मैं भी चौकीदार …
मैं भी भिखारी…
मैं भी चायवाला …
क्या है ये सब ?
एक नेता के कहने पर हम अपने आपको किसी भी संज्ञा से संबोधित कर लेते हैं क्यों ?
मैं पूछती हूं उन लोगों से जो अपने आपको कभी चौकीदार बना रहे हैं कभी चायवाला; अगर सच में वह इनमें से किसी से भी संबंधित होते तो क्या ये सब कह पाते ? शायद नहीं … यकीनन नहीं और अगर कोई उनको ये सब कह कर संबोधित भी करता तो सहन से बाहर होता तो क्यों किसी के कहने मात्र से सभी चौकीदार और चायवाले बन जाते है । नाम , शोहरत , वोट और रुतबा पाने के लिए । एक बार ये काम करके देखिए सच्चाई समक्ष होगी । जो जनता से इतने बड़े - बड़े वादे कर रहे हैं एक दिन भी चौकीदार और चायवाले नहीं बन सकते क्योंकि … उन की तरह आप मेहनत नहीं कर सकते , पसीना नहीं बहा सकते । कुर्सी पर बैठ कर कुछ भी बोला जा सकता है । इन स्थितियों को जी कर देखें असलियत से सामना हो जाएगा ।
मैं ये सब इसलिए कह रही हूं कि मीडिया, समाचारपत्र, पत्रकारों को माध्यम बनाकर आपसे पूछा जा रहा है कि आप किसको वोट देंगे । आपका पसंदीदा नेता कौन है । अरे भाई ! ये हम तुम्हे क्यों बताएं । ये हमारा अपना मत है । अपना वोट है । हम किसको वोट दे या देंगे ये जगजाहिर क्यों करना है ? जब मत पेटी से मतों की गिनती हो जाएगी सबको पता चल ही जाएगा कि पसंदीदा व्यक्तित्व या नेता कौन है ।
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