Friday, 30 June 2017

**एहसास** विधा- लघु कथा

**एहसास**
विधा- कहानी

मातृ दिवस के अवसर पर सभी माताओं को समर्पित भाव सरिता ।

यह कथा एक सत्य घटना पर आधारित है गोपनीयता बनाए रखने के लिए पात्रों के नाम और जगह बदल दिए गए हैं|
*मीना बनारस के एक मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखती है| परिवार में पति मनीष के अलावा सास-ससुर और मीना की दो वर्ष की एक सुंदर-सी बिटिया है| मीना की माता जी का देहांत उसकी बेटी के जन्म के छह माह पश्चात ही हो गया था| मीना अभी तक अपनी माँ के चले जाने के दुख दर्द को नहीं भुला पाई है|

*इसी बीच मीना गर्भवती हो जाती है मगर घर के झगड़ों के कारण मीना और मनीष अभी दूसरी संतान नहीं चाहते वह पूरा यत्न करते हैं कि बच्चे का गर्भपात स्वयं ही हो जाए| कहते हैं कि विधि के विधान को कोई नहीं ठुकरा सकता उसके आगे किसी की भी नहीं चलती| मीना का गर्भपात नहीं होता| मनीष अभी दूसरे बच्चे का खर्चा वाहन नहीं कर सकता पर मनीष की माँ को घर का वारिस चाहिए| माँ मनीष से कहती हैं कि वह खर्चे की चिंता न करे अपने पोते का सारा खर्चा वह स्वयं वाहन करने के लिए तैयार हैं| मनीष को इसकी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है|

*मीना का गर्भ चार महीने का हो गया है वह अब स्वयं भी नहीं चाहती कि उसका गर्भपात हो| वह बच्चे को जन्म देना चाहती है| लड़का हो या लड़की मीना को इसकी चिंता नहीं है| मीना का यह मानना है कि बच्चा अपना नसीब लेकर आता है इसके लिए न तो मनीष और न ही उसकी माँ को कोई चिंता करनी चाहिए| मनीष की माँ मीना की इस अवस्था में भी उससे झगड़ा करती रहती है| रोज-रोज के झगड़ों से तंग आकर मनीष अलग हो जाता है| बहु बेटे को घर से जाता देखकर मीना की सास उन्हें नहीं रोकती| मीना और मनीष अलग घर लेकर रहने लगते हैं| ऐसी अवस्था में मीना अपने आप को अकेला महसूस करती है उसको तरह-तरह की चीजें खाने का मन करता है मनीष मीना का हर तरह से ख्याल रखता है मगर नौकरी के कारण पूरा दिन घर पर नहीं रह सकता|

*एक दिन मीना घर के कार्यों से निवृत होकर अपनी माँ को याद करते-करते सो जाती है| सपने में ही उसे काजू खाने का मन होता है उसे सपने में ही माँ की बहुत याद आती है सपने में ही माँ मीना के दिल की बाद समझ जाती है और उसे काजू का एक पूरा पैकेट खिला कर चली जाती है| जब मीना की नींद खुलती है तो माँ को तो अपने समक्ष नहीं पाती मगर उसकी काजू खाने की तृष्णा समाप्त हो जाती है| उसकी माँ सपने में ही उसे इतने सारे काजू खिला कर चली जाती है कि नौ महीनों तक मीना को काजू खाने का मन ही नहीं होता| उस दिन के बाद जब-जब मीना को कुछ खाने का मन होता है तब-तब मीना की माँ सपने में मीना को वह सारी चीजें खिलाकर जाती है जो वह खाना चाहती है| माँ की ममता और उसका मातृत्व ऐसा ही होता है जो अपने बच्चों के दिल की बात बिना कहे ही समझ जाता है| माँ-बाप बच्चों को तकलीफ में नहीं देख सकते चाहे वह हों या न हों मगर अपने होने का एहसास दिलाकर बच्चों को मुश्किलों से लड़ने का साहस और ताकत देते हैं|

*मीना ने नौ महीने बाद एक बेटे को जन्म दिया| बेटे का नयन, नक्श, रंग सभी मीना की माँ पर थे और तो और नामकरण के समय उसका नाम भी मीना की माँ के नाम के प्रथम अक्षर से निकला| आज मीना का बेटा सोलह साल का हो गया है| उसके बेटे में वह सारे गुण हैं जो उसकी माँ में थे| वह दयालु है| सब की सहायता करता है| नम्र व्यवहार का है| सबके प्रति दया भाव, ममता, आदर- सत्कार यह सभी गुण उसके बेटे में आए हैं बिल्कुल मीना की माँ की तरह और मीना का भी ख्याल वह बिल्कुल उसकी माँ की तरह ही रखता है| एक माँ के खोने का दर्द क्या होता है यह सिर्फ वही जान सकता है जिसने अपनी माँ को खोया हो| उस दर्द को सहा हो| मीना आज अपनी माँ के न होने के दुख से धीरे-धीरे पार उतर रही है क्योंकि मीना को आज ऐसा एहसास होता है कि उसके बेटे के रूप में उसकी माँ उसके पास हमेशा विद्यमान है|

***माँ एेसी ही होती है जो न होते हुए भी अपने बच्चों की दिल की धड़कन तो क्या उस धड़कन से निकलने वाली आवाज़ भी सुन लेती है ।*****

** सात दिन की माँ **

** सात दिन की माँ **

विधा- लघु कथा

यह कथा सत्य घटना पर आधारित है| गोपनीयता बनाए रखने के लिए पात्रों के नाम और स्थान बदल दिए गए हैं|
*कहते हैं, ईश्वर की मर्जी के आगे किसी की नहीं चलती और ईश्वर जो करता है भले के लिए ही करता है| यह कहानी उस माँ की है जिसे मातृत्व का सुख सिर्फ सात दिन के लिए ही प्राप्त हुआ| नीरा राजस्थान के एक छोटे से कस्बे बूंदी में रहती है| नीरा के परिवार में उसकी बुआ और बहन मातृत्व सुख से वंचित हैं जिन्हें अपनी कोई संतान नहीं है| नीरा की शादी को आज तेरह वर्ष बीत चुके हैं उसके पास भी अपनी कोई संतान नहीं है उसे कोई माँ कहने वाला नहीं है| नीरा और उसके पति साहिल बच्चे को गोद लेने की सोचते हैं| वह अनाथ आश्रम जाते हैं मगर वहाँ से निराश वापस आते हैं| निराशा के चलते-चलते दोनों बहुत टूट जाते हैं| लोगों के ताने, घरवालों का विपरीत व्यवहार उनको आघात पहुँचाता है|
*एक दिन उन्हें किसी रिश्तेदार के संपर्क से पता चलता है कि उनके किसी सगे-संबंधी ने चौथी बेटी को जन्म दिया है और वह उसे गोद देना चाहते हैं| सूचना प्राप्त होते ही दोनों पति-पत्नी उनके घर पहुँचते हैं| बच्ची को देखते ही दोनों पति-पत्नी के मन में ममता और प्यार उमड़ पड़ता है| उन्हें लगता है कि शायद भगवान को यही मंजूर है कि वह जन्मदाता न होकर पालनकर्ता कहलाएँ| ईश्वर की सौगात उन्हें इस रूप में प्राप्त होगी उन्हें अंदाजा भी नहीं था|दोनों बहुत खुश हैं बच्ची के मुख के तेज को देखकर दोनों उसे गोद में लेने के लिए उत्सुक उसके माता-पिता से बातचीत करने के पश्चात नीरा और साहिल बच्ची को अपने घर ले आते हैं|

*दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं है नीरा और साहिल बेटी के लिए खूब खरीदारी करते हैं खिलौने, कपड़े, दुनिया भर की वस्तुएँ बच्ची के लिए एक ही दिन में खरीद ली जाती हैं| दोनों बहुत खुश हैं| बच्ची के घर आने से घर के सभी सदस्य भी खुश हैं सास-ससुर देवर देवरानी सभी के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है जो पलभर भी उनके साथ बातचीत नहीं करते थे,जली-कटी सुनाते थे आज वह नीरा के पास बैठे हैं उस की बच्ची को प्यार दुलार दे रहे हैं| नीरा और साहिल बहुत खुश है मानो उनको तेरह साल बाद कोई चलता खिलौना मिल गया है जिसके साथ वह खेल सकते हैं बात कर सकते हैं|

*ऐसा खिलौना जो उनकी आवाज सुनकर प्रतिक्रिया दर्शाता है| ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे दोनों को खुशी का खजाना मिल गया है|मगर शायद ईश्वर को उनकी यह खुशी ज्यादा समय तक बर्दाश्त नहीं होती| बच्ची को घर लाने के एक सप्ताह पश्चात अचानक बच्ची के जन्म देने वाले माता-पिता उनके दरवाजे पर खड़े होते हैं|रात का समय है, वह अपनी बच्ची को वापस ले जाने के लिए आए हैं| दोनों नीरा और साहिल से कहते हैं कि वह अपनी बच्ची को गोद नहीं देना चाहते| वह उसे वापस ले जाने आए हैं| नीरा और साहिल के पैरों तले की जमीन निकल जाती है|उनकी ममता का कुंद्र हनन ऐसे होगा उन्होंने अनुमान भी नहीं लगाया था| दोनों की सारी अभिलाषाएँ नष्ट हो जाती हैं| बच्ची के मुख से मम्मी और पापा सुनने की इच्छा शायद अब कभी पूरी नहीं हो पाएगी दोनों शुब्द्घ खड़े थे और बच्ची के असली माता-पिता अपनी बेटी को उठा कर ले जा रहे थे| नीरा और साहिल कुछ नहीं कर पाए| ईश्वर ने उन्हें वासुदेव और जानकी बनने का मौका तो दिया ही नहीं था साथ ही नंद और यशोदा बनने के अवसर को भी छीन लिया| सब एक सपना प्रतीत हो रहा था और सात दिन की माँ की ममता चीख-चीखकर अपनी ममता का गला घुटते देख रही थी| शायद तभी कहते हैं ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता|जितना हम वहाँ से लिखवाकर आए हैं उतना ही हमें यहाँ प्राप्त होता है|

*मैं किसी अंधविश्वास की बात नहीं कर रही हूं बल्कि उस लीलाधारी की लीला की बात कर रही हूँ जिसकी डोर स्वम् उसी के हाथ में है हम तो मात्र कठपुतलियाँ है जो उसकी डोर के हिलने से नाचती हैं| आज नीरा और साहिल उस बच्ची को लक्ष्मी स्वरूपा मानते हैं| उसके कदम इतने शुभ हुए कि आज नीरा और साहिल स्वयं के मकान में है नीरा बच्चों को पढ़ाने का कार्य करती है| साहिल भी अपनी नौकरी से संतुष्ट है| रोज़ बच्ची को याद करते हैं और भगवान की मर्जी समझ कर संतुष्ट हो जाते हैं| मीरा की चचेरी बहन को भी मातृत्व सुख नहीं प्राप्त हुआ था उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी| उसने अनाथ आश्रम से एक लड़का गोद लिया था और आज वह लड़का बारह साल का है| नीरा की बुआ आज सत्तर साल की हैं जो आज भी संतान सुख से वंचित हैं| नीरा सात दिन की माँ बन कर संतुष्ट है, अपने आप को सौभाग्यशाली समझती है और भगवान की मर्जी के आगे नतमस्तक है| आज वह बच्ची एक साल की हो गई है| नीरा और साहिल के लिए सात दिन जीवन के सुनहरे दिन रहेंगे जो उनकी यादों में मृत्युपर्यंत उनके साथ रहेंगे|

Friday, 9 June 2017

**** जल ही जीवन ****

हाइकु कविता
जल सबका जीवनदाता  |
बिन जल मानुष |
जीवन न पाता |
***** जल ही जीवन ****

*जल ही जल
रत्नगर्भा है स्वर्ग
मानुष माने |
*ईश से जग
मंगलप्रद जल
प्राण पखेरु |
*उड़ते जब
जल बिन जीवन
नीरस सब |
*नद, जाह्नवी 
जलाशय, जलधि
सूखी गागर |
*बिन है जल
मानुष का जीवन
अस्थि पिंजर |
*कृषक कहे
जीवनदाता जल
बिन सलिल |
*खेती नीरस
खेत-खलियान है
जीवन पाते |
*मन की तृषा
क्षीर करे संतुष्ट
शांत पिपासा |
*मन प्रसन्न
कल्याणकारी ईश
धरा समृद्ध |

*अनुस्वार ( ं ) और अनुनासिक ( ँ ) पर करें विचार** सुगम सरल हो व्याकरण ज्ञान*

अनुस्वार ( ं ) व्यंजन है कहलाता | अनुनासिक ( ँ ) स्वर का नासिक्य विकार कहा जाता |
चलो करें इनका अभ्यास |
काव्यात्मक व्याकरण बोध के ज़रिए व्याकरण हुआ कितना आसान |

******* अनुस्वार *******

*अनुस्वार का प्रयोग
पंचम वर्ण के लिए किया है जाता |
ड. ञ ण न म इसमें है आता
विभिन्न नियमों से बंधा यह होता
बिना उनके सार्थक नहीं है होता
नियम उल्लंघन होता है जहाँ
अशुद्ध शब्द दर्शाता वहाँ ||

नियम

१. अनुस्वार के बाद जब आता वर्ण अनुस्वार उसी वर्ग का पंचम वर्ण

उदाहरण इसका गंगा (गड्.गा) चंचल (चञचल) मुंडन (मुण्डन) शब्द
इनसे पता लगता है यह नियम

२. यदि पंचम अक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए |
तो पंचम अक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं हो पाए |

जैसे- वाड्.मय, अन्य, उन्मुख आदि सभी शब्द वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख के रुप में लिखे न जाएँ |

३. ध्यान रखना हमेशा यह बात
संयुक्त वर्ण बनता दो व्यंजनों के साथ |

जैसे- त् + र – त्र कहलाता |
ज् + ञ – ज्ञ बन जाता |
इसीलिए अनुस्वार के बाद संयुक्त वर्ण आने पर
जिन व्यंजनों से बना है संयुक्त वर्ण
( त् + र -त्र )
पहला अक्षर होता जो वर्ण
अनुसार उसी वर्ग का पंचम अक्षर |

****इस नियम को दो उदाहरणों से समझाऊँ तुम्हारी मुश्किल दूर भगाऊँ |

*पहला उदाहरण
मंत्र शब्द में है , म + अनुस्वार + त्र ( त् + र )
त्र होता है संयुक्त अक्षर |
बना है जो त् + र से मिलकर |
अनुस्वार के बाद आया है त् |
त् वर्ग का पंचम अक्षर है न् |
जिसके उच्चारण के लिए कार्य कर रहा है अनुस्वार ||

*दूसरा उदाहरण
संक्रमण शब्द में है,
स + अनुस्वार + क्र + म + ण |
क्र संयुक्त अक्षर जो बना है क् + र से मिलकर |
अनुस्वार के बाद आया है क् |
क् वर्ग का पंचम अक्षर है ड्. |
जिसके उच्चारण के लिए कार्य कर रहा है अनुस्वार ||

४. छात्रों को अनुस्वार के प्रयोग में हर बार |
व्यंजन संधि का 'म्' से संबंधित नियम रखना होगा याद |
यदि शब्द में 'म्' के बाद,
'क्' से 'म्' तक व्यंजन आए जब साथ |
ऐसे में 'म्' उस व्यंजन के वर्ग के पंचम वर्ण में परिवर्तित हो जाता है हर बार |

*इस नियम को भी दो धारणों से मैं समझाऊँ |
छात्रों की समस्त समस्या पल भर में सुलझाऊँ |

*पहला उदाहरण
संग्राम शब्द में है सम् + ग्राम |
ग्र संयुक्त अक्षर है कहलाता |
ग्र + र से मिलकर बनता 'ग्र'|
म् के बाद आया है ग् |
ग् वर्ग का पंचम वर्ण हुआ ड्.|अनुस्वार ड्. के उच्चारण के लिए कार्य कर रहा है म् |
और व्यंजन संधि के नियम अनुसार म् ही ड्. में परिवर्तित हुआ है यहाँ |

*दूसरा उदाहरण
संजय शब्द में है सम् + जय |
यहाँ म् के बाद आया है ज् |
ज् वर्ग का पंचम वर्ण है ञ |
ञ के उच्चारण के लिए कार्य कर रहा है अनुसार |
व्यंजन संधि के नियम अनुसार म् ही ञ में परिवर्तित हुआ यहाँ ||

५. म् के बाद य र ल व
श ष स ह होने पर |
अनुस्वार में परिवर्तित होता है म् |
इस नियम को भी सरल बनाती |उदाहरण देकर हूँ समझाती |

*पहला उदाहरण
संरक्षक शब्द में है सम् + रक्षक | यहाँ अनुस्वार के बाद आया है'र'
व्यंजन संधि के नियमानुसार
अनुस्वार 'म्' के लिए आया यहाँ

*दूसरा उदाहरण
संशय शब्द में सम् + शय
यहाँ अनुस्वार के बाद आया श
व्यंजन संधि के नियमानुसार
अनुस्वार 'म्' के लिए आया यहाँ ||

***अनुनासिक ( ँ ) चंद्रबिंदु***

* अनुनासिक ध्वनि
उच्चारण गुण कहलाता |
नासिका और मुँह से
वायु प्रवाहित करता जाता |

चंद्रबिंदु के बिना प्रायः अर्थ में भ्रम की स्थिति बनाता |
जैसे हंस हँस ,अंगना अँगना आदि |

शिरोरेखा के ऊपर आने वाली मात्राओं के साथ बिंदु का ही प्रयोग किया जाता चंद्रबिंदु इसके साथ नहीं है आता |
उदाहरण है इसका में मैं नहीं इत्यादि

**इसके साथ ही अनुस्वार, अनुनासिक पाठ समाप्त हो जाता |
बच्चों का ज्ञान यहाँ समृद्ध हो जाता |बच्चों का व्याकरण ज्ञान हुआ कितना आसान |
सरल सुगम व्याकरण बोध के साथ ||

 

Tuesday, 6 June 2017

***हमारी निराली मेट्रो ट्रेन*** बाल कविता

***हमारी निराली मेट्रो ट्रेन***
विधा- कविता

**ट्रेन है मेट्रो बड़ी निराली
भू-तल से ऊपर चलने वाली
समय सभी का यह बचाती
मिनटों में गंतव्य पहुँचाती ||

**ए.सी भी इसमें चलता है
महिला डिब्बा अलग होता है
ध्वनि विस्तारक यंत्र के द्वारा
गंतव्य का पता चलता है ||

**भीड़-भाड़ ट्रैफिक से जब
बचना हो तुम्हें अगर
तुम भी मेट्रो ट्रेन में जाना
समय और पैसा दोनों बचाना ||

**समय सभी के लिए अनमोल
तभी तो इसका नहीं कोई मोल
मेट्रो ट्रेन का सफर अपनाओ
समय और पैसा दोनों बचाओ ||

**वर्तनी विचार और शब्द विचार** करो सभी अब ऐसे याद** सुगम सरल हिंदी व्याकरण

वर्तनी विचार और शब्द विचार |

 सुगम सरल करो व्याकरण ज्ञान |

****** वर्तनी *****

* लेखन में प्रयुक्त लिपि चिन्हों के व्यवस्थित रूप को कहते हैं वर्तनी |
वर्तन करना जिसका अर्थ |
बोली जैसे जाती है |
लिखी भी वैसे जाती है |
जिस ध्वनि का जिस क्रम में होता उच्चारण
उसी क्रम में होता उसका लेखन ||
**उदाहरण- फूलदान न की नदाफलू

***** परसर्ग ******

* संज्ञा शब्दों के परसर्ग चिह्न अलग लिखे जाते |
सर्वनाम शब्दों के परसर्ग चिह्न मिलाकर आते |
सर्वनाम और परसर्ग के बीच-ही,तक, भी,तो,मात्र,भर का निजात हो जाए |तब विभक्ति को सर्वनाम से अलग कर जाए |
संज्ञा – जैसे- सीता ने , राम को सर्वनाम – जैसे- उसको , उसका सर्वनाम और परसर्ग – जैसे- आप ही के लिए , मुझ तक पर

******* क्रिया पद *******

*संयुक्त क्रिया की सभी क्रियाओं को लिखो अलग-अलग |
तभी कर पाओगे वाक्य को सरल |
जैसे:- पढ़ा जाता है, दौड़ता गया बढ़ते चले जा रहे थे |

******* योजक चिन्ह *****

योजक चिन्ह का प्रयोग भाषा में स्पष्टता के लिए किया है जाता |
इसमें प्रयोग के लिए योजक चिन्ह प्रयोग में लाया है जाता |
*द्वंद समास के पदों में योजक चिन्ह अवश्य है लगाया जाता |
जैसे:- राम-लक्ष्मण, सुख-दुख
*तत्पुरुष समास में योजक का प्रयोग भ्रम अवस्था में ही प्रयोग किया जाता जैसे:- भू-तत्त्व
*सा, सी से पहले योजना का प्रयोग अवश्य ही होगा |
जैसे:- हनुमान-सा भक्त
चाकू-सा तीख
व्याकरण हमें यह बोध कराता |

******* अव्यय *******

तक,साथ, निकट, पास आदि अव्यय अलग लिखे जाते |
उदाहरण:- मेरे साथ, यहाँ तक, समुंद्र के निकट यही दर्शाते |
अव्ययों के साथ विभक्ति चिह्न भी आते परंतु नियमानुसार अव्यय हमेशा अलग ही लिखे जाते |
जैसे:- तुम्हारे ही लिए,उस तक का *सम्मानसूचक अव्यय श्री तथा जी भी अलग लिखे जाते |
जैसे:- श्री जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी जी |
प्रति, यथा, मात्र, अव्यय मिलकर लिखे जाते |
जैसे:- यथाशक्ति, प्रतिदिन, प्राणीमात्र यह शब्द यही है बतलाते |

******* अनुस्वार ******

*अनुस्वार स्पर्श व्यंजनों के प्रत्येक वर्ग की अंतिम नासिक्य व्यंजन ध्वनि है |उच्चारण के स्तर पर अनेक रुप से यह बनी है |
लेखन के लिए प्रयुक्त केवल एक ही स्वर ( ं ) चिह्न है |
*यदि पंचम वर्ण जब दूसरे पंचम वर्ण के साथ संयुक्त हो जाए |
य व ह से पहले आए
तब वह अनुस्वार में नहीं बदला जाए उदाहरण:- अन्य, सम्मेलन, तुम्हारा जन्म से यह पता चल जाए |

****** अनुनासिक ******

*यह स्वरों का गुण कहलाता |
चाँद बिंदु चिह्न ( ँ ) लिए आता |स्वरों की मात्रा शिरोरेखा से ऊपर जब होती |
तो केवल बिंदु ( ं )ही रह जाता |शब्दों में इसका प्रयोग अवश्य किया जाता |
अन्यथा शब्दों का संपूर्ण अर्थ ही बदल जाता |

****** शब्द विचार *******

*वर्णों के मिलने से जो ध्वनि समूह स्वतंत्र और निश्चित अर्थ बतलाता है |होता वह भाषा का आधार |
जी हाँ ,वही शब्द कहलाता है |

*शब्द के होते भेद चार
अर्थ, व्युत्पत्ति, उत्पत्ति, प्रयोग के आधार पर बनता शब्द भंडार
अर्थ के आधार पर शब्द के दो भेद हैं होते |
सार्थक,निरर्थक शब्द जो कहलाते |
सार्थक के भी चार प्रकार एकार्थक, अनेकार्थक, समानार्थक, विपरीतार्थक जिनका आधार |

*निरर्थक शब्द बिना अर्थ के होते |
नहीं होता इनका कहीं भी इस्तेमाल

*बनावट/व्युत्पत्ति के आधार पर भी शब्द के भेद दो होते |
मूल या रूढ़ शब्द और व्युत्पन्न शब्द यही वह होते |
मूल शब्द के टुकड़े नहीं होते |
व्युत्पन्न शब्द दो तरह के होते |
योगिक, योगरूढ़ यह कहलाते |
शब्दों का भंडार बढ़ाते |
जब मूल शब्द में अन्य शब्द जोड़ा जाता |
योगिक शब्द वह बनाता |
जो योगिक होते हुए भी एक अर्थ में रूढ़ हो जाते |
योगिक रूढ़ शब्द वह कहलाते |
लंबोदर, नीलकंठ, दशानन इत्यादि शब्द योगरूढ़ शब्द है कहलाते |

*चार भेद उत्पत्ति का आधार बताते |तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी इसमें है आते |

संस्कृत के वह शब्द जो मूल रूप में हिंदी प्रयोग में लाए जाते तत्सम कहलाते | जैसे- कृषक, ग्रह

हिंदी में जो बदले रूप में पाए जाते तद्भव शब्द वह कहलाते |
जैसे- हाथ(हस्त) आग(अग्नि)

परिस्थिति एवं आवश्यकता के कारण लोक भाषा में आए शब्द देशज शब्द कहलाये |
रोटी, पेट, भौं-भौं देशज शब्द में आए

विदेशी भाषाओं से हिंदी में जो आए विदेशी शब्द है कहलाए |
स्कूल, दुकान, हाज़िर, कैंची, चाबी अंग्रेजी, फारसी, अरबी, तुर्की, पुर्तगाली से आए |

आठ भेद प्रयोग की दृष्टि से कहलाए संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया-विशेषण,संबंधबोधक,
समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक शब्द कहलाए ||

*खत्म हुआ है आज का पाठ
करलो अब बच्चों स्वम अभ्यास ||

Monday, 5 June 2017

एक-एक पौधा सभी लगाओ | पर्यावरण दिवस सार्थक बनाओ ||

*पर्यावरण दिवस की सभी को शुभकामनाएँ ! 

वृक्षारोपण करके अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाओ | सभी मिलकर 'पर्यावरण दिवस' सार्थक बनाओ ||

*आज हमने बगिया में जाकर वृक्षारोपण करवाया |
सबने मिलकर आज पर्यावरण दिवस मनाया | 

पर्यावरण दिवस मना कर मन हुआ प्रसन्न |
छोटे-बड़े सभी ने दिया सहयोग अपना शत-प्रतिशत |

*सभी ने गीली मिट्टी में एक छोटा पौधा लगाया| लिखकर उस पर नाम है अपना
भविष्य सुरक्षित सबका बनाया |
                                                                      क्यों नहीं लोग रोज़ पर्यावरण दिवस मनाते |         एक-एक पौधा क्यों नहीं वह बगिया में है लगाते ।

*अगर लगाएगा हर जन रोज़ एक पौधा |
भावी जीवन में मिलेगा उसके ही अंश को
स्वच्छ हवा का झोंका |
                                                                    स्वच्छ हवा का झोंका मिलेगा जब |                     सांस लेने में नहीं होगी परेशानी तब |

* वायु शुद्ध हो जाएगी |
बीमारियाँ होंगी कम |
                                                              ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ेगी |                           कार्बन डाइऑक्साइड होगी कम |

इसलिए पेट्रोल वाहन ए.सी का करो प्रयोग कम |     वायु शुद्धिकरण में दो अपना पूर्ण सहयोगीकरण |

कूड़े कचरे के विघटन का भी रखो ख्याल ।           फैंको न इसे इधर-उधर स्वच्छ रखो अपना आस-पास |

पानी की स्वच्छता का भी रखना है तुम्हें ख्याल ।   तभी संपूर्ण होगा पर्यावरण दिवस के मूल तत्व का विकास |

* पानी, वायु, साफ-सफाई सभी इसी में समाई | नदियाँ, वायु, पृथ्वी सभी ईश्वर ने है बनाई |
                                                                    दिया उपहार ईश्वर के द्वारा है अनमोल सभी का | संरक्षित इन्हें करो भविष्य इन्हीं से है सभी का |     

करके पर्यावरण का हनन तुम कुछ हासिल नहीं कर पाओगे |
बिना वृक्ष और पानी के तुम कैसे जीवन पाओगे |

*पेड़ लगाओ पर्यावरण स्वच्छ बनाओ |
*बूँद-बूँद पानी की है अनमोल |                       *नदियों को दूषित न होने दो |

*वायु प्रदूषण पर रोक लगाओ |
सार्थक तरीके अपनाओ |
पर्यावरण स्वच्छ बनाओ |

Sunday, 4 June 2017

**चलो करें हम ‘वर्ण विचार’** सुगम सरल व्याकरण

काव्यात्मक स्वरूप में हिंदी व्याकरण बोध को सरल सुगम बनाने का प्रयास ||

**पाठ - २
****** वर्ण विचार ******

*भाषा की सबसे छोटी इकाई कहलाती ध्वनि के नाम से संबोधित की जाती है जिसके खंड किए न जाते
भाषा में वर्ण वही कहलाते ||

*******वर्णमाला********

* व्यवस्थित समूह वर्णों का वर्णमाला है कहलाता
स्वरों और व्यंजनों के मोतियों से सजाया यह जाता
मानक स्वर ग्यारह होते हैं
तैंतीस व्यंजन संग लिए होते हैं
पंचम वर्ण भी साथ में आते
वर्गों को संपूर्ण कराते
अंत:स्थ,उष्म,संयुक्त व्यंजन
जब जुड़ जाते
वर्णमाला को पूर्ण बनाते ||

* आगत वर्ण अॉ ज़् फ़् कहलाते
अंग्रेजी, अरबी, फारसी प्रभाव दर्शाते
ड़, ढ़ विकसित वर्ण माने हैं जाते शब्दों के बीच और अंत में प्रयोग में लाए जाते
शुरू नहीं होता इनसे शब्द
संस्कृत में अपनाएं नहीं जाते ||

* ड्.और ञ् स्वतंत्र प्रयोग में लाए नहीं जाते
अं अनुस्वार और अः विसर्ग
ही कहे जाते
स्वरों के बाद तत्सम शब्दों में होता इनका प्रयोग
हिंदी व्याकरण में अपना स्थान यह पाते
एक से ज्यादा ध्वनियों से मिलकर
क्ष त्र ज्ञ श्र संयुक्त व्यंजन कहलाते ||

******* लिपि *******

* मौखिक ध्वनियों के लिखने के चिह्न लिपि है कहलाते
देवनागरी लिपि में हिंदी का ज्ञान कराते इक् प्रत्यय से हुआ सृजन
जिसका है अर्थ 'लिखित अक्षर' लिखने का ढंग लिपि कहलाया
मौखिक का लिखित भाषा रूप पाया ध्वनि चिह्न सब साथ मिले जब देवनागरी लिपि में हिंदी भाषा का स्वरूप उभर आया

******** बोली *******

*'बोली' सीमित क्षेत्र में बोली जाती लिखित रूप और साहित्य में जो
पाई नहीं जाती बोली वही है कहलाती वृहद क्षेत्र में उपभाषा प्रयोग में आती साहित्य रचना भी इसमें की जाती
अनेक बोलियों को लेकर साथ
उपभाषा समकक्ष है आती

******* व्याकरण *******

* शुद्ध लिखने, बोलने और पढ़ने का बोध कराता
नियमबद्ध भाषाशास्त्र व्याकरण कहलाता तीन भाग में बांटा जाता
वर्ण विचार, वाक्य विचार
और शब्द विचार इसमें समाता

'वर्ण विचार' अब हुआ खत्म
देखो कितना लगे सरल ||||

Saturday, 3 June 2017

**मेरी रंग-रंगीली गुड़िया** बाल गीत

**मेरी रंग-रंगीली गुड़िया**
विधा- गीत

* गुड़िया मेरी रंग-रंगीली
जैसे मेरी संग सहेली

लंबी मोटी इसकी चोटी
नीले रिब्बन से है गूंथी

पीली पीली फ्रॉक है इसकी
जिसमें नीचे झालर लटकी

बालों का रंग इसका भूरा
जगमग जैसे सूरज चमका

आँखों का रंग नीला-नीला
सागर नदिया पानी जैसा

मेरी गुड़िया रंग रंगीली
जैसे मेरी संग सहेली ||