Tuesday, 30 January 2018

प्रदूषित होती हिंदी

प्रदूषित होती हिंदी
लेख

हिंदी हमारी शान, हिंदी हमारी जान,
हिंदी से है संसार, हिंदी से हिंदुस्तान,
हिंदी है मन में, हिंदी है तन में,
हिंदी से ही सार्थक…
होती हमारी पहचान ।।

हम सभी ने पर्यावरण प्रदूषण का नाम सुना है और हम देख भी सकते हैं कि पर्यावरण किस प्रकार से दिन-ब-दिन प्रदूषित होता जा रहा है । प्रदूषण चाहे कोई भी हो पर्यावरण या भाषिक हर स्थिति में असर देश पर या देश में रहने वाले समस्त देशवासियों पर पड़ता है । आज हमारे देश में हिंदी भाषा प्रदूषित होती जा रही है और इसका असर देश की प्रगति, विकास और देश के सम्मान पर पड़ रहा है । हिंदी हमारी मातृभाषा है और जहाँ माता का सम्मान नहीं होता वहाँ सुख समृद्धि नहीं रहती है । यह सच है कि जो देश अपनी मातृभाषा का सम्मान नहीं करता उस देश का पतन निश्चित है । यह पतन सांस्कृतिक, नैतिक और साहित्यिक किसी भी रूप में हो सकता है । हिंदी भाषा पर अंग्रेजी भाषा की काली छाया  का प्रकोप फैल रहा है जिससे राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का स्वरूप इतना बिगड़ गया है कि उसके नाम में भी परिवर्तन परिलक्षित होता है अर्थात आजकल हिंदी को हिंग्लिश बना दिया गया है । हिंदी पर अंग्रेजी भाषा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है अगर ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी भावी पीढ़ी मातृभाषा का रसवाद नहीं कर पाएगी । हिंदी पर अंग्रेजी की कुहास चादर चढ़ गई है जो भारत देश के अस्तित्व पर एक गहरा प्रहार है ।

हमें हिंदी भाषा को विश्व में सिरमौर बनाना है तो आने वाली पीढ़ी के मल में हिंदी के प्रति आदर सम्मान की भावना पैदा करनी होगी । मैं स्वयं कुछ समय से यह अनुभव कर रही हूँ कि हर रोज हिंदी का विकृत रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत हो रहा है ; कभी समाचार पत्र के माध्यम से, कभी पत्रिकाओं के माध्यम से और कभी चलचित्रों के माध्यम से हिंदी को इंग्लिश के साथ मिलाकर हिंग्लिश बनाकर हमारे समक्ष पेश कर देते हैं । मानो हिंदी भाषा भाषा नहीं एक मजाक हो । भाषा में बढ़ते प्रदूषण का कारण मीडिया से ज्यादा हम स्वयं हैं, समाज हैं, विद्यालय हैं और शिक्षक स्वयं हैं जो अपनी मातृभाषा को विखंडित होने से नहीं बचा पा रहे हैं । अभी भी हम औपनिवेशिक संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित हैं अगर हम अपने आस-पास नजर घुमाएँ तो पाते हैं कि माता- पिता स्वयं अपने बच्चों पर अंग्रेजी बोलने का दबाव डालते हैं और बच्चों को अंग्रेजी का ज्ञान न होने पर उन्हें हीनता का बोध कराते हैं । ऐसी मानसिकता और सोच के लिए समाज, राष्ट्र, माता-पिता और विद्यालय सभी समान रूप से जिम्मेदार हैं क्योंकि हम इसका विरोध नहीं करते बल्कि और बढ़ावा देते हैं । आज की शिक्षा व्यवस्था हिंदी भाषा के ह्वास का कारण है जहाँ हिंदी मात्र एक विषय बन कर रह गया है और अंग्रेजी ने भाषा का रूप ले लिया है । इसको प्रदूषण नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे । इसे 'भाषा प्रदूषण' संज्ञा देना कोई अचरज नहीं होगा । मैं मानती हूँ कि अंग्रेजी कुछ गिने-चुने रोजगारों के लिए आवश्यक हो सकती है मगर संपूर्ण समाज के लिए नहीं क्योंकि समाज की 90 फी़सदी जनता हिंदी में ही अपने विचारों का आदान प्रदान करती है ।
आज हमारे आस पास ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि हम लोभ, लालचवश स्वेच्छा से अंग्रेजी को ग्रहण करते हैं । हमारी मानसिकता के अनुसार लाखों रुपयों का वेतन अंग्रेजी माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने से प्राप्त होता है । हम मानने लगे हैं कि सफलता अंग्रेजी जानने बोलने से प्राप्त होती है । आज हम गुलाम किसी देश के नहीं आज हम गुलाम स्वयं अपनी सोच के हैं …हम गुलाम स्वेच्छा से अंग्रेजी भाषा के हैं । आज ड्राइवर चपरासी की नौकरी के लिए भी अंग्रेजी का ज्ञान होना अनिवार्य है । माँ अपने बच्चों को चाँद की जगह 'मून' और बंदर की जगह 'मंकी' पढ़ाती है बच्चा अगर शब्दों को हिंदी में बोले तो माँ की प्रतिक्रिया होती है कि यह चाँद नहीं 'मून' है अर्थात् बच्चों को धरातल से ही हिंदी के ज्ञान से विमुख किया जाता है । आज शादी ब्याह, जन्मोत्सव इत्यादि की पत्रिका और निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में छापे जाते हैं चाहे घर में किसी को अंग्रेजी आती हो या न आती हो मगर विवाह पत्रिका, निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही होने चाहिए क्योंकि अंग्रेजी भाषा आज शान का प्रतीक मानी जाती है जिसके कारण हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है और इसका श्रेय हमारे देशवासियों को जाता है जो अपनी मातृभाषा की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।

आज हम हिंदी दिवस मनाते हैं । साल में एक बार 14 सितंबर को पूरे देश में यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है । एक ही दिन हमें हिंदी की औपचारिकता क्यों करनी पड़ती है ? क्या हमारी मातृभाषा के सम्मान के लिए एक ही दिन है ? क्या हम हर दिन हिंदी दिवस के रूप में नहीं मना सकते ? क्या हम हर दिन अपनी मातृभाषा को सम्मान नहीं दे सकते हैं ? यह सभी प्रश्न हमें चिंता में डालते हैं । एक समय था जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे मगर आज हम अंग्रेजी के गुलाम होते जा रहे हैं । किसने कहा एक माँ अपने बच्चे को हिंदी नहीं अंग्रेजी में सब कुछ सीखाए ? किसने कहा एक कर्मचारी को अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है ? किसने कहा कि निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में ही हो ? क्या सरकार ने …देश की शासन व्यवस्था … नहीं किसी ने नहीं …यह सब हमारे लोभ, लालच और अंग्रेजी भाषा की हवा ने कहा जो ऊँची तरक्की, ऊँचा वेतन और चका-चौंध की छवि को दर्शाता है । भारतीय हिंदी भाषी होना क्या हीनता की निशानी है ? अब आप ही बताइए… क्या यह स्वेच्छा से गुलामी स्वीकार करना है या नहीं …?

हम स्वयं हिंदी के प्रदूषण के जिम्मेदार हैं । जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे तब भी अंग्रेजी का ऐसा और इतना बोल बाला नहीं था । अंग्रेजी थी मगर अंग्रेजी की गुलामी नहीं थी और न ही भारतीय भाषाओं के प्रति घृणा और तिरस्कार की भावना थी । हमारे देश के नेता अंग्रेजी जानते थे बोलते थे और बहुत विद्वान थे मगर सभ्यता और संस्कृति के सम्मान का ध्यान रखते थे । किंतु आज का नेता वोट तो हिंदी में माँगता है, नारे हिंदी में लगाता है, पर्चें हिंदी में बाँटता है किंतु लोकसभा और विधानसभा में शपथ ग्रहण अंग्रेजी में करता है । यह कहाँ तक सही है ? क्या उसे हिंदी में शपथ ग्रहण करने में शर्म आती है या अंग्रेज़ियत के भूत ने पूरे देशऔर उसके शासन को अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा है । हिंदी भाषा के अस्तित्व पर यह गहरा आघात है ।
न जाने जो हिंदी; वह हिंदवासी नहीं,
अंग्रेज़ी का ज्ञान पाकर कोई देशवासी नहीं,
हिंदी में ज्ञान पाओ, हिंदी में गुनगुनाओ,
हिंदी में ही नेताओं को शपथ ग्रहण करवाओ ।।

यह एक भ्रम बुरी तरह से हमारे हिंद में फैलाया गया है और चल रहा है कि हिंदी माध्यम से पढ़ने लिखने वाले युवक सफलता प्राप्त नहीं कर सकते । इस का नतीजा यह हुआ है कि गरीब और आम आदमी अंग्रेजी भाषा की चक्की में पिसने को तैयार खड़ा हो गया है और वह स्वयं अपने बच्चों को बड़े से बड़े अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाना चाहता है जिससे उसकी संतान को सफलता प्राप्त हो सके । परंतु यह वास्तविकता नहीं है हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले छात्र-छात्राएँ भी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं और उच्च पद पर आसीन हो रहे हैं । हिंदी भाषा का सर्वस्व कायम रखना है तो हमें स्वयं की सोच में बदलाव लाना होगा अंग्रेजी जानना, पढ़ना और बोलना बुरा नहीं है परंतु अपनी भाषा को पीछे रख कर नहीं ……आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता नजर आता है । आज लोग अपने बच्चों को प्राइवेट या कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा देना चाहते हैं । आज का युवा उच्च शिक्षा तो ग्रहण कर लेता है परंतु दो लाईन शुद्ध हिंदी न लिख पाता है और न ही बोल पाता है । आज का विद्यार्थी हिंदी नहीं पढ़ना चाहता । बारहवीं के विद्यार्थियों को आज मात्राओं का ज्ञान नहीं है । बारहवीं में आकर भी ि , ी ु , ू े , ै की मात्राओं के प्रयोग में सक्षम नहीं है । इसका जिम्मेदार कौन है …?
हम, आप या विद्यार्थी स्वयं हम से तात्पर्य शिक्षक, आप से तात्पर्य…अभिभावक से है । आज हमें युवाओं के मन में नयी चेतना जगानी होगी । अंग्रेजी के संक्रमण को रोकना होगा । प्रदूषित होती हिंदी को बचाना होगा । यह कार्य हम तभी कर सकते हैं जब हम जागरुक हो , हिंदी का महत्व समझें और अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान की भावना रखें । आज अनेक संस्थाएँ हिंदी विकास और विस्तार के लिए कार्य कर रही हैं जिनका एकमात्र ध्येय हिंदी को उच्च स्तर तक पहुँचाना और उसके ह्वास को रोकना है । हिंदी भाषा अकादमी एक ऐसी संस्था है जो राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार और विस्तार का कार्य करने में लगनशील है तथा हिंदी को भारत में ही नहीं विश्व स्तर पर सिरमोर बनाने का सार्थक प्रयास कर रही है । भारत के नागरिक होने के नाते हमें भी हिंदी उत्थान में अपना पूर्ण योगदान देने हेतु संकल्पबध होना होगा और हिंदी भाषा के उत्थान के लिए सदैव प्रयासरत् रहना होगा तभी हम हिंदी पर अंग्रेज़ी के प्रभाव को रोक पाएँगे और हिंदी पर पड़ रही काली छाया 'हिंग्लिश' को समाप्त कर पाने में सक्षम होगें ।
हिंदी है जन-जन की भाषा ।
हिंदी मेरे हिंद की भाषा ।
हिंदी का सम्मान करो ।
हिंदी परअभिमान करो।

निष्कर्ष

भाषा चाहे कोई भी हो वह मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है क्योंकि मानव सभ्यता को विकसित और गतिमान बनाने के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है और वह संप्रेक्षण भाषा से ही संभव है मुख से उच्चारित होने वाली ध्वनि की एक अनुपम व्यवस्था भाषा कहलाती है भाषा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है हिंदी , संस्कृत की उत्तराधिकारिणी भाषा है । आज हिंदी के संरक्षण की आवश्यकता क्यों महसूस हो रही है ? क्यों आज हिंदी को बचाने के लिए प्रयास हो रहे हैं ? क्या भाषा भी किसी के संरक्षण की मोहताज है ? हम भारतवासी होकर हमारा क्या यह कर्तव्य नहीं कि हम अपनी भाषा का सम्मान करें और उसे विश्व पटल पर लाए ।
अपनी भाषा में एक एहसास है ।
हिंदी देश का स्वाभिमान है ।

हिंदी से भविष्य और वर्तमान है ।
हिंदी भावों का महाजाल है ।

भावों का समंदर रहता है इसमें ।
एहसास से गुथा एक धागा है जिसमें ।

जोड़ देता है मन से मन को पल में कहीं भी ।
टूटते दिलों को जोड़ देता है दूर से ही ।

भावनाओं की भाषा  सौहार्द बनाती है ।
लिपि भाषा को  लिखना सिखाती है ।

भाषा से ही ज्ञान समृद्ध, विशाल मुमकिन है ।
भाषा नहीं तो शब्दों का महाजाल बुनना मुश्किल है ।

देश विदेश में भी इसका परचम लहराया है ।
सबने हिंदी को मन से अपनाया सौभाग्य हमारा है ।

अभिमान है हमें…हम हिंदुस्तानी हैं।
गौरवान्वित हैं हम… कि हम हिंदी भाषी हैं ।

नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Thursday, 25 January 2018

उत्तर 1.
जलद
जल में जन्म लेने वाला है जो वह है कमल (बहुव्रीहि समास)

चन्द्रमौलि
चन्द्र रूपी मौली (कर्मधारय समास) 

चन्द्रमुख
चन्द्रमा के समान मुख (कर्मधारय समास)
उपमेय - उपमान संबंध

उत्तर 3. माखनचोर  (तत्पुरुष समास का संबंध तत्पुरुष समास) माखन का चोर
इसमें दूसरा पद प्रधान है तथा संबंध सूचक परसर्ग चिह्न विद्यमान है ।

उत्तर 4. लंबोदर
लंबा है उदर जिसका अर्थात 'गणेश'

पीतांबर
पीला है अंबर (वस्त्र) जिसके अर्थात 'श्री कृष्ण'

उत्तर 5. जिस समस्त पद का पहला पद अव्यय हो तथा वही प्रधान हो अथवा शब्द की आवृत्ति से समस्त पद अव्यय बन जाए उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं ।

उदाहरण आजन्म - जन्म भर
यथाविधि - विधि के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
बखूबी - खूबी के साथ
प्रत्येक - एक-एक

अव्ययीभाव में मुख्य रूप से आ, भर, नि, प्रति, यथा, अन, बे, बा, ब आदि अव्यय शब्दों का प्रयोग होता है ।

हिंदी

हर जन हिंदी बोले,
हर मन हिंदी बोले,
शुद्ध शब्द उच्चारण,
शुद्ध लेखन और वाचन,
यही ध्येय हमारा है,
हिंदी भाषा और हिंदी शिक्षक को गौरवान्वित और सिरमौर बनाना है ।
हिंदी भाषा अकादमीे ने इसी दिशा में कदम बढ़ाया है ।
शिक्षक प्रकोष्ठ बनाने का एक नन्हा स्वप्न सजाया है ।

हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के द्वारा हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु 'शिक्षक प्रकोष्ठ' का गठन सराहनीय कार्य है । शिक्षक वह सेतु और स्तंभ है जो हमारी भावी युवा पीढ़ी में भाषा के प्रति सम्मान और आदर पैदा कर सकता है । भारत एक हिंदी भाषी देश है और हिंदी आम जन समुदाय की भाषा है ।
मगर आज भाषा का स्वरूप भ्रष्ट होता प्रतीत हो रहा है क्योंकि देखा जाए तो वक्ता न तो पूर्ण हिंदी बोलता है और न ही पूर्ण इंग्लिश बोलता है उसने इन दोनों भाषाओं को मिलाकर एक नई भाषा को जन्म दे दिया है जो हिंग्लिश बनकर हमारे सामने प्रस्तुत है । आज देश के 80% लोग इसी भाषा को दैनिक जीवन में अपनाते हैं । हिंदी भाषा का स्वरूप बिगड़ता जा रहा है इसका मुख्य कारण विद्यार्थियों की हिंदी भाषा के प्रति उदासीनता देखी गई है । आज वह हिंदी लिखने और पढ़ने से दूर भागते हैं । जहाँ तक मैंने अनुभव किया है हमारे समय में हिंदी मीडियम स्कूल ज्यादा होते थे जिनमें सभी विषय हिंदी में पढ़ाए जाते थे सिर्फ इंग्लिश भाषा का एक पीरियड होता था ।
आज इंग्लिश मीडियम स्कूल हो गए हैं सभी विषय इंग्लिश में ही पढ़ाए जाते हैं और सिर्फ एक भाषा का विषय होता है जो हिंदी है । दूसरा कारण यह है कि बच्चों के अभिभावक भी अपने आप को तब गर्वित महसूस करते हैं जब बच्चा इंग्लिश बोलता है और हिंदी बोलने वाले को हीन भावना से देखा जाता है । मेरा मानना है कि हमें हिंदी भाषा का वर्चस्व बनाए रखने के लिए हमें स्कूलों से और घरों से शुरुआत करनी होगी । आज के युवा वर्ग में हिंदी भाषा के प्रति रूचि उत्पन्न करनी होगी । स्कूलों में हम ज्यादा से ज्यादा हिंदी से संबंधित प्रतियोगिताएँ संपन्न करवा सकते हैं जैसे निबंध प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता, कविता गायन इत्यादि ।
आज का युग विकास और विज्ञान का युग है ।भावी पीढ़ी के बच्चे बहुत जोश और बुद्धि से परिपूर्ण है और बच्चों के माता- पिता भी शिक्षित हैं तथा अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बहुत ही चिंतित हैं । वह बच्चों को सभी प्रकार के सुख और उच्च शिक्षा देने में भी समर्थ हैं और चाहते भी हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर डॉक्टर इंजीनियर साइंटिस्ट इत्यादि बने ।
आज शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है और अभिभावक भी यही मंशा रखते हैं कि उनका बच्चा अंग्रेजी बोलने-लिखने में प्रवीण हो जाए क्योंकि बिना अंग्रेजी ज्ञान के नौकरी मिलने में परेशानी होती है जिसके कारण हमारी मातृभाषा का स्तर गिरता जा रहा है । विद्यार्थी हिंदी पढ़ने- लिखने से कतराते हैं । आज की स्थिति ऐसी है कि सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी के विद्यार्थी भी हिंदी लेखन और वाचन में अक्षम हैं क्योंकि उन्हें मात्राओं का ज्ञान नहीं होता, व्याकरण के ज्ञान की कमी। इसका मुख्य कारण विद्यालय में तो कुशल हिंदी शिक्षकों की कमी है या फिर प्राथमिक स्तर पर अध्यापकों का विषय संबंधी ज्ञान न होना है क्योंकि प्राथमिक स्तर पर सभी कक्षाओं में 'मदर टीचिंग' होती है अर्थात कक्षा अध्यापिका ही समस्त विषयों को पढ़ाती है जहां तक मेरा मानना है और अनुभव है एक शिक्षक सभी विषयों में समान रुप से प्रवीण नहीं हो सकता उसे एक या दो क्षेत्रों में प्रवीणता प्राप्त हो सकती है परंतु सभी क्षेत्रों में प्रवीणता आना असंभव है क्योंकि आज की पीढ़ी के भी अध्यापकों ने भी उसी पाठ्यक्रम का अनुकरण किया है जो आजकल के स्कूल में विद्यमान है अर्थात अंग्रेजी माध्यम जिसके कारण वह भी हिंदी भाषा के को पढ़ने-लिखने में अक्षम रहते हैं । विश्व के अधिकतर देशों में प्रारंभिक शिक्षा विदेशी भाषा में नहीं होती भारत ही एक ऐसा देश है जहां पर विदेशी भाषा को अपनाया गया है जो उचित नहीं है आज हिंदी भाषा के संरक्षण की आवश्यकता है ।

वर्तमान में अंग्रेजी का बोलबाला है भारत को आज विश्व का सिरमौर बनाना है तो हमें हिंदी के माध्यम से देश का विकास करना होगा क्योंकि अंग्रेजी तो मात्र कुछ प्रतिशत लोगों का विकास करती हैं और हिंदी 90% लोगों की भाषा है इसलिए इसका प्रयोग 90% लोगो के विकास को दर्शाता है । हिंदी की प्रतिष्ठा कायम करके ही हम देश का विकास कर सकते हैं ।
इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हिंदी भाषा अकादमी ने एक छोटा -सा कदम आगे बढ़ाया है जिसका उद्देश्य ……
* हिंदी को सर्वोपरि बनाना है और दिन प्रतिदिन उसके बिगड़ते स्वरूप को संवारना है अर्थात हिंग्लिश को हिंदी में परिवर्तित करना है इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए देश के शिक्षक ही मील का पत्थर बन सकते हैं ।
*हिंदी शिक्षक इस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं इसके लिए हिंदी भाषा अकादमी ने एक शिक्षक प्रकोष्ठ बनाने की योजना बनाई है जिसमें……
*'हिंदुस्तानी भाषा अकादमी भाषा के प्रचार-प्रसार संबंधी योजनाओं में गति देने के उद्द्येश्य से "हिंदुस्तानी भाषा अकादमी शिक्षक प्रकोष्ठ' का गठन करने के लिए प्रयासरत है ।
*हमारा मानना है कि शिक्षक ही वह सेतु और स्तंभ है जो हमारी नई पीढ़ी में भाषा के प्रति सम्मान पैदा कर सकते हैं ।
शिक्षक प्रकोष्ठ का उद्देश्य
*भाषा के सभी शिक्षकों को जोड़ना ।
*उन्हें अकादमी की गतिविधियों में सम्मलित करना ।
*उनके लेखन को प्रोत्साहित और सम्मानित करना ।
*उनकी उपलब्धियों को समाज और सरकार तक पहुँचाना आदि कुछ मुख्य बिंदु हैं जिन्हें इसमें सम्मलित किया जाएगा । अगर सभी सम्मानित भाषा शिक्षक एकजुट होंगे तो अपनी बात प्रभावशाली ढंग से संस्था के माध्यम से संबंधित संस्था/व्यक्ति तक पहुँचा पाएँगे । *अकादमी भाषा शिक्षकों के लिए 'सम्मान समारोह' और भाषा/व्याकरण के विशिष्ट वक्ताओं के द्वारा कार्यशालाओं का आयोजन की योजना पर कार्य कर रही है ।
शिक्षक प्रकोष्ठ में प्रदेश के अधिक से अधिक हिंदी भाषा के शिक्षकों को शामिल करने की योजना बनाई जा रही है । संपूर्ण सत्र में 100-100 शिक्षकों के 12 समूह बनाए जाने की संभावना है अर्थात 1200 हिंदी शिक्षकों का संघ शिक्षक प्रकोष्ठ के रूप में उभरकर हमारे समक्ष प्रस्तुत होगा । अकादमीे ने 1 वर्ष में 12 कार्यशालाओं की योजना का प्रारूप तैयार किया है हर महीने एक कार्यशाला महीने के चयनित किसी भी एक रविवार को दिल्ली के प्रतिष्ठित सभागार में संपन्न होगी । शिक्षक प्रकोष्ठ के अंतर्गत बनाए गए प्रत्येक समूह को क्रमश: इस कार्यशाला के लिए आमंत्रित किया जाएगा । साल में 12 कार्यशालाओं के अंतर्गत बनाए गए प्रत्येक समूह को भागीदारी का अवसर दिया जाएगा । कार्यशालाओं का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा व्याकरण संबंधी ज्ञान उपलब्ध कराना होगा । कार्यशाला में हिंदी व्याकरण की संपूर्ण और सटीक जानकारी प्रदेश के विशिष्ट हिंदी विद्वानों और उच्च शिक्षा प्राप्त शिक्षकों द्वारा संपन्न होगी । यह कार्यशालाएँ निशुल्क होंगी । किसी भी व्यक्ति विशेष से कोई भी शुल्क नहीं लिया जाएगा । इसका संपूर्ण संचालन ऐर कार्यभार अकादमी स्वयं के खर्चे से करेगी । यह कार्य पैसा या नाम कमाने के लिए नहीं बल्कि हिंदी भाषा प्रचार, प्रसार और विस्तार हेतु होगा जिसके लिए संस्था कृतसंकल्प है । दिल्ली सरकार की ओर से कोई सहयोग किया जाता है तो अकादमी सहर्ष इसको स्वीकार करेगी ।  यह हमारा सौभाग्य होगा कि हमारे कार्य को सरकार की तरफ से अगर किसी भी रुप में कोई भी प्रोत्साहन मिलता है और इसके लिए हम सदैव दिल्ली सरकार के आभारी रहेंगे ।
इस शैक्षणिक कार्य में शिक्षकों की सक्रियता, लगनशीलता, कर्मठता के लिए उनको उनके इस कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र, अंग वस्त्र और प्रतीक चिन्ह देकर सभी सदस्य शिक्षकों को सम्मानित किया जाएगा । जिससे कार्य के प्रति, शिक्षण के प्रति और हिंदी शिक्षक होने के प्रति वह अपने को गौरवान्वित महसूस कर सके क्योंकि अक्सर देखा गया है कि प्राइवेट स्कूलों में शिक्षक की मेहनत, लगन और कर्मठता के लिए उन्हें सम्मानित नहीं किया जाता है । यह श्रेय कुछ गिने चुने शिक्षकों को ही दिया जाता है जो या तो पुराने होते है या फिर विद्यालय प्रबंध के नज़दीकी ऐसे स्थिती में जो शिक्षक अपने कार्यों के प्रति कर्मठ रहते है या मेहनती होते है अपने कार्य का उचित पुरस्कार नहीं प्राप्त कर पाते करते हैं । इससे कार्य के प्रति अभिरुचि कम हो जाती है इसलिए हमारे शिक्षक प्रकोष्ठ का मुख्य उद्देश्य यही है कि जो प्रदेश के स्कूलों में अच्छे शिक्षक हैं जो भाषा के विकास हेतु कुछ करना चाहते हैं और हिंदी को केवल हिंद तक नहीं विश्व स्तर की भाषा बनाने में कदम से कदम मिलाकर साथ चलना चाहते हैं उनको इस शिक्षक प्रकोष्ठ का अंग बनाया जाए जिससे हम और हमारी आने वाली पीढ़ी भी शान से कहे कि हम हिंदीभाषी भारतीय हैं । हमें अपनी मातृभाषा हिंदी पर गर्व है और इसे पाकर हम अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं । हिंदी भाषा का उद्देश्य मातृभाषा विकास करना और भावी पीढ़ी में हिंदी भाषा के प्रति प्रेम और सम्मान उत्पन्न करना है । आज की युवा पीढ़ी को और आने वाली पीढ़ी को हिंदी बोलने में शर्म महसूस  होती है क्योंकि अंग्रेज़ियत का बोलबाला है । कहते हैं न कि…जब जागो तभी सवेरा तो जाग जाओ अपनी मातृभाषा हिंदी को आगे बढ़ाने में हमारी मदद करो अगर हमें हिंदी को उच्च और सर्वोच्च शिखर पर देखना है तो हमें पहले की तरह विद्यालयों में हिंदी और अंग्रेजी माध्यम दोनों का चलन अवश्य करना होगा जिससे विद्यार्थी चयन कर सके कि उसे किस माध्यम में पढ़ना है आजकल प्राइवेट स्कूलों में हिंदी माध्यम में शिक्षणऔर प्रशिक्षण बिल्कुल नहीं है सिर्फ़ अंग्रेजी माध्यम में शिक्षण को ही अपनाया गया है जिसके फलस्वरुप बच्चा हिंदी पढ़ने में असमर्थ रहता है अगर हम इंग्लिश और हिंदी माध्यम दोनों ही तरह के माध्यम स्कूलों में प्रचलित कर दें तो शायद कुछ हद तक हम हिंदी भाषा का वर्चस्व कायम करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं ।
हिंदी को प्रतिष्ठित करना देश का विकास करना है । इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए …
*अंग्रेजी की अनिवार्यता को कम कर हिंदी को अंग्रेजी का विकल्प बनाया जाना चाहिए ।
*हिंदी को ज्ञान-विज्ञान तथा तकनीकी विषयों के शिक्षण का माध्यम बनाया जाना चाहिए ताकि हिंदी ज्ञान और रोजगार की भाषा बन सके ।
*उच्च शिक्षा जैसे डॉक्टरी, इंजीनियरिंग इत्यादि के शोध कार्य हिंदी में मान्य करना ।
* केवल अंग्रेजी में कार्य करने को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए अगर अंग्रेजी में कार्य किया जाता है तो उसका हिंदी विकल्प भी अनिवार्य रूप से होना चाहिए ।
*सभी सरकारी कार्यालयों में हिंदी भाषा में ही कार्य संपन्न होना चाहिए । *अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में हिंदी का प्रयोग हो जिससे भारतीय अस्मिता को कायम किया जा सके ।
*हिंदी साहित्य को बढ़ावा देना, हिंदी के मानक रूप को बनाए रखना, हिंदी माध्यम से शिक्षण और प्रशिक्षण को बढ़ावा देना तथा हिंदी शिक्षकों और हिंदी भाषा में काम करने वाले कर्मचारियों को पुरस्कृत करना ।
यह छोटा सा कदम है जिसके माध्यम से हम हाथ से हाथ और कदम से कदम मिलाकर चले तो हिंदी भाषा के उत्थान में हम सभी बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं अपनी मातृभाषा के वर्चस्व को सर्वोच्च शिखर पर ले जाना और उसको विश्व का सिरमोर बनाना हमारा ध्येय और लक्ष्य है । जो हिंदी अंग्रेजी में मिलकर हिंग्लिश बन गई है उसे सिर्फ़ और सिर्फ़ हिंदी रूप प्रदान करना लक्ष्य है ।
हिंदी है जन-जन की भाषा
हिंदी मेरे हिंद की भाषा
हिंदी का सम्मान करो तुम
हिंदी पर अभिमान करो तुम ।।

Wednesday, 24 January 2018

आज भी हम गुलाम हैं

यह मेरा देश भारत महान है ।
कृषि प्रधान पुरातन आर्यव्रत नाम है ।

सोने की चिड़िया पहचान बनाए था ।
राजा दुष्यंत के पुत्र…
भारत का नाम पाया था ।

हिमालय से निकली शुद्ध निर्मल जल की धारा है ।
असंख्य खनिज पदार्थों को अपनी गोदी में उतारा है ।

कश्मीर जैसे…
प्राकृतिक रमणीय स्थल ने इसे
स्वर्ग-सा सुंदर बनाया है ।
गंगा, यमुना जैसी नदियों ने शीतल जल पहुँचाया है ।

हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है ।
वंदे मातरम् राष्ट्रीय गीत के रूप में
हमने पाया है ।

जन-गण-मन ने गौरव बढ़ाया है ।
तीन रंग का तिरंगा नभ में फहराया है ।

यह देश की मिट्टी की सोंधी खुशबू का असर है …कि हमारे संस्कारों में गुरु ने भगवान का दर्जा पाया है ।
माता के चरणों में स्वर्ग है यही हमारी संस्कृति ने बताया है ।

मेहमान को हमने जान से प्यारा बनाया है ।
अतिथि देवो भव: यही हमें देश ने सिखाया है ।

हम अपने वतन को सलाम करते हैं ।
जिसके एक किनारे पर अंडमान निकोबार और दूसरे पर हिमालय सुशोभित होते हैं ।

तिरंगा देश की शान है ।
सीमा का हर सैनिक हमारा स्वाभिमान है । 

तरक्की की राह खुली है,
मेट्रो का जमाना है यहाँ ।
आसमान में अनुसंधान जारी है,
फिर भी परेशान हर इंसान है यहाँ ।

असमानता धन से नजर आती है ।
गरीब को दिन-ब-दिन और दीन बना जाती है ।

अमीरी का परचम अमीर ही फहराता है ।
गरीब तो हर हाल में फांकों में ही दिन बिताता है ।

देश की बेटियाँ महफूज़ नहीं आज भी यहाँ ।
सहमी-सहमी सी रहती हैं अपने घरौंदों में यहाँ ।

नारी को आज भी अबला कहा जाता है । पुरुष प्रधान समाज आज भी उसे नीचा दिखाता है ।

स्त्री …स्त्री से ही मात खाती हैं ।
ननद और भाभी आज भी सामंजस्य नहीं बैठा पाती हैं ।

भाई…भाई के खून का प्यासा है ।
जाति-पाति, ऊँच-नीच का भेदभाव अभी भी देखा जाता है ।

शिक्षा के लिए अभी भी तरसती हैं बेटियाँ।
बेटों को आज भी मन्नतों से मांगा जाता है ।

बूढ़े …माँ-बाप आज भी बेसहारा है ।
अंतिम क्षण जीवन के वृद्ध आश्रम ही सहारा है ।

स्वतंत्रता के सत्तर वर्ष बाद आज भी वही खड़ा है जमाना ।
गुलाम नहीं …फिर भी बंधनों के पाश में बंधा है जमाना ।

अपने संकीर्ण विचारों और सोच की बेड़ियों को बाँधे हुए है ।
आँखों पर काला चश्मा और कानों में पर्दा लगाए हुए है ।

न तो सुनाई… न दिखाई देता है,
अपनी नासमझी का दोष देश के सिर मड़ता है ।

जब तक न बदलेगा इंसान सोच को अपनी,
तरक्की की राह, विकास का स्तर निम्न रहेगा तब तक ही……

सोच ले… सोच ले वक्त रहते ही,
बदल अपने आपको
ज़माना बदलेगा तभी।।

Wednesday, 17 January 2018

समीक्षा-2

संगम सुवास नारी मंच
आज का कार्य- विषय बाल कहानी / कविता
विद्या- स्वैच्छिक
दिनांक- 17 - 1- 2018 , बुधवार
आज की समीक्षा

1. पहली रचना 'बाल निवेदन' शीर्षक पर आधारित बाल कहानी लक्ष्मी चौबे जी की प्राप्त हुई । शिक्षाप्रद संदेश देती कथा
'पेड़ बचाओ'
उत्तम सृजन!

2. दूसरी बालकथा डॉक्टर स्वाति श्रीवास्तव जी की प्राप्त हुई बच्चों को संदेश देती कहानी कर्म ही जीवन है और हमें प्रत्येक कार्य को एक नियमावली के अनुसार करना चाहिए ।
उत्तम संदेश !

3. तीसरी रचना ऋतु गोयल जी की शीर्षक 'धड़कन' बालकथा नाम से प्राप्त हुई । बच्चों का हृदय बहुत ही कोमल होता है । अपनी कहानी में सहयोग की भावना, प्रेम, दया भाव दर्शाया है जो बच्चे में कूट- कूट कर भरा होता है ।
उत्तम कथा!

4. चौथी बाल कथा इंदु शर्मा जी की प्राप्त हुई । क्षमाशीलता जैसे गुणों को उजागर करती है । बच्चों में यह भावना बचपन से ही आनी चाहिए । उच्च गुणों का पदार्पण करती कथा ।

5. पांचवी रचना 'मेरा गांव' बाल कविता गार्गी जी की प्राप्ति हुई । गांव का सजीव चित्रण करती, प्रकृति का वर्णन करती प्रेमभाव, सद्भाव दर्शाती सार्थक कविता ।

6. छठी रचना नेहा जी की प्राप्त हुई ।
दान सबसे बड़ा धर्म है आप की कहानी ने इतिहास से अवगत कराया है । बच्चों को इस प्रकार की कहानी का पता होना चाहिए हमारे इतिहास में बहुत से ऐसे आदर्श चरित्र हैं जिनका अनुसरण बच्चों को सही मार्ग दिखा सकता है । आज की पीढ़ी के लिए ये आदर्श चरित् प्रेरणास्रोत बन सकते हैं । उत्तम सृजन!

7. सातवी रचना अर्चना राय जी की बाल कहानी  शीर्षक 'सच्ची दोस्ती' जिसमें उन्होंने यह बताने का प्रयास किया है कि सच्ची दोस्ती ईश्वर की नियामत होती है ।  ईश्वर ने सभी को समान बनाया है सभी की रगों में एक ही रंग का खून बहता है चाहे अमीर हो या गरीब कोई किसी भी समय किसी के भी काम आ सकता है। कहा भी गया है… जहां पर सुई का काम होता है वहां तलवार की कोई जरूरत नहीं होती । अहंकार हमेशा अपमान और अंधेरा देता है । हमें सभी के साथ एक-सा व्यवहार करना चाहिए ।
उत्तम संदेश देती सार्थक बालकथा ।

8. आठवीं रचना छाया सक्सेना जी की प्राप्त हुई जिसका शीर्षक 'एकता की शक्ति' एकता में बल होता है कठिनाई में हमेशा एकजुट होकर ही हर समस्या का समाधान पाया जा सकता है एकता का संदेश देती उत्तम रचना ।

9. नौवीं रचना हमें सूचि संदीप जी की प्राप्त हुई जिसका शीर्षक 'बुलबुल की मुस्कुराहट' बहुत ही उत्तम सृजन 'दीदी' बेटियों की शिक्षा बहुत जरूरी है । अपने देश की इस व्यवस्था को सुधारने के लिए हमें अपने घरों से ही शुरुआत करनी होगी । देश का भविष्य यही बच्चे और यही बालिकाएं हैं । शिक्षा की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए । जिस साधन से आपने एक गरीब की शिक्षा का रास्ता बताया है बहुत ही उत्तम साधन, बहुत ही उत्तम विचार और सुझाव । शिक्षा दान सबसे उत्तम दान माना गया है ।

10. दसवीं रचना नीरू मोहन जी की कविता 'चिड़िया के अंडे' प्राप्त हुई । इस कविता के माध्यम से उन्होंने यह समझाने की कोशिश की है कि बच्चों को अपने मां-बाप का कहना मानना चाहिए ।

11. ग्यारहवीं रचना भावना जी की प्राप्त हुई जिसका शीर्षक 'आदत' कार्य के द्वारा बच्चों में शिक्षा प्रसार करती यह उत्तम कथा । सही कहा आपने सही समय पर अगर गलती को सुधार लिया जाए तो हम आगे बढ़ सकते हैं ।

12. बारहवीं रचना कविता ' जाड़े में' सारिका जी की प्राप्त हुई । आपकी कविता ने सचमुच जाड़े में जाड़े का एहसास दिला दिया । उत्तम सृजन !

13. तेरहवीं रचना सुनीता जी की बाल कविता प्राप्त हुई बिल्कुल सही कहा सुनीता जी झूठ कभी भी सार्थक फल नहीं देता और झूठ कभी ना कभी सामने आता है बच्चों को अच्छी सीख देती कविता ।

14. चौदहवीं कविता 'परीक्षा' अंजू गोयल जी की प्राप्त हुई परीक्षा के भय को दर्शाती मनचली-सी कविता परीक्षा के आते ही खेलकूद बंद हो जाता है सत्य को दर्शाती सार्थक चुलबुली-सी ।

15. पंद्रहवीं बाल कविता 'मां कहती है' मंजूषा जी की प्राप्त हुई । प्रकृति का भरपूर चित्रण करती प्रकृति के माध्यम से एकजुटता और दोस्ती का संदेश देती कविता । उत्तम सृजन

आज संगम सुवास नारी मंच पर बाल साहित्य का मेला लगा था । हम अपनी भावी पीढ़ी को इन्हीं बाल कविताओं के माध्यम से एक अच्छा संदेश पहुंचाने की एक छोटी सी सार्थक कोशिश की हैं । हमारे मंच की समस्त बहनों को आज के उत्तम सृजन की बधाई और सहृदय धन्यवाद । मैं हृदयतल से सभी बहनों का धन्यवाद करती हूँ और ऐसे ही उत्कृष्ट सृजन की भविष्य में कामना करती हूँ ।

जिन बहनों ने अपनी रचनाओं को शीर्षक नहीं दिया है उन बहनों से अनुरोध है कि अपनी रचना को शीर्षक ज़रूर दे इससे रचना स्पष्ट और सुंदर बन जाती है ।
धन्यवाद!

Monday, 15 January 2018

भाव भूषण सम्मान


साहित्य संगम संस्थान इंदौर द्वारा सम्मानित

Saturday, 13 January 2018

हाइकु-6

तम नाशक
चाँद और सितारे
नभ के प्यारे

चाँद, चाँदनी
निहारिका बरसे
श्वेत अंबर

बच्चों के प्यारे
चंदा मामा हमारे
पुए खिलाएँ

सूरज कर
नभ पर छा जाएँ
उषा फैलाएँ

लाल गुलाब
प्रेम की अभिलाषा
प्रीत सैलाब

वीर शहीद
पुष्प की अभिलाषा
नमन हिंद

मुर्झाया फूल
अभिलाषा सहित
मिले शूल

मौन की भाषा
समझ से बाहर
मिले निराशा

अंतकरण
है उड़ा चला जाता
आस बंधाता

पंख लगाए
मानस अभिलाषा
उड़ती जाए

कठिन राह
मुट्ठी भर है आशा
अधिक चाह

भाग्य विधाता
दुख पार लगाओ
जगाओ आशा

तुच्छ लालसा
मर्यादा उल्लंघन
मिले कलंक

चंद्र तारक
हैं आशा के दीपक
तमनाशक

आस का दीप
है सिम्त प्रकाशित
सागर सीप

न हो निराश
अभिलाषित दीप
करें प्रकाश

आशा-निराशा
सिक्के के दो पहलू
मिलेगी दिशा

खुशी से भरा
बीज का अंकुरण
हरित धरा

उर अचला
नव आशा अंकुर
जगत खिला

करुण भाव
अनुपम प्रकाश
हृदय राव

परिभाषाएँ
करती प्रकाशित 
अभिलाषाएँ

अभिलाषाएँ
कल्पना की उड़ान
हो पूर्ण स्वप्न

चाँद के पास
न जल न आहार
रोटी की आस    

मन दर्पण
पथ हो आलोकित
तन अर्पण

अप्रिय सत्य
सच्चाई का महत्व
क्या हो कर्तव्य

ये अहंकार
विनाश का है मूल
नष्ट संसार

पक्षी सिखाते
श्रम, लग्नशीलता
मेल कराते

निर्दिष्ट दिशा
पथ हो प्रकाशित
समाप्त निशा

नव रश्मियाँ
आलोकित करती
उर का तम

विश्व का पथ
तू नन्हा-सा पथिक
चलना सीख

मनोकामना
धरा स्वर्ग बनाऊँ
शांति फैलाऊँ

ईश निर्माता
मंगलवर दाता
ज्ञान बढ़ाता

ईश की स्तुति
मंगलमय पथ
इच्छा की पूर्ति

काया कुरूप
सज्जन व्यवहार
शील स्वरुप

सत्यवादिता
है कड़वी सदैव
लोग नाराज़

प्रयत्नशील
मानव श्रमशील
भ्रमणशील

क्रोधित स्वर
शमन न करते
विरोधी ज्वर

वर्षा का जल
नदियों ने निगला
हरित थल

मरी लताएँ
झड़ते कंद फूल
मृद शाखाएँ

सलिल बहा
दर्प नदी का टूटा
जल है कहाँ

धैर्य साहस
संकट के समय
भय परास्त

दीन बेबस
आँखों में तितलियाँ
अनाज कहाँ

लगाएँ घात
सीमा पर दुश्मन
कटे न रात

पेट की भूख
हैं आँखें ललचाई
दीनता दुख

वन के पंछी
आसमान है घर
लोभ न पाप

उन्मुक्त नाभ
सीमा-हीन गगन
उड़ते सब

पक्षी का कर्म
निर्भय विचरण
हित हो धर्म

निर्जन वन
बेल, पत्र, लताएँ
भरा है धन

नन्हा-सा पात
मुख करता लाल
पान कमाल

वर्षा में खुश
सूखे में मुरझाती
माता धरती

लेटलतीफ
मेहमान का आना
कभी ना भाता    

असीम नभ
अभिलाषित पर
उत्साह नम

होली त्योहार
बने सद्भाव प्यार
रंग बहार

होलिका दाह
गुझिया की मिठास
फाग का माह

फाग में होली
बन रही है टोली
मीठी है बोली

रंग अबीर
मन रंग-रंगीला
मची है होली

रंगों का खेल
पानी भरे गुब्बारे
कराएँ मेल

होली उमंग
गुलाल,अबीर,रंग
भांग के संग

होली के रंग
रहना सावधान
बचाना अंग

मदिरापान
पर्व प्रमोद कहाँ
घटे सम्मान

भाल तिलक
है अबीर गुलाल
होली मिलन

होली खेले रे
मथुरा बरसाने
कान्हा मेरे रे

भीगी गलियाँ
रंग भरी दीवारें
मचे हु-हल्ला

होली त्योहार
सीमा सुरक्षित
डटे हैं वीर      

भास्कर प्रभा
प्रकृति सुनहरी
रंगीन धरा
    
फाल्गुनी रंग
अन्तकरण संग
गुलाबी अंग
    
जली होलिका
नष्ट हुए दुष्कर्म
जीते सद्कर्म
    
गोपियाँ संग
कान्हा पिचकारी रंग
राधिका अंग
    
प्रीत में रंगी
आँगन में फाल्गुन
पिया की संगी
    
मन उमंग
होली के रंग,भंग
भीगे है अंग

फागुन आया
होली संग प्रेम रंग
निखर आया

प्रीत की वृष्टि
होली मनभावन
रंगीन सृष्टि

रंगीन धरा
होली हठखेलियाँ
रंग गहरा     

होली के रंग
दीनहीनता संग
मुस्कान भंग

होली गुलाल
रंग अबीर लाल
महके गुलाब

मन हरते
रंग,अबीर फाग
जीवन ख़्वाब

होली त्योहार
प्रेम प्रीत फुहार
रंगे बौछार

ढोल मजीरे
रंग संग उमंग
मस्ताना फाग

आशा के संग
भरें प्राण उमंग
होली के रंग

जाति-पाति क्यों?
बंधन है बनाती
वंश मिटाती

सुभाष चंद्र
है जीवन कुर्बान
सच्ची संतान

आजाद हिंद
व्यर्थ न बलिदान
खुला आकाश

सुभाष चंद्र
सुखों की दी कुर्बानी
मिली आजादी

शोले जलते
उत्साही मतवाला
वीर सिपाही

नव पल्लव
बसंत मधुमास
पीली है धरा

नाचे मयूर
हरियाली है छाई
वृष्टि भी आई

मुस्काई धरा
पीत पल्लव सजा
मनवा हरा

खिला चमन
कलियाँ हैं चटकी
मन मगन

धरा श्रृंगार
पलाश चहुँ ओर
मन बहार

सृष्टि के संग
भरे नव उमंग
केसरी रंग

नव कोपन
प्रकृति है सम्पन्न
प्रत्येक पल

नव निर्माण
पंछी मधुर गान
गूंजे आकाश 91

नवल रश्मि
है पथ आलोकित
तम हरती

परोपकार
आनंद अनुभूति
मिटा संताप

आँखों का तारा
मां-बाप का सहारा 
श्रवण प्यारा

कपटी मित्र
है आस्तीन का साँप
देता संताप

टका जवाब
नहीं मन को भाता
भेद बढ़ाता

झाँसी की रानी
अंग्रेज भयभीत
सच्ची कहानी

सद् व्यवहार
मन संतुष्टि पाता
मान बढ़ाता

ऐतिहासिक
ईमारतें, संस्कृति
हैं धरोहर

मधुर वाणी
औषधि कहलाती
पीड़ा घटाती