Saturday, 30 June 2018

माँ …मुझे मौत दे दो ???? मर्म की चीख

माँ …मुझे मौत दे दो ???? मर्म की चीख
जागरुकता लेख

क्यों आज हर माँ को यह कहने की स्थिति में पहुँचा दिया है कि…
'अगले जन्म मुझे बिटिया न दीजो' और
एक बेटी को यह कहने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि…
'अगले जन्म मुझे बिटिया ना कीजो'

आज देश में जो हालात हैं छोटी-छोटी बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं उनको यूँ कुचला जा रहा है मानो वो इंसान नहीं कोई खिलौना हों । लक्ष्मी कही जाने वाली, नवरात्रों में पूजी जाने वाली इन कन्याओं के साथ ऐसा कुकर्म करके कैसे यह हैवान चैन से रहते है । क्या इनका ज़मीर मर गया है ? क्या इनके लिए कानून अँधा हो जाता है या वाकई में कानून की आँखों पर पट्टी बँधी है जो देश की बेटियों को सुरक्षित नहीं कर पा रहा है । आए दिन ऐसी घटनाएँ देखने को मिल जाती हैं क्या सत्ताधारी लोगों को दिखाई और सुनाई देना बंद हो गया है ? आज हालात हैं कि नेता कहते रहते हैं । हमें देश की चिंता है । हम देश हित के लिए सोचते है । देश की सीमा सुरक्षित होनी ज़रूरी है । उनको कौन समझाए कि देश को ख़तरा देश के बाहर वालों से नहीं देश के अंदर वालों से है । जिस देश की जनता सुरक्षित नहीं है छोटी-छोटी बच्चियाँ सुरक्षित नहीं हैं ऐसे देश में सीमा सुरक्षा की बात बेमायने प्रतीत होती है ।

आज हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकते हैं । उन्हें क्या पड़ी है कि वह सोचें कि देश में क्या हो रहा है, देश किन स्थितियों से गुज़र रहा है । देश के अंदर क्राइम, भ्रष्टाचार लूट, अत्याचार, हैवानियत बढ़ती जा रही है । दूसरी और नेताओं को एक दूसरे पर छींटाकशी करने से फुर्सत ही नहीं है । एक छोटी बच्ची के साथ हैवानियत की हद पार कर दी जाती है उसे बेपर्दा कर छोड़ दिया जाता है । ऐसे हैवानों को क्या कहा जाए जो इस तरह का कुकर्म करने के लिए हैवानियत की सीमा लाँघकर किसी मासूम के साथ ऐसा बेरहम व्यवहार करते हैं कसाई से भी ज्यादा जल्लाद हो चुके हैं आज की ये असंस्कारी जात । जो न किसी धर्म, जाति और समुदाय सेसंबंध रखती है । इनकी सिर्फ़ एक जाति 'जल्लाद' ही हो सकती है ।

आज मंदसौर की इस घटना ने 'निर्भया कांड' का जख्म ताज़ा कर दिया है । क्या कर रही है हमारी सरकार … हर रोज़ एक निर्भया का मर्म हमारे समक्ष हमारी रूह को कंपन दे रहा है । इन बच्चियों के साथ क्या इंसाफ नहीं होगा ? क्या इस निम्न स्तर तक हैवानियत करने वाले खुलेआम ऐसा जघन्य अपराध करते रहेंगे ? क्यों नहीं उनके ख़िलाफ हमारे देश की सरकार कोई सख्त कानून बनाती जिससे इस अपराध को करने की सोचने वालों की रूह तक कांप जाए । क्यों नहीं सरकार ऐसे लोगों को अपंग बनाकर सूली पर नहीं चढ़ाती ? ऐसे हैवानों की तो पहले आँखें नोच लेनी चाहिएँ जिससे वह देवी रूपी कन्या को गन्दी और तुच्छ नज़रों से देखते हैं उसके बाद उनके हाथों को काट डालना चाहिए जिससे वह उसे छूते हैं और अंत में उन्हें नपुंसक बना कर जिंदा चौराहे पर लटका कर जला देना चाहिए जिससे उन्हें एहसास हो कि एक बच्ची के साथ जो वह करते हैं वह कितना मार्मिक है । ऐसे हैवानों को तड़पा-तड़पा कर मृत्यु के द्वार पर अधर लटका देना चाहिए जिससे मौत माँगने पर ये राक्षस मजबूर हो जाएँ 

आज इंसानियत कही खो गई है । देशवासी यह क्यों नहीं समझते बेटी…सिर्फ़ बेटी है । न वो हिंदू न मुसलमान है न सिख न ईसाई है वह एक मासूम है … वह बेटी है । पृथ्वी पर इंसान को सभ्य कहा गया है क्या वाकई में वह सभ्य है । क्यों इंसान इंसानियत इंसानियत त्याग असभ्य बनता जा रहा है । एक जानवर की भांति व्यवहार कर रहा है । क्या यही विकास है …अगर ऐसा कुकृत्य विकास की दिशा का निर्वाह करेगा तो ऐसा विकास नहीं चाहिए जहाँ संस्कारों की हत्या कर विकास का नाम दिया जाता है । देश…देश… देश… का रोना रोता रहता है हर नेता , मेरा देश, मेरा वतन का राग अलापता है ; उन्हें पता ही नहीं इसकी परिभाषा क्या है । जिस प्रकार एक घर चारदीवारी से नहीं उसमें रहने वाले लोगों से घर कहलाता है उसी प्रकार एक देश का अस्तित्व भी उसमें रहने वाले लोगों , उनकी सुरक्षा से संबंध रखता है ।

हमारा देश बहुसांस्कृतिक देश है जहां हर कौम, जाति, धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं । जाति और धर्म के नाम पर दर्द को अाँकना कहाँ का न्याय है । आज बहुत ही विकट समस्या है संस्कारों के ह्वास की जिसका परिणाम है जीवन में पीड़ा, दर्द और भावनाओं का स्थान का नगण्य हो जाना । किसी को भी किसी अन्य की पीड़ा और दर्द का एहसास नहीं होता । मनुष्य स्वार्थी होता जा रहा है । आज बेटियाँ घर या बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं  दरिंदे घात लगाकर बैठे रहते हैं । माँ अपनी बेटियों को घर से बाहर भेजने से घबराती हैं । जब तक बेटी घर वापस नहीं पहुँचती माँ-बाप की चिंता का विषय बनी रहती हैं । क्या ऐसे समाज की कल्पना की थी हमने ? क्या हम ऐसा समाज चाहते थे जहाँ हर कदम पर खतरा… खतरा…और सिर्फ़ खतरा ही है । मैं अपनी और पूरे देश की जनता की तरफ से कहना चाहती हूँ कि जब तक इस अपराध के लिए सख़्त कानून नहीं बनेगा तब तक ऐसे दरिंदे रोज़ ही किसी न किसी मासूम को अपने गलत इरादों की भेंट चढ़ाते रहेंगे ।

सोए हो क्यों …तुम्हें जगना होगा ।
बहन, बेटी की लाज की ख़ातिर
नया नियम कोई घड़ना होगा ।
करे न कोई बेपर्दा इनको
कानून ऐसा तुझे घड़ना होगा ।
रूह कांपें ज़ालिम की बस अब
ऐसा न्याय तुझे करना होगा ।

लेखिका
नीरू मोहन 'वागीश्वरी'



Thursday, 28 June 2018

Bank slip


[6/28, 18:26] Batra CR: Ph.D. Admission Process
Application Form submission With Academic Credentials – Rs.  2000/- 
Eligibility Entrance test 
Interview
Pre RDC (Research & Development Comity) – 1.25,000/-
After 10 Days  Pre RDC Letter & Guide Allotment 
3 Months time to Prepare Synopsis
RDC
Synopsis submission and topic approval. – Rs. 75000/-
Course work – 6 month
Course Work Exam
Screening of P.hD theisis – Remaining Fee 
Thesis Evaluation 
Publications. – 2 Conference and  2 Journals (National & International)
6 Months Report will Submit Minimum 4 Times
Degree Awarded.
[6/28, 18:31] Batra CR: SVU Bank Details:-
RTGS / NEFT to be made in the name of SHRI VENKATESHWARA UNIVERSITY
Bank details are mentioned below : 
Punjab National Bank
Branch – Defence Colony, New Delhi 
Account No. 3978002100012287
IFSC Code – PUNB0397800
Note:- D.D. should be in favor of SHRI VENKATESHWARA UNIVERSITY Payable at Delhi

Fund transfer request of Rs. 15000 from Account 2122XXXX5111 to Account 1136XXXX0291 has been completed on 2018-06-28 vide transaction reference MFT662713065111.

NEFT Transaction with reference number 000047970026 for Rs.21000.00 has been credited to the beneficiary account on 28-06-2018 at 16:36:59


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Monday, 25 June 2018

समीक्षा

वागीश्वरी का सृजन है बेहद ख़ास
                                                   -इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
कविता का सृजन हर दौर में बेहद ख़ास और महत्वपूर्ण रहा है, कविता ने डाकू तक को कवि बना दिया है, क्योंकि रचनाकार जब समय, देशकाल और समाज की बात करता है तो वह खुद को एक श्रेष्ठ इंसान के रूप में परिवर्तित कर चुका होता है, पहले खुद को बेहतर बनाता है फिर सबको बेहतर बनने के लिए प्रेरित करता है। वह समय के साथ आंखें मिलाते हुए उसका वर्णन करता है और समाज को विसंगतियों से दूर रहने की सीख देता है, बताता है कि कौन सी चीज़ अच्छी या बुरी है। ऐसे में कवि का सृजन बेहद ख़ास हो जाता है। आमतौर पर लगभग हर इंसान अपनी निजी ज़िदगी और परिवार की चिंता करतेे हुए उसकी भलाई की सोचता है और तमाम तरह के कदम उठाता है, मगर रचनाकार अपनी लेखनी में समाज और देश की चिंता करता है, उसकी भलाई की बात करता है, लोगों को सचेत करता है। ऐसे में सहज ही कहा जा सकता है कि रचना का सृजन करने वाला व्यक्ति आम इंसान से बिल्कुल अलग और ख़ास होता है। ऐसे परिदृश्य में जब किसी रचनाकार की पुस्तक छपकर सामने आती है तो न सिर्फ़ उसके लिए बल्कि पूरे समाज और मानवता के लिए बेहद ख़ास होती है, क्योंकि रचनाकार अपनी दृष्टि से समाज की अच्छाइयों और बुराइयों का वर्णन करता है, किस रचनाकार ने किस चीज़ को अपनी दृष्टि से अच्छा या बुरा कहा है, यह जानना सबके लिए बेहद ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि हर इंसान इसी समाज और मानवता का हिस्सा है।
इन परिदृश्यों में नीरू मोहन ‘वागीश्वरी’ की कविता को देखने की ज़रूरत है, इन्होंने अपनी दृष्टि और भावना से काव्य का सृजन ईमानदारी के साथ किया है। एक वेल-एजुकेटेड कवयित्री वागीश्वरी ने अपने सृजन से लोगों के लिए मिसाल पेश की है। ये अपनी कविताओं में एक औरत को खुद को औरत होनी की वजह से कमज़ोर या विवश नहीं मानती, बल्कि समाज को बताती हैं कि वह कितनी सशक्त है । एक कविता नज़ीर के तौर पर देखिए-
मैं हूँ एक अभिनेत्री,
अभिनय का मैं स्वांग हूँ रचती।
चेहरे को अपने रंग लेती,
झूठा जीवन मैं हूँ जीती।
कभी खुशी के भाव दिखाती,
कभी गम के अश्क बहाती।
जीवन की सच्चाई को सबके,
रू-ब-रू मैं हूँ करवाती।
स्वअस्तित्व को त्याग के अपने,
सबके अस्तित्व को हूँ दर्शाती।
‘वागीश्वरी’ की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि इन्हें जहाँ भी, जो भी विडंबना समाज में दिखी है, उसके खि़लाफ़ आवाज़ उठाने में बिल्कुल भी कोताही नहीं की है। यही वजह है कि इनकी कविताएँ समय के साथ आँख मिला रही हैं और लोगों को बता रही हैं कि समाज की स्थिति क्या है और क्या होनी चाहिए। एक कविता में कहती हैं-
मेरी नज़र में तू मर्द नहीं नामर्द बना है
क्योंकि रात के साए में तूने मुझे बे-आबरू किया है ।
शायद परिवार से तुझे सीख न मिल पाई,
कि नारी लक्ष्मी है सृष्टी उसने रचाई ।
मुझे बदनाम करके माँ का नाम न तूने रोशन किया है,
बल्कि उसके दूध को तूने सरेआम बदनाम किया है ।

इसी तरह की रचनाएँ इस पुस्तक में जगह-जगह दिखाई देंगी, ज़रूरत इस बात की है कि इनके सृजन को गंभीरता से लिया जाए और इनसे उम्मीद की जाए कि आने वाले दिनों में और बेहतर रचनाएँ हमें पढ़ने का सुअवसर मिलेगा। इस पुस्तक के लिए नीरू मोहन ‘वागीश्वरी’ को ढेर सारी बधाइयाँ ।
      - इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी
      अध्यक्ष- गुफ्तगू
     123ए-1, हरवारा, धूमनगंज
      इलाहाबाद
  मोबाइल नंबर: 8840096695

Saturday, 23 June 2018

राष्ट्रीय नारू सम्मान छाया चित्र

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Friday, 22 June 2018

हिंदुस्तानी भाषा अकादमी

यह हिंदी भाषा अकादमी के लिये बहुत सम्मान की बात है कि यह आयोजन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संस्थान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के साथ संयुक्त रूप से आयोजित हो रहा है।
इस समारोह में अकादमी के 'शिक्षक प्रकोष्ठ' के 112 शिक्षकों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया है।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में पूरे देश से विद्वान वक्ता पधार रहे हैं।
समारोह इंदिरा गांधी राष्ट्ररीय कला केंद्र के सभागार में आयोजित है।
चार सत्रों के इस समारोह में ही 'शिक्षक प्रकोष्ठ स्मारिका' और 'हिंदुस्तानी भाषा भारती' पत्रिका के नए अंक का लोकार्पण भी किया जाएगा ।

1. प्रो. गिरीश्वर मिश्र,
कुलपति, महात्मा गांधी अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा
2. श्री अतुल कोठारी
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, दिल्ली
3. श्री राहुल देव
वरिष्ठ पत्रकार
4. सुश्री निधि कुलपति
एन डी टी वी
5. प्रो. अवनीश कुमार
निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय
एवम अध्यक्ष वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग
6. श्री सुधीश पचौरी
मीडियाकर्मी
7. डॉ प्रमोद तिवारी
गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय
8. प्रो. नंद किशोर पांडेय
निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
9. प्रो. राम मोहन पाठक
कबीर मठ, वाराणसी
10. डॉ बालेंदु दधीचि
हिंदी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का प्रयोग
 11. डॉ अशोक चक्रधर
हिंदी के विद्वान, कवि, लेखक,निर्देशक, अभिनेता, नाटककर्मी ।
12. डॉ वेद प्रताप वैदिक
वरिष्ठ पत्रकार और हिंदी प्रेमी
13. श्री अच्युतानंद मिश्र
पत्रकार एवम पूर्व कुलपति, माखन लाल चतुर्वेदी पत्रिकारिता बिश्वविद्यालय
14. श्रीमती चित्र मुदगल
वरिष्ठ कथा लेखिका एवं हिंदी सेवी
15. डॉ हरीश नवल
सुविख्यात व्यंग्यकार, लेखक और गगनांचल के संपादक
16. पद्मश्री डॉ नरेंद्र कोहली
सुविख्यात लेखक
17. श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
साहित्यकार एवं पूर्व अध्यक्ष, साहित्य अकादमी

सत्र संचालन :
1. डॉ रवि शर्मा 'मधुप'
साहित्यकार एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, दिल्ली विश्वविद्यालय

2. श्री उमेश चतुर्वेदी
सुविख्यात पत्रकार और सलाहकार, दूरदर्शन

3. डॉ धनेश द्विवेदी
उप संपादक, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार

4. डॉ रमेश तिवारी
साहित्यकार एवं शिक्षाविद

ज्ञान सवेरा समाचार

ज्ञान सवेरा समाचार पत्र में नीरू मोहन 'वागीश्वरी' की कविताएँ प्रकाशित ।

राष्ट्रीय नारी गौरव सम्मान जयपुर

राष्ट्रीय नारी शक्ति गौरव अवार्ड 2018 से वरिष्ठ साहित्यकारा नीरू मोहन 'वागीश्वरी' सम्मानित ।

दिनांक 21 जून 2018 जयपुर गुलाबी नगरी जयपुर में सावित्रीबाई राष्ट्रीय जागृति मंच राजस्थान और महात्मा ज्योतिबा फुले ब्रिगेड जी एवं सावित्रीबाई फुले जी को समर्पित राष्ट्रीय स्तर के राष्ट्रीय नारी शक्ति गौरव सम्मान से वरिष्ठ साहित्यकारा, शिक्षिका और समाज सेविका नीरू मोहन 'वागीश्वरी' को सम्मानित किया गया । सम्मान समारोह में राजस्थान महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती रेहाना रियाज़ चिश्ती, वरिष्ठ समाजसेवी श्री मोती बाबा फालना, सेवानिवृत्त श्रीमती सुशीला जी, राष्ट्रपति अवार्डी श्री राजेंद्र कपूर (दिल्ली), समाज सेवी डॉ पी के सरीन (बीकानेर) सहित कई गणमान्य अतिथियों की गरिमामय उपस्थिति में राष्ट्र की 51 महान विभूतियों को सम्मानित किया गया । कार्यक्रम की सफलता में श्री राजपुरोहित जी का विशेष योगदान रहा । आदरणीय एडवोकेट ललिता जी संपूर्ण सम्मान समारोह की मजबूत स्तंभ बनी रहीं और पर्दे के पीछे की भूमिका में श्रीमती पूनम जी ने कार्यक्रम को सफल बनीने में विशेष भूमिका निभाई । यह एक ऐतिहासिक समय था जिसमें संपूर्ण देश के कोने-कोने की 51 महिला शक्ति को सम्मान से नवाज़ा गया ।

Monday, 18 June 2018

स्नेह और दुलार खो गया (लेख)

   लेख
स्नेह और दुलार खो गया

एक बच्चे की उन्नति और विकास के लिए अभिभावकों के साथ निरंतर बच्चे की पढ़ाई और क्रियाकलापों को लेकर वार्तालाप बहुत आवश्यक है क्योंकि इससे एक बच्चे के विकास के चरणों का पता चलता है । 24 घंटों में से बच्चे 8 घंटे स्कूल में अपनी शिक्षिकाओं, सहपाठियों के साथ वक्त बिताते हैं और 2 × 8 घंटे अपने परिवार, माता-पिता, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ ।
प्रश्न यह उठता है …कि बच्चों के जीवन पर किसका प्रभाव अधिक पड़ता है वातावरण का, स्कूल का, परिवार का या अभिभावकों का ? नि:संदेह बच्चों के जीवन पर स्कूल से ज्यादा प्रभाव वातावरण और अभिभावकों का पड़ता है अपने शिक्षकों के साथ बिताए 8 घंटों में बच्चे के भाग्य का निर्माण नहीं किया जा सकता बच्चे के भाग्य को आकार दिया जा सकता है लेकिन उसकी मजबूती का कार्य एक घर में एक परिवार में अभिभावक ही कर सकते हैं क्योंकि जो जड़ संस्कार, संस्कृति उनको परिवार से प्राप्त होते हैं वहीं उनके जीवन की दिशा प्रदान करने का कार्य करते हैं उन्हीं संस्कारों से वह आगे बढ़ते हैं। स्कूल शिक्षा देने का माध्यम है जहाँ बच्चे औपचारिक रूप से शिक्षा ग्रहण कर अपनी दिशा का निर्धारण करते हैं। कहते हैं…अगर बच्चों की नींव मजबूत है तो बच्चों को दिशा प्रदान करने में कोई परेशानी नहीं होती है नीव निर्माण का कार्य पारिवारिक संस्कारों से शुरू होता है मगर दुर्भाग्यवश आज की इस आभासी भाग-दौड़ की दुनिया में माता-पिता दोनों कामकाजी हैं उनके पास अपने ही बच्चों के लिए समय नहीं है आज संयुक्त परिवार नहीं रह गए हैं सभी एकल परिवारों में रहते हैं और ऐसे परिवारों में कोई भी ऐसा नहीं होता जो उन्हें संस्कार ज्ञान और आचार सिखा सके ।
पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे बच्चों की नींव से ही उन्हें संस्कारों का एक वृहद समंदर प्राप्त होता था जो उनके चारित्रिक विकास में सहायक होता था । परिवार में परिवार के बड़े दादा-दादी बच्चों को अच्छी शिक्षा संस्कार से फलीभूत करते थे माता-पिता भी साथ रहते थे और आदर सत्कार के भावों से निर्मित नैतिक चरित्र बच्चों का सुदृढ़ और सुसंस्कृत होता था मगर आज इस दौड़ भाग की जिंदगी में न तो संयुक्त परिवार हैं और न ही अभिभावकों के पास इतना समय है कि वह अपने बच्चों को सुसंस्कृत संस्कार दे सकें उनको सिर्फ पैसे कमाने से मतलब है बच्चा स्कूल में जाकर क्या करता है…क्या पढ़ता है …घर पर क्या खाता है , पढ़ता भी है या नहीं इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं । आजकल के अभिभावक सोचते हैं कि वह स्कूल में फीस दे रहे हैं तो पूरा का पूरा दारोमदार स्कूल का है बच्चे की पढ़ाई , नैतिक विकास , संस्कारों का ज्ञान , बच्चों की बढ़ोतरी से लेकर बच्चों के भाग्य निर्माण तक सभी कार्य स्कूल का है क्योंकि वह स्कूल को फीस देते हैं क्या यह सही है ? व्यंग्य ……आजकल के बच्चे यूँ ही पढ़ जाते हैं… मानो तो सब कुछ न मानो तो कुछ भी नहीं ।
बच्चों का पालन पोषण करना एक नए बर्तन बनाने के समान है और हर माता-पिता एक कुम्हार है जो अपने बच्चों को आकार देता है उनको भीतर और बाहर दोनों ओर से रचता है जहाँ भी असावधानी हुई वही बच्चा दिशाहीन हो जाता है अर्थात माता-पिता एक कुम्हार की भांति कार्य करते हैं जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी के अंदर और बाहर दोनों तरफ से मिट्टी धकेल कर उसे एक अच्छा आकार प्रदान करता है उसी प्रकार माता-पिता बच्चों के जीवन को बनाने में वही कार्य करते हैं सीधा-साधा उत्तर है कि आजकल के माता-पिता के पास न ही समय है, न ही प्यार और न ही धैर्य जो एक कुम्हार की भांति अपने बच्चों को घड़ सके । बच्चों की बढ़ोतरी में सबसे ज्यादा महत्व माता-पिता का प्यार, स्नेह और दुलार ही रखता है । जीवन जीने की आधी शिक्षा तो बच्चा इन्हीं चीजों से सीख जाता है आजकल के माता पिता दोनों ही कामकाजी होने के कारण अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते और पूरी तरह शिक्षकों पर निर्भर हो जाते हैं अगर बच्चा खाना नहीं खाता , गृह कार्य नहीं करता , घर में किसी से अच्छी तरह से वार्तालाप नहीं करता , यहाँ तक की सुबह उठकर दाँत नहीं मांझता, नहाता नहीं है नाश्ता नहीं करता यह सब अध्यापक का ही दोष है आजकल के अभिभावकों का यही कहना है …यहां मैं आप सबसे एक प्रश्न पूछती हूँ क्या सिर्फ बच्चों को जन्म देना ही माता-पिता का कार्य है उनका नैतिक विकास और चारित्रिक विकास उनके लिए कोई मायने नहीं रखता । क्या माता-पिता का कोई कर्तव्य नहीं…बच्चे को संस्कार माता-पिता ही दें सकते हैं यह खरीदे नहीं जाते और न ही इनको सिखाने के लिए किसी को किसी प्रकार की फीस दी जाती है । संस्कारों का ज्ञान बच्चा घर परिवार में अपनों के साथ रहकर ग्रहण करता है यही समझना आवश्यक है ।

लेखिका
नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Saturday, 16 June 2018

फिल्मी पर्दा करे बेपर्दा

लेख -
फिल्मी पर्दा करे बेपर्दा

सभ्यता और संस्कृति किसी भी देश की सर्वश्रेष्ठ शीर्ष की धरोहर मानी जाती है । भारतीय सभ्यता और संस्कृति में एक अनुशासन, नैतिकता, प्यार, सद्व्यवहार झलकता है । मगर आज अंधाधुंध पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करते हुए हमारी युवा पीढ़ी जो देश का भविष्य है, गर्त में डूबती जा रही है । पश्चिमी देशों में खुलेपन को गलत नहीं माना जाता । वहाँ की संस्कृति इसी प्रकार की है मगर हम भारत देश की बात करें तो हमारी संस्कृति बहुत ही सुसंस्कृत और मर्यादित है । इस पावन धरती पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम, सावित्री के पतिव्रत धर्म, सीता के त्याग, श्रवण की मातृ-पितृ भक्ति, श्रीकृष्ण की शिक्षा, कर्ण की दानवीरता की बात होती है ऐसी पावन और पवित्र भूमि पर आज संस्कारों का घट घटता और दुर्संस्कारों का भरता जा रहा है । इसका शत-प्रतिशत श्रेय फिल्मी जगत और मीडिया को जाता है । कहते हैं …माता-पिता, अभिनेता,  डॉक्टर इत्यादि इस भूलोक पर अनुकरणीय पात्र हैं जिनका अनुसरण हमारे बच्चे करते हैं । यह पात्र बहुत ही संवेदनशील पात्र कहे गए हैं । आज की युवा पीढ़ी को देखा जाए तो वह अपने पसंदीदा अभिनेत्री या अभिनेता का अनुसरण करता है वैसा ही दिखना,बनना चाहता है । वैसे ही काम करना चाहता है। आज के माहौल में इन पात्रों की जिम्मेदारी बहुत अधिक बढ़ जाती है क्योंकि यह लोग समाज का दर्पण हैं और समाज की तस्वीर को सामने लाते हैं आज फिल्मी जगत से जुड़े अभिनेताओं और निर्माता-निर्देशकों को कोई भी चलचित्र या फिल्म बनाते हुए यह ध्यान जरूर रखना होगा कि वह जिस चीज़ को समाज के सामने पेश कर रहे हैं उसको पेश करने का तरीका क्या है, क्या जिस प्रकार वह समाज के सामने उसका प्रतिरूप रख रहे हैं वह तरीका सही है । जो बच्चे या युवा उसको देखेंगे उसके लिए वह शिक्षाप्रद है या उनको मार्ग से भटकाने का एक औज़ार जो उनके जीवन में एक भवंडर ला सकता है । पैसा कमाना और एंटरटेनमेंट करना एक अलग पहलू है मगर देश के युवाओं के मस्तिष्क पर एक गलत प्रभाव छोड़ना वह किसी मायने में सही नहीं हो सकता ।

आज हर तरह की फिल्मों को सेंसर 'ए'  सर्टिफिकेट देकर पास कर देता है चाहे उसमें कितनी भी अश्लीनता हो …
क्या यह सही है ?
क्या इस तरह की फिल्में जो लिव इन रिलेशन शिप पर आधारित हैं परिवार और परिवार के छोटे बच्चों के साथ देखने लायक हैं या फिर जो युवा पीढ़ी 18 साल की उम्र या उससे कम के हैं उनके देखने लायक हैं ?
क्या हद से ज़्यादा खुलापन हमारी संस्कृति के लिए घातक नहीं ?
क्या जो चीज बंद कमरे में मर्यादित हो उसे खुले रूप में दिखाना उचित है ? क्या इस प्रकार की फिल्मोम के माध्यम से हम आने वाले युवा पीढ़ी की मानसिकता पर प्रहार नहीं कर रहे । मेरा मानना है कि अच्छे कार्य और सोच की असर कायम  करने में बहुत समय लग जाता है मगर गलत और बुरा काम बहुत जल्दी अपना असर छोड़ता है ।
उदाहरण के तौर पर 'वीरे दी वेडिंग' फिल्म की बात करें तो चाहे फिल्म जितने भी सकारात्मक पहलुओं पर आधारित हो, चाहे इसे कॉमेडी फिल्म भी कह लिया जाए परंतु फिल्म पारिवारिक बिलकुल नहीं कही जा सकती । इस फिल्म को परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता खासकर बच्चों के साथ, फिर भी फिल्म को सेंसर ने 'ए' सर्टिफिकेट से पास कर दिया है …।
क्यों ???
क्या स्वरा भास्कर पर फिल्माए गए आपत्तिजनक दृश्य प्रशंसनीय हैं ?
क्या इन दृश्य से महिलाओं के सशक्तिकरण का संकेत मिलता है ?
ऐसी सोच रखने वाले लोगों से मैं असहमत हूँ और कहती हूँ कि उनकी निंदनीय है ।
यह फिल्म एकता कपूर की चर्चित फिल्मों की सूची में रखी गई है मानती हूँ कि फिल्म सकारात्मक सोच के साथ सुखांत भी है परंतु उस पर नकारात्मक चीजें बहुत ही हावी हैं जिसके कारण फिल्म की अच्छाई छिप गई है, क्योंकि जिस खुलेपन के साथ चीजों को दर्शाया गया है उससे बुरी भावनाओं के पनपने की संभावना अधिक हो जाती है और ऐसे में अच्छाई धूमिल पड़ जाती है । आज समाज में जो बुराइयाँ और अराजकता विद्यमान है उसको देखते हुए हमारा यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि आज की युवा पीढ़ी को अच्छी सोच, संस्कार शिक्षा और मानवीय मूल्यों से फलीभूत कर एक उन्नत और सुसंस्कृत समाज का निर्माण करें । कहते हैं न… कि जैसा बीज बोए वैसा फल पाए अर्थात जो हम देंगे वही आगे भावी पीढ़ी को हस्तांतरित होगा ।

इस पृथ्वी पर प्रत्येक मनुष्य समान नहीं है सभी की सोच, शरीर, मन,मस्तिष्क, रूप, रंग भिन्न है । सभी एक दूसरे से अलग हैं । समाज में बहुत से वर्ग हैं । मैं शिक्षक वर्ग से संबंध रखती हूं इसीलिए नैतिकता की बात करती हूँ । नैतिक रूप से इस प्रकार की फिल्में हमारी संस्कृति के विपरीत हैं । एक शिक्षक और लेखक होने के नाते मेरा यह परम कर्तव्य बनता है कि मैं आज की युवा पीढ़ी को अच्छी शिक्षा, विचार और गुणों से समृद्ध करूँ क्योंकि शिक्षा प्रदान की जाती है शिक्षा का प्रसार किया जाता है अच्छाई को सिखाया जाता है , मगर बुराई अपने आप ही लोगों में पनप जाती है जिसे रोकना ज़रूरी है । शिक्षा प्रदान करने के लिए स्कूल होते हैं लेकिन बुराई के लिए नहीं यह चहुँ ओर स्वयं ही व्याप्त है इसलिए प्रत्येक कदम पर सतर्कता आवश्यक है इन चीज़ों का हमारे बच्चों पर प्रभाव न पड़े उसके लिए जागरूक हमें ही होना है । फिल्म बनाना अपने आप में एक महान कार्य है क्योंकि फिल्में समाज का दर्पण दिखाती है अच्छी फिल्मों से सीख मिलती है और बुरी फिल्मों से बुराई पनपती है । फिल्में हर वर्ग का व्यक्ति देखता है …निम्न से लेकर उच्च, छोटे से लेकर बड़ा, जवान से लेकर बूढ़ा । लोग अभिनेताओं के जैसे दिखना और बनाना चाहते है कुछ लोग इनको अपना ICON मानते हैं । जो कार्य या पात्र अनुकरणीय है वह संवेदनशील भी है । इसलिए फिल्म निर्माताओं को इस चीज़ का ध्यान रखना होगा कि जो चीज़ वह परोस रहे हैं या पर्दे पर दिखा रहे हैं उसको दिखाने का तरीका क्या है अर्थात हर चीज का प्रस्तुतीकरण अगर मर्यादित रहे तो वह अच्छा रहेगा पश्चिमी सभ्यता का अंधाधुंध अनुकरण करके अपने देश की संस्कृति को नष्ट करना कोई समझदारी नहीं है ।

पश्चिमी सभ्यता को अपनाकर
अश्लीनता को दर्शाकर
खुलेपन को दिखलाकर
कुछ नहीं हासिल कर पाओगे
अपने देश की संस्कृति और संस्कारो को नष्ट करने में अपने को शीर्ष पर पाओगे ।
जहां से फिर नीचे आना असंभव होगा ।
अपने आप से आँखें मिलाना दुष्कर होगा ।

लेखिका
नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

Saturday, 9 June 2018

वरिष्ठ साहित्यकारा नीरू मोहन 'वागीश्वरी' सुपर अचीवर अवार्ड 2018 से सम्मानित 

वरिष्ठ साहित्यकारा नीरू मोहन 'वागीश्वरी' सुपर अचीवर अवार्ड 2018 से सम्मानित 

दिनांक 10-6-2018 रविवार मिशन न्यूज़ डॉट कॉम के तत्वावधान में साहित्यकारा, लेखिका, कवयित्री नीरू मोहन 'वागीश्वरी' को शिक्षा, साहित्य और लेखन में उत्कृष्ट योगदान के लिए सुपर अचीवर अवार्ड से सम्मानित किया गया । अपनी मेहनत, लगन और जज़्बे के दम पर महज़ नाम से एक पहचान बने शख्सियतों के सम्मान में आयोजित होने वाले बेहद भव्य और शानदार सम्मान समारोह का आयोजन पाँच सितारा होटल पिकाडिली जनक पुरी दिल्ली में बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से सम्पन्न हुआ ।
इतने भव्य और गौरवपूर्ण आयोजन का हिस्सा बनना और अपने अलग - अलग क्षेत्रों की सफल शख्सियतों से मिलना ही अपने आप मे किसी उपलब्धि से कम नहीं । सम्मानित विशिष्ट गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में कार्यक्रम को एक नई दिशा और गति मिली ।
स्वाति मालीवाल,अध्यक्षा,महिला आयोग दिल्ली,
राजीव रतन,एजुकेशनल कमिश्नर हरियाणा,
रॉकी मित्तल,चीफ पब्लिसिटी एडवाइजर मुख्यमंत्री हरियाणा,
डॉ हरीश रंगा,आई जी जेल,हरियाणा
डॉ अवनीश कुमार
अध्यक्ष,  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग एवम निदेशक केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार कार्यक्रम के साक्षी रहे ।
साहित्यकारा नीरू मोहन लेखन की अनेक विधाओं की धनी हैं । हाइकु ,छंद मुक्त और छंद बद्ध कविताएँ, कहानी, लघु कथा, लेख/अलेख नाटक आदि पर उनकी पकड़ है । आज तक बहुत से सांझा काव्य संकलन, कहानी, लघु कथा संग्रह , संस्मरण संकलन में लिख चुकी हैं । उनकी कलम अधिकतर सामाजिक विषयों , ज्वलंत मुद्दों पर चलती है । उनकी रचनाएँ, लेख, कहानियाँ निरंतर पत्र ,पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में छपते रहती हैं । उनकी प्रत्येक रचना संदेशयुक्त शिक्षाप्रद और समाज का दर्पण होती हैं ।