चुप रहती
नारकीय जीवन
नारी सहती
चिंगारी जैसे
सुलगती औरत
रहती शांत
सीमा से बंधी
जैसे होती है नदी
नारी की छवि
नारी है घन
झरती बरसती
सदैव प्यासी
घर न दर
सदैव है बेघर
नारी है खग
बुलंद स्वर
पर रहती मौन
शब्दों की भांति
नारी है शक्ति
नहीं ये कमज़ोर
जीव को पाले
नारी का मन
ममता का भंडार
मिलेगा ज्ञान
सशक्त नारी
नवसृजन मूल
संपन्न धरा
बढ़ेगा मान
नारी देश की शान
करो सम्मान
घर की शान
फले फूले संसार
बेटी है मान
नारी उत्थान
नई सोच के साथ
देश विकास
राम की सिया
वनवासिनी हुई
संग हैं पिया
पढ़ें बेटियाँ
शिक्षित परिवार
मिलें खुशियाँ
हंसवाहिनी
है बल-बुद्धि दात्री
ईप्सा सफल
राणा प्रसन्न
दे मीरा को माहुर
चाल विफल
पुजती नारी
मंदिर गृह द्वारे
लक्ष्मी है आवे
असुर देव
नतशिर समस्त
नारी समक्ष
नारी का क्रोध
ब्रह्मांड भी हिलाए
विनाश लाए
सुता हमारी
आँगन की दुलारी
सबकी प्यारी
सुता-सुत हैं
मात-पिता की जान
प्यारी संतान
लाज का पर्दा
नारी का अभिमान
सम्मान करो
बहुत प्यारे
सुत-सुता हमारे
घर के तारे
जीवन साथी
सुख-दुख के संगी
बने सारथी
पर्णकुटिया
वनवास बिताया
रघु की माया
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