एक अंडज के उद्गम से
नव सृजन उद्भव आया
सृष्टि सर्जक का खेल
नव संसार में रचाया
शनैः शनैः विस्तार पा
आत्मा का कण समाया
क्रमिक विकास क्रम में
देह तन का स्वरूप पाया
बढ़ चली काया
रच चली माया
सप्तवर्ण सप्तद्वार से
जीव संवहन स्वरूप पाया
भावों संवेगों के प्रबल प्रवाह को
अभिव्यक्ति रूप में दर्शाया
बढ़ चला पुनश्च शनैः शनैः
लंबाई चौड़ाई ऊँचाई संग संग
मानसिक संवेगों की बदली काया
नव चेतना संवर्धन का फिर
नित नव पाठ पढ़ती काया
दिग्भ्रमित छद्म आभास का
शिक्षा से दूर हुआ साया
कभी मंथर कभी द्रुतगति से
बढ़ती चली गई काया
कहने लगे लोग अब
हे ईश्वर कैसी तेरी माया
एक निश्चित आयु पर आकर
तन का वृद्धि विकास अवरुद्ध हुआ
सामाजिकता की बढ़ चली माया
जीवन की आपाधापी संग संग
अहसास जज्बातों की मिली छाया
उम्र बढ़ती कि जीवन घटता
पुनरुत्पादन का क्रम चल पड़ता
अनवरत विकास क्रम में
पहियों सा इंसान चल पड़ता
विविध समयाकाल बिताकर
अनुभव निधि का नर संचय करता
दुनियादारी की चक्की में नित पिसता
यकायक जर्जर होती काया
उम्र ने अब असर दिखाया
आत्मा के गमन का
नियत वक्त जब आया
अंडज के विकासक्रम के
लुप्तप्राय होने का वक्त आया
समेट अनुभवों अनुभूतियों से
यादों में बस सिमटकर रह गई काया
इतनी क्षीण बारीक सूक्ष्म रूप से
कैसे छिटककर रह गई
हरओर ईश की माया
© नीता सिंह बैस
लघुकथा:औरत की चीख।
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'यार ये औरतें इतना रोती, चीखती क्यूं हैं ?'
कहीं एक औरत को रोते देखकर एक मर्द ने दूसरे मर्द से पूछा।
प्रत्युत्तर में दूसरे मर्द ने कहा-
'प्रणय के अतरंग क्षणों में जब स्त्री चीखती है,पुरुष का पुरुषत्व गर्व से दोहरा हो जाता है.....
शायद इसलिए औरत चीखती है।
अपनी कुक्षी से मांस का लोथड़ा निकालते वक़्त औरत सोंचती है कि 9 महीने तक अपने खून और वात्सल्य से अभिसिंचन के बाद उसने जिस निस्पंदप्राय लोथड़े को जन्म दिया है उसे एक सक्षम,सशक्त मानव में परिणित करने के लिए उसे और न जाने क्या क्या कब तक देना होगा.....
शायद इसलिए औरत चीखती है।
जब वह औरत उसी मानव की जात एक पुरुष को उसके धमनियों में अपने उधार दिए धमकते लहू की थाप पर इतराते देखती है,औरतों के कोमल बदन और कोमलतर मन पर अपने बाहूबल को आरोपित करते देखती है तो उसे अपनी ज़िंदगी का सारा उपक्रम अबस लगता है....
शायद इसलिए औरत चीखती है।
जब औरत स्त्री-कुक्षी से जन्मे पुरुष को कुत्सित भावों में आशक्त अट्टहास करते अपने वासना-शिक्त पुरुषांग से बलात स्त्री-कुक्षी को हीं ध्वस्त करते देखती है तो उसका ईश्वर पर से विश्वास उठ जाता है...
शायद इसलिए औरत चीखती है।'
दूसरे मर्द के इस जवाब के बाद प्रश्नकर्ता के होठों पर एक शर्म भरी चुप्पी आरूढ़ हो गई।
-पवन कुमार श्रीवास्तव की मौलिक रचना।
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