शीतलता धारण करके
पवित्रता का आंचल भरके
तृष्णा यही बुझाता है,
जीवनदायी बन जाता है ।
काम सभी में आता है ।
काम सभी के आता है ।
काम सभी संभव करता है ।
पानी जल बन जाता है ।
पानी, नीर, जल के रूप में
अपना कृत्य निभाता है ।
प्रकृति की अभिन्न धरोहर
पानी ही कहलाता है ।
जल के रूप में नदियों में
प्रयोग के रूप में घर के नल में
नीर के रूप में नयनों में
यह अपना रूप दिखता है ।
काम सभी संभव इससे हैं
जीवन में यह अमृत है ।
अनुष्ठानों में जल के रूप में
पानी बिन सब निर्झर हैं ।
खेत खलिहान इसी से सुंदर
हरियाली फैलाते हैं ।
फूलों के उर चंचल होकर
भवरों संग मस्ताते हैं ।
जंगल में मयूर भी देखो
अपने पंख फैलाते हैं ।
वर्षा के शीतल जल के साथ
अपनी खुशी दर्शाते हैं ।
जल ही बाहर, जल ही भीतर
जल से ही काया का सृजन
जल नहीं तो जीवन सूना
जल से ही यह जीवन पूरा ।।
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