Wednesday, 31 May 2017

'सागर की गहराई' कविता

*सागर ने जाकर अंत में अपने

एक क्षितिज बनाया

जहाँ पर उसने रोज़ की भाँति

धरती,आकाश  मिलाया

*तेज लहरों से उसने अपनी
बालू का ज़र्रा बनाया
फिर उसने उस बालू के जर्रे को
तट तक पहुँचाया

*हुआ हर पत्थर ज़र्रा-ज़र्रा
लहरों से टकराकर
मिल गया फिर वह तट की
उस दरदरी रेत में जाकर

*सागर ने अपनी गहराई में
कितने ही राज छुपाए 
सीप के हर मोती ने
कई राज़ हमें बतलाए 

*छुपा खजाना इसके अंदर
कोई जो भेद ना पाया
इसकी गहराई के तल को
कोई भी समझ ना पाया ||

***जीवन का सच **कुछ मीठे कुछ खट्टे अनुभव विधा- लेख

विधा- लेख

जीवन अगर खट्टा-मीठा ना हो तो जीवन जीने का मजा ही नहीं | फीका और बेस्वाद जीवन नीरस हो जाता है | खट्टे मीठे अनुभव ही जीवन को दिशा प्रदान करते हैं और मनुष्य को सन्मार्ग की ओर ले जाते हैं | जो इनसे हार मान लेते हैं वह अंधेरे में डूब जातें हैं और जो इसको जीत लेते हैं वह मंजिल को पा लेते हैं |
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हार मानने से मनुष्य न्यूनता में चला जाता है | सभी के जीवन में ऐसे क्षण अवश्य आते हैं जब कुछ लोग उनके मार्ग में बाधक और कुछ साधक बनते हैं कुछ उनकी बढ़ाई और कुछ बुराई करते हैं और अन्य दूसरों के कहे में आकर अपना मत नहीं रखते उनके पीछे हो लेते हैं | एक व्यक्ति के लिए अपनी राय बनाना अच्छी बात है मगर उसे कमजोर बनाना दूसरी बात है अगर आप किसी के काम नहीं आ सकते तो उसकी सफलता में बाधक भी ना बने|
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कहते हैं- मनुष्य का व्यक्तित्व‚ चरित्र मुख की आभा और कांति उसका संपूर्ण परिचय होती है | व्यक्ति को स्वयं परिचय देने की आवश्यकता ही नहीं होती अगर वह अपने यह तीनों गुण दूसरों के समक्ष प्रदर्शित कर देता है | अच्छा व्यक्तित्व कांतिसहित होता है और बुरा व्यक्तित्व कांतिहीन होता है |
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किसी की उन्नति और विकास के आड़े आने से या किसी को नीचा दिखाने से कभी भी कोई महान नहीं बन सकता आप चाहे जितने भी ऊँचे पद पर क्यों ना हो आपका कृत्य आपको उस व्यक्ति की आँखों में नीचा ला देता है जिसके लिए आप सकारात्मक विचार नहीं रखते | सिर्फ अपने घेरे में आए व्यक्तियों का भला चाहना ही महान या बड़ा नहीं बनाता | बड़ा बनाता है आपका सभी के प्रति समान दृष्टिकोण |
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जीवन में कुछ ऐसे ही खट्टे-मीठे अनुभव प्राप्त होते हैं जिन्हें भुलाना चाहते हुए भी आप भूल नहीं पाते और कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें बार-बार याद करने से सुख का अनुभव होता है | कुछ व्यक्ति आपकी उपाधियों और ज्ञान से परिचित होते हुए भी आपकी आलोचना करते हैं और कुछ आपका अनुसरण करते हैं |
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कुछ व्यक्तियों के लिए आप का ज्ञान कोरे कागज के समान हो सकता है | कुछ आपके ऊपर गर्व करते होंगे और कुछ आपके जैसा बनना चाहते होंगे |कुछ अपने पद को लेकर बस इसी दंभ में जीते होंगे कि उनसे बेहतर कोई नहीं और उनसे आगे कोई नहीं निकल सकता और न ही वह किसी को बिना उनकी मंशा के आगे बढ़ने देंगे |
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ऐसे लोग प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आते हैं |ऐसे लोग जीवन में उस नुकीले रोड़े के समान होते हैं जिससे रू-ब-रू होने पर व्यक्ति अपनी आत्मा तक से घायल हो जाता है और जब इंसान आत्मा से घायल होता है तब वह टूटने लगता है मगर,अगर उस समय उसे कोई सहारा देता है उसके दुख से उसे उबारता है वह ईश्वर का स्थान पाता है | उसके बाद उस ईश्वर की कृपा आप पर हमेशा बनी रहती है और आपकी राह में काँटें बिछाने वाला व्यक्ति दूर खड़े देखता रहता है मगर कुछ कर नहीं पाता |
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इसलिए हमेशा ईश्वर पर विश्वास रखो |ईश्वर सब देखता है और देर-सवेर इंसाफ जरूर करता है | चाहे इस लोक में चाहे उस लोक में करनी का फल हमेशा मिलता है इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करो ,दूसरों का भला चाहो दूसरों के मार्ग में कभी भी बाधक मत बनो हमेशा साधक का फर्ज़ अदा करो | किसी को अपशब्द मत कहो ,मीठी वाणी बोलो और सरस व्यवहार रखो दूसरों की तरक्की से ईर्ष्या और द्वेष मत करो | कर्म करो फल की इच्छा मत करो |||||

बोए हैं जिसने काँटे
काँटें उसने पाए हैं
भला उसी का हुआ है
फूल जिसने बरसाए है
अच्छी वाणी और वचन
बोले और अपनाए हैं
नजरों में उसने सबकी
मान-सम्मान ही पाए हैं ||||

**आखिर बहू भी तो बेटी है** लघु कथा

* हमेशा से देखा गया है कि बहू और बेटी दोनों में भेदभाव यह सृष्टि का नियम-सा हो गया है | सास कभी भी अपनी बहू को बेटी नहीं मानती और न मानना चाहती | वह क्यों नहीं समझती कि उनकी बेटी भी किसी के घर की बहू है  | अहंकार में भरी हर सास क्यों परायी बेटी में अपनी बेटी की छवि नहीं देखती ।

* घर में बहुत खुशी का माहौल छा गया जब देवकी को पता चला कि उसकी बहू के पाँव भारी है  | घर में बहू से एक बेटी तो पहले ही थी अब देवकी को बहू से बेटे की चाह थी | देवकी ने पहले पहल तो बहू का बड़ा लाड-चाव किया परंतु तीन महीने बीतते ही जब बहू को परेशानी शुरू हुई जिसके कारण देवकी को सबकी रोटियाँ पकानी पड़ी, क्योंकि बहू को रोटी पकाने से बदबू आती थी , अहंकार से भरी देवकी ने बहू को परेशान करना शुरू कर दिया ।

* देवकी मन मारकर रोटियाँ बनाती और पूरी रसोईघर को बिखेर कर आ जाती और फिर बहू से रसोई साफ करने को कहती | बहू बेचारी बहू ठहरी , सास की आज्ञा को कैसे ठुकरा सकती थी । बहू रसोई साफ करती पर रसोई में रोटी की बदबू के कारण कुछ खा भी नहीं पाती थी | एक-दो दिन तो ठीक चला पर रोटी  बनाने से बचने के लिए देवकी ने बहू पर ही इल्जाम लगा दिया कि काम से बचने के लिए बहू बहाना बनाती है | देवकी ने बेटे से कहा मेरे बस की नहीं है तुम्हारी रोटियाँ बनानी मैं तो अपनी दो रोटी बनाऊँगी और खाऊँगी और जिसे भूख लगे वो अपनी रोटी बनाए और खाए ।

* थोड़े दिन बाद पता चलता है कि उसकी बेटी भी पेट से है । बेटी माँ के पास आती है और कहती है मम्मी मुझसे रोटी नहीं बनाई जाती मुझे रोटी में से बदबू आती । बेटी की बात सुनकर माँ बोलती है बेटी अगर बदबू आती है तो रोटी मत बनाया कर  अपनी सास से कह दिया कर वह बना देगी | इस हालत में तू ज्यादा से ज्यादा आराम किया कर और अगर तेरी सास ज्यादा जबरदस्ती करें तो कह देना मुझसे नहीं होगा ये सब | हम हैं तेरे साथ कुछ ज्यादा परेशानी हो तो यहाँ आ जाना | तुझे मैंने नाज़ो से पाला है और लाडो से झूले झुलाए हैं मुझमें अभी इतना दम है कि तुझे रोटी बनाकर खिला सकूँ और तू चिंता मत कर घर में तेरी भाभी भी तो है तुझे यहाँ कोई परेशानी नहीं होने दूँगी ।

एक माँ अगर अपनी बेटी के लिए अच्छा सोच सकती है तो उस बेटी के लिए क्यों नहीं सोचती जो अपना घर, माँ-बाप और पूरा परिवार छोड़कर आई है | एक माँ कैसे इतनी निर्दयी हो सकती है बहू के लिए कुछ और बेटी के लिए कुछ और | मेरा मनना है कि अगर हर घर में सास अपनी बहू को बेटी बनाकर रखे और जो आदर -मान बहू से चाहती हैं वह बहू को भी समान रूप से दे तो किसी माँ की बेटी सतायी या जलायी न जाए |

Monday, 29 May 2017

नई बाल कवितायें / बाल गीत भाग- २

बाल जगत

बाल विषयों पर आधारित,मस्ती से भरपूर नीरू मोहन द्वारा लिखित  शिक्षाप्रद बाल कवितायें और गीत | नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए एक उपहार जो पूर्णत: नव रचित है और बाल हठखेलियों से भरपूर है ||


**** स्मृतियों के पन्ने ****(संस्मरण)


****समय पंख लगाकर कैसे उड़ गया पता ही नहीं चला | माँ का कमरे से आवाज लगाना दौड़कर माँ के नजदीक पहुँच जाना अभी भी याद है | वह समय ही कुछ और था | सुबह तड़के उठ जाना, स्कूल के लिए तैयार होना, अपने आप जूते और मौजे पहनना, मम्मी का चोटी बांधने के लिए आवाज लगाना और माँ का खूब कसकर चोटी बांधना मोड़कर ऊपर की तरफ फूल बना देना अभी भी याद है | मेरी माँ चोटी ऐसी बनाती थीं कि सिर कासर्दियों की छुट्टियों का कुछ मजा ही अलग थासर्दियों की छुट्टियों का कुछ मजा ही अलग था कोई भी बाल नहीं उड़ता नजर आता था अगले दिन भी चोटी सुबह तरोताजा नजर आती थी |

****दिल्ली में ही मेरा बचपन बीता |दिल्ली में ही मैं पली बड़ी | नानी दादी से पता चला था कि हमारे पूर्वज राजस्थान से संबंध रखते थे और वह मिट्टी के बर्तन बनाते थे काम में बहुत सधे हुए थे और कला से उनका बहुत गहरा संबंध था | अगर यादों के पन्ने पलटती हूँ तो पाती हूँ कि वह समय ही कुछ और था मुझे अभी भी वह दिन याद है जब हम अपनी माँ से दस पैसे और पाँच पैसे लेने पर भी बहुत खुश हुआ करते थे और-तो-और पच्चीस पैसे की दो आइसक्रीम भी मजे से खा लेते थे |

****उस समय की इमली, कटारे, बेर, शकरकंदी, इमली के चिएँ, सुपारी अभी भी मुँह में पानी ला देते हैं |वह मजा और चीजें आजकल कहाँ |बच्चों को पिज्जा बर्गर के अलावा कुछ नहीं सूझता |सन् २०१७ मेरी माता जी को गुजरे आज १७ साल बीत चुके हैं मगर उनका एहसास ,उनकी यादें, उनका प्यार, हर बात के लिए टोकना, अच्छी बातें और संस्कार जो हमने अपनी माँ से पाए सभी यादों की सुनहरी कड़ी में अभी भी जीवित हैं |

****जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आए | परिवार में छह सदस्य, हर स्थिति का सामना हम सभी ने बहुत धैर्य और साहस से किया| एक समय वह था जब बच्चा तंगहाली में भी एक जोड़ी जूते कपड़ों में पूरा साल निकाल देता था मगर आज बच्चों को सभी सुख सुविधाएँ चाहिए उन्हें इससे कोई सरोताज नहीं कि उनके माँ-बाप इस स्थिति में है या नहीं |आजकल के बच्चों को सिर्फ उनकी फरमाईशों के पूरा होने से मतलब है|

****मुझे अपने समय का रविवार और बुधवार भुलाए नहीं भूलता |उस समय दूरदर्शन और मेट्रो नेटवर्क ही हुआ करते था | दूरदर्शन पर हर रविवार को फिल्म आती जिसका इंतजार पूरे हफ्ते रहता था | बुधवार को 8:00 बजे चित्रहार और शनिवार को फूल खिले गुलशन गुलशन प्रोग्राम का सभी को बेचैनी से इंतजार रहता था | क्या दिन थे ? वह भी कि रविवार की प्रात: सब तड़के उठकर घरों की सफाई में तल्लीन हो जाते और टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को देखने के लिए 8:00 बजे से पहले-पहले नाश्ते-पानी सभी से फारिग हो जाते और फिर पूरा परिवार मिलकर एक साथ एक ही हॉल में सभी कार्यक्रमों का लुफ्त उठाते |

****फेरीवालों के गलियों में चक्कर और हर फेरीवाले को रोककर समान लेकर खाना मजा ही कुछ और था |जिस बच्चे के पास एक रुपया होता बस फिर मत पूछो वह क्या-क्या खा सकता था 25 पैसे के 10 बिस्कुट 10 पैसे की 10 नलियाँ जिन्हें फुकनियाँ भी कहते थे आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि ₹1 में कितनी सारी चीजें हम उस समय खाया करते थे त्यौहार पर रिश्तेदारों से एक और दो के नोट का मिलना और सब नोटों को इकट्ठा करना सब से पूछना कि उन्हें किसने कितने पैसे या रुपए दिए वो गुज़रा वक्त और मजा अब कहाँ |आज अगर स्मृतियों के पन्ने पलटते हैं तो आज की भागमभाग की जिंदगी से चिढ़ मचती है | उस समय कितना सुकून |

****त्योहारों का अपना ही मजा था परिवार की एकजुटता प्यार और अपनापन मिलकर बैठना सब बहुत यादगार है| त्योहारों से पहले ही त्योहारों के आने का मज़ा ही कुछ और होता था | छुट्टियाँ चाहे कोई भी हो दशहरा, क्रिसमस जिसे बड़े दिन की छुट्टियाँ कहते थे, गरमियों और सर्दियों की  छुट्टियाँ | नानी के घर जाने का जुनून इतना होता कि छुट्टियों का स्कूल का काम दो दिन में ही खत्म कर लेते थे सर्दियों की छुट्टियों का कुछ मजा ही अलग होता था | घरों में अंगीठी सुलगती थी | कोयले की महक और उसका धूँआ सबकी आँखों में पानी ला देता था यह दृश्य देखने में बहुत ही मजेदार हुआ करता था | बिना रोए सबकी आँखों से आँसू बहते थे| उस समय सर्दियों में ज्यादातर अँगीठी पर ही खाना पकाते थे और अंगीठी के चारों तरफ बैठकर ही सब खाना खाते थे | 

****नए साल के कार्यक्रम टीवी पर देखने के लिए इतनी तैयारी करते थे | मूंगफली ,रेवड़ी और बहुत सी खाने की चीजें होती थी | घरों में पकवान बनते थे  बहन बेटियों के बुलाकर नए साल के प्रोग्राम का टीवी पर मजा लिया जाता था |नया साल भी किसी त्योहार से कम नहीं होता था| आज कल तो सब फोन से ही एक-दूसरे को मैसेज भेज देते हैं | उस समय किसी भी त्यौहार या नए साल का शुभ समाचार संदेश ग्रीटिंग कार्ड के माध्यम से भेजा जाता था और किसी का हाल-चाल पूछना हो तो चिट्ठी-पत्री के द्वारा उसका हाल चाल पूछ लिया जाता था मगर आज यह सारी चीजें देखने को नहीं मिलती उस समय सब दूर रहकर भी बहुत नजदीक थे परंतु आज सब नजदीक रहकर भी बहुत दूर है | आज शुभ संदेश फोन के माध्यम से भेज दिए जाते हैं | फोन के माध्यम से ही हाल-चाल पूछ लिया जाता है | चाहे कुछ भी कहो जो मजा चिट्ठी पढ़ने में था वह फोन पर बात करने में नहीं |

****पहले घरों ,हवेलियों में लोहे के जाल बने होते थे जाल पर साथ-साथ खाना खाना | पहले संयुक्त परिवार होते थे और एक ही हवेली में कई पीढ़ियों के परिवार एक साथ मिलजुल कर रहते थे परिवारों की एकजुटता को देखकर कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था कि कोई अलग है सब खाना जाल पर बैठकर खाते एक ही साथ छत्तीस भोज का मज़ा लिया जाता था| खाना खाकर छत पर टहलने जाना | उस समय वातानुकूलित यंत्र नहीं होते थे इसलिए स्वच्छ शीतल ठंडी वात का मजाक छत पर ही लिया जाता था | दोपहर शाम ढलते ही छतों को ठंडा करते ,पानी डालते ,और पानी को सुखाने के लिए पंक्ति भी गाया करते थे | गिली-गिली चली जा सूखी सूखी आ जा जल्दी से हमारी छत को सुखा जा | जमीन को जल्दी सूखाने के लिए यह सब किया करते थे |

****छत के सूखते ही अपना-अपना बिस्तर बिछाना, लेट कर आसमान को देखना ,तारों को गिनना, बादलों और चाँद को चलते देखना सब कितना अनोखा था कल्पना की उड़ान बहुत दूर तक जाती थी ? क्या जमाना था ?आज भी यह सब बातें लिखते हुए मुझे हँसी आ रही है और जहन में वह सभी तस्वीरें फिर से ताजा होती जा रही हैं | वक्त कितनी जल्दी गुजर जाता है कभी हम खुद बच्चे हुआ करते थे और आज बच्चों के पालक हैं उनको देख कर अपना बचपन फिर से लौट आता है मगर आज जब देखते हैं कि जो हमारे समय में बात थी वह आज नहीं है |ना ही शुद्ध वायु, शुद्ध जल, शुद्ध वातावरण कुछ भी तो शुद्ध नहीं है |आज की भागमभाग की जिंदगी ने हमारे बच्चो को भी एक मशीन बना दिया है | मुझे अभी भी याद है कि हम स्कूल जाने के लिए कभी भी नहीं रोए| उस समय स्कूल जाने का भी एक अलग ही मजा था | मगर आजकल के बच्चे स्कूल जाने से कतराते हैं | स्कूल का नाम लेते ही उनको बुखार चढ़ जाता है |पढ़ने को कहो तो नींद आने लगती है | क्या कहे वक्त की लहर है | आज हमें अपना समय याद करके अच्छा लग रहा है कल हमारे बच्चे अपना समय याद करके खुश होंगे | यही जीवन चक्र है जिसका पहिया पीछे नहीं आगे जाता है यही पहिया कल आज और कल में अंतर बताता है | ये मेरी स्मृतियों के कुछ पन्ने है जो आपके साथ साँझा किए हैं और जिनको लिखने के लिए कलम खुद-ब-खुद लेखनी बनकर कागज पर उतर आई है |

लेखिका -नीरू मोहन
विधा – संस्मरण
स्मृतियों के पन्ने


***शायरी***

सुंदर , शील , अलंकृत शायरी

उद्धरण / अवतरण भाग- १

नीरू मोहन की कलम से अवतरित उद्धरण/अवतरण