गज़ल
यूँ तो जिंदगी से मुझे शिकवे भी शिकायत भी
जाने किस मोड़ पे मिल जाए पुराना साथी ।
गम जो जिंदगी का नासूर मुझे लगता है सोचते ही उसे हर जख्म उभरने लगता है।
सपने जो संजोए थे दिलबर के लिए यादों में
आज वही मुझसे हर मोड़ पर ख़फा लगता है ।
यूँ तो जिंदगी से मुझे शिकवे भी शिकायत भी
जाने किस मोड़ पे मिल जाए पुराना साथी ।
कसमें खाईं थी किसी रोज़ मोहब्बत में मेरी
आज हमदर्द वही बेवफा-सा लगता है ।
जिंदगी का फसाना कोई बेबस-सा क्यों लगता है
दूर ही दूर से कोई अनजान अपना-सा लगता है ।
यूँ तो जिंदगी से मुझे शिकवे भी शिकायत भी
जाने किस मोड़ पे मिल जाए पुराना साथी ।
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