Thursday, 18 May 2017

*सुहानी बसंत ऋतु आई रे*

*अनंत, असीम, आलौकिक आनंद लिए अनोखी छटा छाई है |
आई-रे-आई बसंती बसंत ऋतु आई है|
प्रसून देख तितली मुस्काती हँस-हँस गाती इठलाती |
पुरवा सुहानी विहग पंख डोलाई है |

*महक बिखरी है चहके पंछी कंठगान रसमय बनी है ऋतु |
भंवरे मतवाले डोले इत-उत तितली भी इतराई है |
सोलह सिंगार से सजी है क्यारी हरियाली भरमाई है |
बसंत ऋतु है रस पीने को अब भँवरों की बारी आई है |

*लगता है प्रकृति के हर चमन में फिर से चाँदी उग आई है |
अलौकिक आनंद अनोखी छटा बिखेरती झूमती गाती बसंत पंचमी आई है |

*कलियाँ हँसती-ठिठलाती, मुस्काती हँस-हँस गाती |
पुरवा सुहानी विहग पंख डोलाई है |अनिल बहे ऐसे जैसे मलय सुगंध फैलाई है|
आई रे आई अनोखी बसंती वसंत ऋतु आई है |

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