कविता
5 अप्रैल… नई उम्मीद का पर्व
प्रकाश पर्व
आओ उम्मीद का दीप जलाए
विश्वास, परहित, हौसले, श्रद्धा
सबको लेकर संकल्प उठाएं ।
कोरोना से जंग जीतने हेतु
एकजुट जग करते जाएं ।
अंधकार पर विजय है करनी
कोरोना की छुट्टी अब करनी
संकल्प लिया जो… होगा पूरा
जंग हमको है इससे लड़नी
लोगों में उम्मीद जगी है
दीप श्रृंखला सजी हुई है
पंक्तिबद्ध प्रज्ज्वलित आशाएं
मोदीजी पर टिकी हुई हैं ।
चहल - पहल जल्दी आएगी
चकाचौंध , रौनक लाएगी
अर्थव्यवस्था जो थप हुई है
फिर आकाश को छू जाएगी ।
साथ सभी को देना होगा
साथ सभी का लेना होगा
कठिन घड़ी के विकट दौर में
साथ - साथ अब रहना होगा
कोई नहीं हिंदू , मुस्लिम है
नहीं कोई है सिख, ईसाई
सब की रगों में एक ही रक्त है
एकदूजे के हैं भाई - भाई ।
मुश्किल घड़ी जो आन पड़ी है
न तेरी… न मेरी है
मौत लिए ये हर पंथ पर
पथिक के लिए समान खड़ी है
एकजुट हमको हो जाना है
एक नारा ही लगाना है
भारत के कोने - कोने से
कोरोना हमें भगाना है ।
डॉ. नीरू मोहन ' वागीश्वरी '
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