Friday, 14 May 2021

विद्यार्थी और प्रधानाचार्य

भरा पूरा परिवार 

किसान शिवचरण दास वर्मा घर का मुखिया है जो एक बहुत ही साधारण और सीधा इंसान है ।
शिवचरण दास वर्मा को पुश्तैनी खेतिहर जमीन के साथ उसे अपने पूर्वजों से संस्कारों की दौलत भी मिली है । 
जीवनसंगिनी रामदुलारी सरल स्वभाव की महिला है मयके में परिवार के नाम पर एक छोटा भाई है जो साथ ही रहता है। खेतों की रखवाली का काम वहीं करता है। रामदुलारी का भाई थोड़ा लालची है । 
शिवचरण के 4 पुत्र और एक पुत्री है ।
बड़ा बेटा रासबिहारी शौकीन मिजाज़ है।
दूसरा बेटा राधेश्याम पूजापाठ में ज्यादा है।
मंझला बेटा भोलानाथ बुरी संगति का शिकार है जो अधिकतर अपने मित्रो के साथ रहता है पढ़ाई - लिखाई से कोसों दूर ।
श्यामली से बड़ा और भोलानाथ से छोटा रामानुज परिवार में सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा है जिसने स्कूली शिक्षा गांव से और आगे की शिक्षा शहर से प्राप्त की है जिसका सपना शहर में ही बसने का है ।
श्यामली सबसे छोटी है । चार भाइयों की लाडली बहन है । चुलबुली और भोली है जो गांव के जमींदार भीम सिंह के बेटे प्रताप से प्यार करती है।
रासबिहारी और राधेश्याम विवाहित हैं।
दोनों बड़े बेटे और शिवचरण खेती की जिम्मेदारी निभाते हैं ।
भोलानाथ खेती में कोई सहयोग नहीं देता ।
रामानुज अभी आगे और पढ़ना चाहता है और शहर में अच्छी नौकरी की तलाश में है। खेतीबाड़ी में उसका कोई लगाव नहीं है अभी उसका शादी का भी कोई इरादा नहीं है।

जब शिवचरण दास वर्मा के मंझले बेटे भोलानाथ की मृत्यु हो जाती है तब पिता का संदेश मिलते ही रामानुज जो शहर में पढ़ाई भी करता है और नौकर भी वापिस आ रहा है । शहर में ही उसने अपनी पसंद की लड़की से शादी की है । रामानुज का एक बेटा है जो 6 माह का है।

 रास्ते में उसे अपनी स्कूली दिनों की याद आती है जो उसने अपने भाई भोलानाथ के साथ बिताए थे।

गांव की पगडंडियों से होते हुए दोनों भाई स्कूल की ओर जाते हुए मन ही मन सोच रहे हैं कि आज सही समय पर स्कूल पहुंचना है नहीं तो मास्टर जी श्रीधर पिताजी को सब कुछ बता देंगे आज संयोग से दोनों भाई समय पर स्कूल पहुंच गए पहले घंटी बजते ही श्रीधर चरण जो विद्यालय में पांचवी कक्षा से दसवीं कक्षा तक हिंदी अंग्रेजी और इतिहास पढ़ाते हैं प्रवेश करते हैं भोलानाथ और रामानुज कक्षा 9 में है।

अध्यापक और विद्यार्थी
1. पटकथा संवाद
श्रीधर चरण अध्यापक - मेरे दो अनमोल रतन राम लखन की जोड़ी आज तो समय पर कक्षा में बैठी है क्या बात है?

भोलानाथ - जी मास्टर जी हम तो रोज ही समय पर आ जाए । ये रामानुज है न तो जल्दी सोता है और ना ही जल्दी उठता है तभी तो हमें देर हो जाती है नहीं तो हम तो समय पर स्कूल पहुंच जाए । रोज मुझे इसी की वजह से डांट खानी पड़ती है।

श्रीधर चरण अध्यापकहां - मुझे पता है मेरे होनहार भोला पिछले 2 साल से तुम्हारे बहाने सुनता आ रहा हूं । अब कितने और साल एक ही कक्षा में रहने का इरादा है ।सीखो… अपने छोटे भाई रामानुज से पढ़ाई और संस्कार दोनों में ही अव्वल है।

भोलानाथ - मास्टर जी ऐसा नहीं है मैं भी किसी से कम नहीं अपने छोटे भाई का साथ देने के लिए पिछले 2 साल से जानबूझकर फेल हो रहा था ।
देखो… देखो अब ना कहिएगा कि पिताजी से शिकायत कर दूंगा।

श्रीधर चरण अध्यापक - भोलानाथ अब बातों में समय मत बिताओ, कल का काम दिखाओ । 

भोलानाथ - मास्टर जी कल हमारे घर में बिजली नहीं थी इसलिए काम नहीं कर पाया ।

श्रीधर चरण अध्यापक - रामानुज तुम अपनी कॉपी दिखाओ ।

रामानुज - जी मास्टर जी… दिखाते हुए । 

श्रीधर चरण अध्यापक - भोलानाथ तुम दोनों एक ही घर में रहते हो तो रामानुज ने काम कैसे किया 

भोलानाथ - मुझे क्या पता मास्टर जी इसी से पूछ लीजिए ना ।
श्रीधर चरण -  ऐसे नहीं बताओगे तुम । चलो… हाथ पकड़ते हुए ।
भोलानाथ - कहां मास्टर जी कहां ले जा रहे हैं मुझे …

श्रीधर चरण अध्यापक - प्रधानाचार्य के पास वहीं बताओगे तुम ।
2. पटकथा संवाद

प्रधानाचार्य के कक्ष के बाहर 
श्रीधर चरण अध्यापक - सर, क्या मैं अंदर आ सकता हूं ?
प्रधानाचार्य - आइए, मास्टर श्रीधर चरण जी ।

श्रीधर चरण अध्यापक - सर इस वर्ष भी भोलानाथ के पास होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे । और तो और अब तो झूठ भी बोलने में माहिर हो गया है । 

प्रधानाचार्य - भोलानाथ क्या मास्टर जी ठीक कह रहे हैं? बताओ क्या परेशानी है ? अगर पढ़ना नहीं है तो क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हो। ध्यान रहे अगर इस वर्ष भी तुम नवीं में फेल हो गए तो स्कूल से नाम काट दिया जाएगा । 

भोलानाथ - मास्टर जी तो मुझे ही दोष देते हैं । अब आप ही बताएं सर अगर हाथ में दर्द होगा तो काम कैसे किया जाएगा ।

श्रीधर चरण - सर देखिए देखिए …अभी - अभी इसने कक्षा में कहा कि घर में बिजली नहीं थी और अब कह रहा है कि हाथ में दर्द था । इसकी किस बात का विश्वास करें ।

प्रधानाचार्य - क्यों भोलानाथ मास्टरजी सही कह रहे हैं क्या?

भोलानाथ - सर … यही तो मुश्किल है कुछ कहूंगा तो भी सजा मिलेगी नहीं बोलूंगा तो भी मास्टरजी मुझे मुर्गा बना देंगे ।

श्रीधर चरण अध्यापक - अब आप ही देख लीजिए सर गलती मानने के बजाए ये आपके सामने भी जवाब पर जवाब दिए जा रहा है ।

प्रधानाचार्य जी भोलानाथ को पास बुलाकर 
प्रधानाचार्य - भोलानाथ कल पिताजी के साथ स्कूल आना और जो काम मास्टरजी ने दिया था उस भी पूरा करके लाना।

प्रधानाचार्य के कक्ष से बाहर …
छुट्टी की घंटी बज जाती है । सामने से रामानुज भोलानाथ और अपना बस्ता और तख्ती लिए आ रहा है ।
श्रीधर चरण अध्यापक रामानुज को आता देख

श्रीधर चरण अध्यापक - रामानुज ध्यान से सुनो । तुम्हे इसलिए बता रहा हूं क्योंकि ये तो घर में बताएगा नहीं ।
प्रधानाचार्य जी को तुम्हारे पिताजी से मिलना है । कल वह तुम दोनों के साथ प्रातः ही स्कूल आएंगे और प्रधानाचार्य जी से बात करेंगे तभी भोलानाथ को कक्षा में बैठाया जाएगा ।

रामानुज - ठीक है मास्टर जी ।

भोलानाथ - रामानुज अब चलो । 

बाल गीत 

हल्ला - गुल्ला, धोल - धपल
छुप्पा छुप्पी खेलें हम
स्कूल की घंटी बजते ही
लगा छलांग दुड़ भागे हम ।

हल्ला - गुल्ला, धोल - धपल

टेड़े - मेड़े ये रस्ते
हरियाली और संग बस्ते
उस पर बारिश छम छम छम
हल्ला - गुल्ला, धोल - धपल
छुप्पा छुप्पी खेलें हम

बचपन के वो नटखट पल
न पाएंगे जीवनभर
खेल खिलौने आंगन मेढ़
छूटेंगे तब होगा गम
हल्ला - गुल्ला, धोल - धपल
जी लो जो भी हाथ में पल

हल्ला - गुल्ला, धोल - धपल
छुप्पा छुप्पी खेलें हम

भोलानाथ की उम्र 14 वर्ष
रामानुज की 12 वर्ष

घर के दरवाजे पर पिताजी शिवचरण दास वर्मा
भगवान सबका भला करे!
3. पटकथा संवाद
शिवचरण दास वर्मा - कहां रह गए थे तुम दोनों । ऊपर से नीचे तक भीगे हो । भोलानाथ तुम सुधारना मत । रामानुज को भी अपने जैसा बना देना । आज का दिन तो ठीक निकला न या फिर कोई शरारत की है । कोई शिकायत तो नहीं लाए रामानुज … अपने बड़े भाई की ।

रामानुज - नहीं - नहीं पिता जी… शिकायत कोई नहीं है, बस मास्टर जी ने कल आपको याद किया है । 

शिवचरण दास वर्मा - मतलब … क्या है तुम्हारा ?

रामानुज - वो ओ क्या है पिता जी हमारे स्कूल के प्रधानाचार्य जी आपसे मिलना चाहते हैं ।

शिवचरण दास वर्मा -  मिलना चाहते हैं , पर क्यों ?
जरूर कोई  बात है । भोलानाथ ने फिर से कोई बदमाशी की होगी । मुझे तो लगता है कि इसे खेतो पर ही ले जाया करूं । कम से कम कुछ तो सीखेगा । स्कूल में तो रोज एक नई समस्या खड़ी कर आता है । एक ही कक्षा में और कितने साल लगाएगा । 15 साल का बैल हो गया है मगर दिमाग वही गधे का पाया है ।

रामानुज - पिताजी भईया को मत डांटिए । वो पढ़ने की कोशिश करते हैं पर हमेशा भूल जाते हैं। 

शिवचरण दास वर्मा - तभी तो कह रहा हूं कि यह गधा है । 
भगवान सब का भला करे ! कल जाता हूं … स्कूल

ड्राइवर - साहब घर आ गया ।
रामानुज अतीत की यादों से बाहर आता है ।
सामने आंगन में ही भाई की मृत्यु शैय्या सजी है । 
पत्नी और 6 माह के बेटे के साथ गाड़ी से उतरते हुए अपनी पत्नी से गायित्री सिर पर पल्लू रख लो ।

पढ़ा - लिखा नौजवान और मिल के मालिक की बातचीत
4. पटकथा संवाद

 रामानुज अपने परिवार के साथ हमेशा के लिए शहर में रहने की इच्छा अपने पिता के सामने रखता है । बहुत से कारण भी गिनाता है।
तब पिताजी गुस्से में रामानुज को परिवार सहित घर छोड़ने के लिए कहते हैं ।

शहर पहुंचकर 
काम का पहला दिन फैक्टरी में
रामानुज एक फूड फैक्ट्री में सीनियर फूड क्वालिटी सुपरवाइजर है । खाने पीने की चीजों के साथ वह किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करता । अभी अभी गांव से वापिस आया है थोड़ा तनाव में भी है । फैक्टरी का मालिक रामानुज को अपने ऑफिस में बुलाता है।

झुमरू मालिक ( दुर्गा प्रसाद ) का वफादार नौकर रामानुज के पास जाता है । फैक्टरी में रामानुज को सभी राम के नाम से जानते हैं।
झुमरू - राम साहब आपको मालिक अपने केबिन में बुला रहे हैं ।
रामानुज - अभी आता हूं , आप चलिए ।
झुमरू - जल्दी आइएगा साहब थोड़ा गुस्से में लग रहे हैं ।
झुमरू की तरफ देखते हुए रामानुज आंखों से पहुचने का इशारा करता है ।
रामानुज - may I come in sir
दुर्गा प्रसाद - अंदर आ जाओ राम ।  राम तुमने छुट्टी पर जाने से पहले जो माल डिलीवर किया था वो पार्टी को नहीं मिला है । बहुत उल्टा सीधा बोल रहे हैं । पुलिस में जाने की धमकी भी दे रहे है । 5 लाख का माल था हमने पेमेंट भी के ली थी । पता नहीं माल क्यों नहीं पहुंचा ।

रामानुज - साहब मैंने तो सही तरह से माल डिलीवरी के लिए पांचों ट्रकों में अपलोड करवाया था , सुबह माल डिलीवर होना था जिसकी जिम्मेदारी मैंने सुधीर ( यूनियन लीडर और अन्य कर्मचारियों ) को सौंप दी थी ।

दुर्गा प्रसाद - राम ये बहुत ही बड़ा कंसाइनमेंट था और उसकी जिम्मेदारी तुमने उस सुधीर को सौंप दी जिसपर में तिल बराबर भी विश्वास न करूं … चलो छोड़ो ।
झुमरू सुधीर को बुलाओ ।

सुधीर - जी साहब , क्या बात है ? आज मुझे कैसे याद किया। 

दुर्गा प्रसाद - राम ने जिन पांच ट्रक माल की डिलीवरी की जिम्मेदारी तुम्हें सौंपी थी उसका क्या हुआ ।

सुधीर - राम साहब ने … मुझे ।

रामानुज सुधीर की तरफ गुस्से से देखते हुए ।
ये क्या कह रहे हो तुम ? तुम और तुम्हारे साथ कर्मचारी सभी तो वहीं थे ?

दुर्गा प्रसाद - तुम दोनों अपनी लड़ाई बंद करो । मुझे बस इसकी भरपाई चाहिए और जो मेरी बदनामी हुई है से अलग ।

रामानुज - साहब मुझे दो दिन का समय दीजिए। मैं सच्चाई का पता लगा कर रहूंगा । ये मेरी भी इज्जत का सवाल है । किसान का बेटा हूं । मेहनत मजदूरी से जो मिला है उसी में खुशी ढूंढता हूं । किसी के हक का नहीं छीनता ।

दुर्गा प्रसाद - ठीक है । 

5. पटकथा संवाद
18 वर्षीय युवा और मां के संवाद

जब रामानुज अपनी बारहवी की परीक्षा पास कर लेता है तो आगे की पढ़ाई शहर में जाकर पूरी करने की इच्छा अपनी मां के सामने रखता है ।

रामानुज - मां मैं शहर जाना चाहता हूं । 

मां - क्यों बेटा ? क्या जरूरत है? इतने खेत खलिहान है अपने । पिताजी भी यही चाहेंगे कि तुम सब भाई अपने खेतों से अपनी धरती से जुड़े रहो । और फिर शहर में कौन तुम्हारी देख भाल करेगा । बहुत कुछ देखना पड़ता है ।
नहीं नहीं मैं इसके लिए राजी नहीं हूं। 

रामानुज - मां तुम तो मेरी बात समझो । मुझे सिर्फ किसान बनकर ही नहीं जीना । मेरे भी कुछ सपने हैं । मां मैं दादा ( बड़ा भाई ) और भैया की तरह नहीं जीना चाहता । खेत से घर और घर से खेत । 

मां - बेटा ठीक है मैं तेरे बाबूजी से बात करती हूं बाकी भगवान की इच्छा । 
हां… बस ये पहिले बात दूं सिर्फ पढ़ने की इजाजत मिल सकती है बसने की न । शहर में बसने की सोच भी न लियो नहीं तो बाबूजी का गुस्सा भी तू जाने ।

रामप्रसाद - ठीक है मां अभी तो …






















 



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