी और दुर्गा केवल मूर्ति में ही
नजर आती हैं ।
घर की लक्ष्मी को ठोकरों में
ठुकराया जाता है ।
दुर्गा का रूप जो धर ले तो उसे…
घर की चारदीवारी में जलाया जाता है ।

जो दुख सहती प्रताड़ना पाती है ।
सिर्फ और सिर्फ…
बच्चों की खातिर ही जिंदा रहती है । जीवनसाथी का जिसे
साथ नहीं मिलता है ।
वो औरत…वो औरत
ससुराल में आहुति बन जाती है ।

पति की लंबी आयु के लिए
व्रत रखती है ।
होई अष्टमी का व्रत रखकर
संतान बचाती है ।
संकट चौथ पर
सास-ससुर को मान देती है ।
फिर भी शंका की नजर से
हमेशा देखी जाती है ।

सोचती हूँ … जब इन सब बातों को
तो सिर्फ नारी ही क्यों…
कटघरे में नजर आती है ।
अपनी पूरी जिंदगी
दूसरों को अर्पित करके भी
यह अंत में अकेली ही…
खड़ी नजर आती है ।

जीवन जीती दूसरों के लिए…केवल
काँटों की राह भी सबकी
सहर बनाती है ।
मन, कर्म, वचन से
नारी हर अपना धर्म निभाती है ।
फिर भी अपने आपको
ज़ालिम समाज की बेड़ियों में पाती है ।

पूजनीय है यह सर्वस्व
लक्ष्मी स्वरूपा है यह बस
नहीं कम यह किसी से
नहीं हारी ये किसी से
सहनशील है यह बस
शक्ति का भंडार है इसके अंदर
नारी है यह… नारी है बस ।।।

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