प्रारूप शोधपत्र-
1. शोधपत्र की संरचना - शोधपत्र निम्नलिखित विन्दुओं के अध्यधीन संरचित हो -
1. शोधपत्र का शीर्षक।
2. लेखक/लेखकों का नाम उनके ईमेल संकेत के साथ (लेखक/लेखकों का परिचय उनके नाम/नामों में सिम्बल लगाकर, नीचे फुटनोट् में प्रस्तुत किया जाना चाहिए)।
3. सार-संक्षेप।
4. की-वर्ड्स (शोधपत्र के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शब्द जो आन-लाइन-सर्च में सहायक हों)।
5. शोधपत्र (हेडिंग्-सहित या हेडिंग्-रहित)।
6. स्वीकृति-पत्र (यदि आवश्यक हो) -
o क. किसी पाण्डुलिपि के पूर्ण प्रकाशन हेतु अत्यावश्यक।
o ख. सचित्र पाण्डुलिपियों के चित्र, अन्य चित्र, संग्रहालयीय पुरातात्त्विक महत्त्व की वस्तुओं से संबन्धित शोधपत्रों में यदि इनके चित्र दिए गए हों तो सम्बन्धित संस्था, अधिकारी अथवा स्वामी द्वारा निर्गत स्वीकृति-पत्र अत्यावश्यक।
7. उपसंहार / निष्कर्ष
8. सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची
2. ‘सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची’ का प्रारूप
क. शोधपत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों के लिए -
1. Gode, P. K., “The Bhagavadgita in the pre-Shankaracharya Jain sources”, ABORI, vol.-20, part-2, January-1938, pp.188-194, Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona.
ख. प्रकाशित-ग्रन्थों के लिए -
1. Krishnamachariar M., (Ed.) 2009. History of Classical Sanskrit Literature. Motilal Banarsidass, Delhi-110 007. India.
2. उपाध्याय, आचार्य बलदेव, मिश्र, प्रो. जयमन्त (सम्पादक), २००३ ई., संस्कृत-वाङ्मय का बृहद् इतिहास (पंचम-खण्ड : गद्य), उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ, भारत.
3. फॉण्ट -
1. अंग्रेजी-भाषा के लिए ‘टाइम्स न्यू रोमन’- वर्ग के फॉण्ट एवं हिन्दी-संस्कृत भाषाओं के लिए ‘यूनिकोड् मंगल’-वर्ग के फॉण्ट का प्रयोग किया जाना चाहिए।
2. जनकृति में प्रेषित शोधपत्रों के लिए उपर्युक्त को छोड़ किसी अन्य फॉण्ट का प्रयोग न करें।
4. विशिष्ट प्रस्तुतीकरण
1. शोधपत्रों की प्रस्तुति में विशिष्ट साज-सज्जा, आकृतियों, कालम, टेबल्स, वृत्त आदि का प्रयोग न करें।
2. अत्यन्त आवश्यक होने पर ही कालम, टेबल्स, चार्ट्स का प्रयोग करें।
3. यदि शोधपत्र अपरिहार्य रूप से किसी विशेष प्रस्तुतीकरण (फार्मेट्) में प्रस्तुत हो तो इसकी एक ‘पी.डी.एफ.-फाइल्’ और एक ‘एम.एस.-वर्ल्ड’ की फाइल् भी भेजी जानी चाहिए।
5. सूचना -
1. शोधपत्र सर्वथा मौलिक, शोध एवं अनुसन्धान के उच्च मानदण्डों पर प्रस्तुत होना चाहिए।
2. आंशिक अथवा पूर्णरूपेण अन्यत्र प्रकाशित, प्रयुक्त शोधपत्र नहीं भेजें।
3. साक्ष्य हेतु प्रस्तुत उद्धरणों को (ग्रन्थ-नाम, पृष्ठ-संख्या, संस्करण, प्रकाशक आदि) बहुत सावधानी-पूर्वक जांच लें और आश्वस्त होने पर ही उनका सन्दर्भ दें।
4. ध्यान दें –
o क. सम्पादकों के पहले परामर्श के बाद भी सन्दर्भों के अशुद्ध एवं भ्रान्त होने की दशा में,
o ख. दूसरे परामर्श के बाद भी निर्देशों का पालन किए बग़ैर पुन: भेजे गए, शोधपत्र स्वत: अप्रकाश्य समझे जाएंगे।
5. लेखकों के विचारों, अनुभवों तथा दृष्टिकोण से इस संस्थान, ‘जनकृति’, इसके परामर्श-दातृ-मण्डल तथा सम्पादक-मण्डल का सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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