🌾🔥 नवभारत का शंखनाद 🔥🌾
(वीर रस प्रधान समसामयिक कविता)
जागो नवयुवक! ये भारत पुकारे,
भविष्य तुम्हारा तुम्हीं से सँवारे।
वक़्त का पहरा सच्चाई माँगे,
अब कर्मों से इतिहास तुम्हीं लिख डाले!
अब भी जलते हैं प्रश्न अंधेरों में,
क्यों झुके हैं दीपक शहरों में?
गाँव अभी भी प्यासा, भूखा,
कहाँ खो गया वो ‘सपनों का सुखा’?
पर सुनो, जो झुक जाए समय के आगे, वो वीर नहीं कहलाता,
जो टूटे विपत्ति में फिर भी मुस्काए, वही भारत कहलाता!
अब शिक्षा का दीप जलाना होगा,
हर अंधियारे में उजियारा फैलाना होगा।
ज्ञान ही रण है, कलम ही तलवार,
सच्चे सपूतों का यही संस्कार!
किताबें बनेंगी ढाल हमारी,
तकनीकी बनेगी जयकार हमारी!
संकल्पों की मशाल उठाओ,
हर मन में नव युग की आभा जगाओ!
प्रकृति कराह रही, धरती जल रही,
मानव अपनी ही छाया से डर रही।
ओ वीरों! अब रण पर्यावरण का है,
बचाना धरा, यही धर्म हमारा है!
जो पेड़ लगाता है, वही अमरत्व पाता है,
जो पृथ्वी सजाता है, वही सच्चा वीर कहलाता है!
नारी का सम्मान अब संकल्प बने,
हर मन में आदर का अंकुर फले।
वो माँ है, शक्ति है, सृजन की धारा,
उसके बिना अधूरा है सारा।
जो स्त्री का गौरव पहचाने,
वही युग का सच्चा वीर ठाने।
अब भ्रष्ट विचारों की बेड़ी तोड़ो,
नव समाज की नींव गढ़ो।
स्वच्छ सोच, स्वच्छ नगर बनाओ,
हर दिल में भारत बसाओ।
वीर वही जो खुद को जीते,
भीतरी अंधकार को मिटा कर रीते।
युवा शक्ति अब मौन न रहे,
सत्य की जय का घोष करे।
कर्म ही पूजा, सेवा ही धर्म,
भारत नवयुग का ले नया स्वरम।
नव निर्माण की ज्योति जलाओ,
भारत को फिर स्वर्ण बनाओ।
हम बदलेंगे, हम गढ़ेंगे,
भारत फिर से विश्व-शिखर चढ़ेगा।
राष्ट्र प्रथम, यही हमारा मंत्र,
हर हृदय बने अब देश का केंद्र।
वंदे मातरम् का जयघोष गूंजे,
हर सीमा पर साहस फूले।
जब भारत बोले – “हम हैं तैयार!”,
तब विश्व झुके, कहे – “जय वीर भारत!”
लेखाधिकारी सुरक्षित
डॉ नीरू मोहन
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