कहानी
सत्य को दर्शाती, इतिहास भी बताती, वर्तमान की दशा दिखाती, और भविष्य का चित्र बनाती सबको अपनी कहानी सुनाती अपने अधिकार की बात है करती सम्मान पाने की चाह लिए निकल पड़ी है खुली सड़क पर साथ आपका पाने अब…
शीर्षक
सम्मान कब मिलेगा
बिंदी माथे से खिसकी हुई, पल्लू भी सिर से सरका हुआ था; चेहरे की रंगत मानो पीली पड़ गई हो । एक बीमार, लाचार उठने के लिए प्रयासरत् , उड़ने के लिए बेचैन सखियों के बीच सहोदरी कहलाने वाली सभी को ध्वनि देने वाली आज असहाय सी रास्ता ढूंढ रही है । अपने ही देश में स्वयं जगह बनाने की कोशिश में निकल पड़ी है …साथी-संगी होते हुए भी किसी का साथ नहीं है सोच में डूबी वहाँ बैठी एक सखी से बात करती पूछ ही लेती है ।
बहन ! तुम कैसी हो ? तुम्हारा भी क्या वही हाल है जो मेरा हो गया है ? कोई मुझको अपना नहीं रहा है ? कोई मुझ में बात नहीं कर रहा है ? सभी मुझे हीन दृष्टि से देखते हैं । अगर कोई मुझे अपनाने की बात करता है या मुझे कोई गुनगुनाता है तो उनका स्वर वही बंद कर दिया जाता है…और उनसे पूछा जाता है कि क्या वह पढ़े लिखे नहीं हैं ? क्या कहूँ बहुत ही बुरा हाल बना दिया है मेरा मेरे ही लोगों ने उठने की भी सोचती हूँ तो वही मादा विदेसिन बाज़ फिर से मुझे झपट्टा मार देती है और मेरा मुँह नोच लेती है फिर क्या अपने ही देस में मुँह छिपाएँ अंजान और अजनबी बनी हुई हूँ । मुझे लगता है जब तक मैं स्वयं को स्वयं से ही शक्तिशाली नहीं बनाऊँगी, स्वयं के लिए नहीं लड़ूँगी तब तक न तो मेरा भला होगा, न ही विकास और न ही सम्मान मिलेगा ; क्योंकि मैंने सुना है जो स्वयं से हार मान लेते हैं और हारकर पीछे हो जाते हैं उन्हें सफलता नहीं मिलती ।
सखी ! क्या कहना चाहती हो तुम ? क्या तुम समाज से लड़ोगी ? नहीं, मैं लड़ाई नहीं करूँगी, मैंने लड़ाई करना सीखा ही नहीं, यह मेरे संस्कारों में ही नहीं है । मेरे देश की मिट्टी ने मुझे लड़ना या यूँ कहूँ हिंसा से हक प्राप्त करना नहीं है सिखाया । मैं अपना हक प्राप्त करने के लिए अपने ही लोगों के बीच जाऊँगी, बच्चों की प्यार और लगाव की चाह में उनके मन में उतरूंगी और उन्हें अपनी अहमियत , ख़ासियत बताऊँगी । सखी ! इस संघर्ष में क्या तुम सब मेरा साथ दोगी ; उस मादा विदेसिन बाज़ का सामना करने और उसे खदेड़ने में जिसने मेरा यह हाल किया है और मुझे बदनाम करके आज मेरी ही जगह ले ली है । मुझे अपना स्थान प्राप्त करना है । मैं अपना स्थान किसी को नहीं दे सकती ।
क्या तुम्हें याद वो दिन हैं जब विदेशियों ने हमारे देश पर आक्रमण कर उसपर अपना राज स्थापित कर लिया था वर्षों की गुलामी के पश्चात हम आज़ाद तो हो गए मगर तब से आज तक मुझे उठने का मौका ही नहीं दिया गया मैं उठ ही नहीं पाई और आज तो यह हाल है कि विद्यालयों से लेकर कार्यालयों तक मुझे हीन दृष्टि से देखा जाता है, मुझमें संवाद नहीं किया जाता जो, मुझमें संवाद करते हैं उन्हें अनपढ़ समझा जाता है ।
बहन ! तुम सबने मेरी कहानी तो सुन ली मगर अपना-अपना नाम नहीं बताया मुझे तुम सब का साथ चाहिए क्या तुम मेरा साथ दोगी । हाँ बहन ! हम इस संघर्ष में तुम्हारे साथ हैं हमारा भी हाल तुम्हारे ही जैसा है तुम हमारी सहोदरी हो । इतने में बघेली आती है और पीड़िता से उसका नाम पूछती हुए कहती है कि बहन तुम चिंता मत करो हम सबको अपना नाम तो बताओ तुम्हारी यह दुर्दशा हमसे देखी नहीं जाती । सकुचाई सी भीगे नयनों में नीर लिए चेहरे से आँचल हटाकर कहती है…
मैं … मैं 'हिंदी' हूँ ; जो आज तक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है अंग्रेजी ने मुझमें मिलकर मेरा अस्तित्व ही मिटा दिया है मुझे हिंदी से हिंग्लिश बना कर छोड़ दिया है मेरा अस्तित्व खतरे में है आज मुझे स्वयं का सम्मान चाहिए और यह सम्मान मुझे एक दिन सम्मान देकर नहीं मिलेगा । मेरा सम्मान तभी बढ़ेगा जब हर रोज मुझे सम्मान दिया जाए, मेरा प्रयोग किया जाए । मेरा प्रयोग कर लोग अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें न कि अपनी ही संतानों को मेरा प्रयोग न करने के लिए कहकर उन्हें हतोत्साहित करें । जब तक जन-जन मुझे नहीं अपनाएगा मुझे सम्मान नहीं मिलेगा । मुझे राजभाषा का सम्मान तभी मिल पाएगा जब हिंदुस्तान हिंदी को अपनाएगा और तभी हिंदुस्तान हिंदी भाषी कहलाएगा ।
हिंदी में भाव हैं
हिंदी में अहसास है
हिंदी में विचार है
हिंदी में संचार है
हिंदी के बगैर कुछ नहीं
हिंदी हमारा स्वाभिमान है ।।
हिंदी दिवस की असीम और अनंत बधाई !
नीरू मोहन 'वागीश्वरी'
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