Thursday, 18 May 2017

**** ‘सीख’ होती है अनमोल*****

*पंछी से सीखा है मैंने
ऊँचें उड़ना चहचहाना |

*सूरज से सीखा है मैंने
नई सुबह की किरण फैलाना |

*ऊँचे नभ-गगन से सीखा
शीतलता का एहसास पुराना|

*अपनी इस धरती से सीखा
ममता का आँचल फैलाना |

*सागर से सीखा है मैंने
हर नैया को पार लगाना |

*सीखा उसकी लहरों से है
बढ़ते जाना बढ़ते जाना |

*उस बहती नदिया से सीखा
दुख को कैसे पार लगाना |

*सीखा उस ऊँचे पर्वत से
शीश उठाकर जीते जाना

*पथरीली राहों से सीखा
मुश्किल में मंजिल को पाना |

*राह के उस पथिक से
सीखा मंजिल को आसान बनाना |

*लाखों उन तारों से सीखा
रोशन होकर टिम टिमाना |

*उस चंदा से भी सीखा है
घटना,बढ़ना और चमकाना |

*काली बदरी से सीखा है
सुख की वर्षा करते जाना |

*वर्षा की बूँदों से सीखा
रहागीर की प्यास बुझाना |

*मौसम से सीखा है मैंने
आना-जाना सुख बरसाना|

*सावन के झोंकों से सीखा
चलते-जाना कभी न रूकना |

*सावन के झूलों से सीखा
परदेसी को पास बुलाना |

*अपने देश से सीखा मैंने
हाथ मिलाकर कदम बढ़ाना |

*उस परदेसी से भी सीखा
अपने देश की शान बढ़ाना |

*धरती के मानव से सीखा
सब धर्मों का आदर करना |

*सीखा हर छोटे बच्चे से
भेदभाव को दूर भगाना |

*एक है हम और एक रहेंगे
मिलजुल कर हम साथ चलेंगे |

*****कहे नीरू ये आज सभी सेे,
सीख कहीं से भी हो प्राप्त,******
******रखो उसे तुम सहज संभाल |

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