मेरा जन्मदिन
दिन बीते, साल गुज़रे कारवां यूं ही चलता गया ।
कभी बचपन में थे , आज बुढ़ापा आगे दिख है रहा ।
सामना हो रहा है धीरे - धीरे , हौले - हौले कुछ ऐसे।
दिल में बेचैनी बनी रहती है … थोड़ी - थोड़ी जैसे ।
वो लम्हा आज भी दिल को हिला देता है ।
जन्मदिन था मेरा और मां की सजी थी शैय्या ।
न आंसू थे नयनों में, न थे शब्द मुख पे
कलम थी कर में…अंधकार घना था घर में ।
दो दशक बीते छम से आज धुंधली हैं वो सारी यादें ।
मां की कमी की कसक…वो उसकी प्यारी बातें ।
जिंदा हैं इस दिल के कोने में कहीं चुपके से
बात करती हैं जो मुझसे रात - रात भर आ के ।
उन्हीं बातों से हैं शब्द मुझको मिल जाते ।
कलम उठ जाती पल में लव्ज़ बयां हो जाते ।
मां की यादों की डोरी से बंधा दिल मुझको
दे जाता है आज भी हर पल, हर खुशी मुझको ।।
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